शनिवार, 7 नवंबर 2009
-ग़ज़ल-----------------------------------दीपक 'मशाल'
-ग़ज़ल-
ये परिंदा इन दरख्तों से, पूछता रहता है क्या,
ये आसमां की सरहदों में, ढूंढता रहता है क्या.
जो कभी खोया नहीं, उसको तलाश क्या करना,
इन दरों को पत्थरों को, चूमता रहता है क्या.
खोलकर तू देख आँखें, ले रंग ख़ुशी के तू खिला,
गम को मुक़द्दर जान के, यूँ ऊंघता रहता है क्या.
कोई मंतर नहीं ऐसा, जो आदमियत जिला सके,
कान में इस मुर्दे के, तू फूंकता रहता है क्या.
आएँगी कहाँ वो खुशबुएँ, अब इनमें 'मशाल',
दरारों में दरके रिश्तों की, सूंघता रहता है क्या.
दीपक 'मशाल'
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परिंदे क्या ढूंढते हैं ...आदमियत जिलाने का मंतर क्या है ...
जवाब देंहटाएंदरारों में दरकते रिश्तों को सूंघना ...
बहुत बढ़िया ...!!
बहुत खूब लिखा है आपने दीपक जी। सुन्दर प्रस्तुति। चलिए मैं भी कुछ कोशिश करके देखता हूँ आपके ही धुन में-
जवाब देंहटाएंचार आँखें जब हुई तो मुस्कुराहट देखिये
शक मुझे कि दिल का रिश्ता टूटता रहता है क्या
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत खूब दिपक भाई, लाजवाब लगी आपकी ये रचना। बहुत-बहुत बधाई......
जवाब देंहटाएंबढिया रचना...
जवाब देंहटाएंपहेली तो चल रही है हँसते रहो पर
इधर-उधर ऐ बंदे तू ढूँढता है क्या
khubsurat....bahut pasand aayi ye ghazal khaskar
जवाब देंहटाएं...koi mantar nahin...sher negetivity ke baavzood lajawab hai..orkut ब्लॉग की sidebar में,,,,
श्रीमती के नाम ghazal
एक से बढ कर एक शेर,बेहतरीन गज़ल्।
जवाब देंहटाएंbahut khoob,dararon me darke rishte dhoondhta rahta hai kya , vaah
जवाब देंहटाएंsundar...sundar....sundar......
जवाब देंहटाएंisi tarah likhte raho lagaatar...barbar
बहुत अच्छी रचना है दीपक जी . आभार !!!
जवाब देंहटाएंसरहदें कहाँ हैं , परिंदों के लिए
जवाब देंहटाएंहोती हैं बस, इंसान के लिए
अच्छे भाव लिए रचना.
खोलकर तू देख आँखें, ले रंग ख़ुशी के तू खिला,
जवाब देंहटाएंगम को मुक़द्दर जान के, यूँ ऊंघता रहता है क्या.
अच्छी ग़ज़ल कहते हैं आप.
जो कभी खोया नहीं उसे तलाश क्या करना....ख़ूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंkoyi mantar nahin aisa jo aadmmiyat jila sake, ....phoonka rahta hai kya bahut khoob laga apka ye sher
जवाब देंहटाएंएक दीपक की रोशनी कह जाती है सब,
जवाब देंहटाएंएक शायर को सूझता रहता है क्या ........
kavita padh kar laga ki ye parinde kahi hum khud hi to nahi..............
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ! मस्त लिखा है !
जवाब देंहटाएंShukriya aap sabka...
जवाब देंहटाएंJai Hind
Dipak......... ek ek pankti bahut achchi lagi........ har line bhaavpoorn hai....
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder prastuti........
Dipak...deri se aane ke liye maafi chahta hoon.........
जवाब देंहटाएं"jo kabhi...." aur "kholkar..." bahut sahi lines likhi hain aapne...
जवाब देंहटाएंbahut acche bhai...
जो कभी khoya नहीं उसको talaash क्या करना ..........
जवाब देंहटाएंgahra darshan है इस शेर मैं ....इस कमाल की ग़ज़ल में सब शेर कमाल के हैं .......
Deepak,
जवाब देंहटाएंSorry...ham kuch busy ho gaye the...
isliye nahi aa paaye..
har sher par daad dite rahen hain yakeen karo..
sabhi lajwaab hain...
khush raho..
Didi