तूने कहा था जाने को मगर, मैं इशारा जाने क्या समझा,
था तो इंकार तेरी जानिब से, ये ज़माना जाने क्या समझा.
पानी न था मेरी आँख में जब, वो पत्थर बुलाता रहा मुझे,
तेरी चुनरी ने अश्क सोखे तो, वो फ़साना जाने क्या समझा.
मेरी खता क्या है ये बता मुझे, साज़ मेरा नहीं गलत यारा,
मैंने छेड़ी थी तान उल्फत की, तू तराना जाने क्या समझा.
तुम तो भंवर में तैरने के आदी हो, ये सुना करते हैं हम,
जो हमने अपनी नाव डाली, तो किनारा जाने क्या समझा.
किसको वफ़ा है मिली भला, ढाके यहाँ सितम-ए-जफ़ा,
उनकी मसखरी की आदत को, दिल हमारा जाने क्या समझा.
यूंही शब् भर था सिसकता रहा, मेरी कहानी सुन के 'मशाल',
मुझे था शौक गम सुनाने का, वो दीवाना जाने क्या समझा.
दीपक 'मशाल'
चित्र- दीपक 'मशाल' के कैमरे से...
meri khata kya hai ye bata mujhe, saaj mera nahi galat yaara
जवाब देंहटाएंmaine chhedi taan ulfat ki tu tarana jaane kya samjha....
sabhi sher bahut acche lege Deepak, lekin ye mujhe bahut pasand aaya...
sabhi kahte hain bahut accha likhte ho...
galat thode hi na kahte hain...
ab socho mujhe kitni khushi hoti hai sunkar..!!
Didi..
बेह्तरीन कह गये..वाह!!
जवाब देंहटाएंAre ye 'Deepak ke Camare' se tasveer kiski hai ??:):):)
जवाब देंहटाएंमैं ये सोच कर उसके घर से चला था
जवाब देंहटाएंके वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको
मगर उसने रोका न वापस बुलाया
न दामन ही पकड़ा, न आवाज़ दी
यहां तक के उससे जुदा हो गया मैं,
जुदा हो गया...
जय हिंद...
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ....
जवाब देंहटाएंकिस शेर की तारीफ़ करे ..किसे छोडे ..!!
बहुत ही खूबसूरत शेर हैं !!!
जवाब देंहटाएंDipak........ek sher bahut hi ghazab ke hain....wo deewana jaane kya samjha.....bahut hi khoobsoorat pankti hai.....
जवाब देंहटाएंdil ko chhoo gayi........
आपकी गजल मेरे दिल में उतर गयी,
जवाब देंहटाएंपर जमाना न जाने क्या समझा।
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बहुत घातक है प्रेमचन्द्र का मंत्र।
हिन्दी ब्लॉगर्स अवार्ड-नॉमिनेशन खुला है।
ये ग़ज़ल बहुत खूसूरत है ,मैं तो बस इतना समझा
जवाब देंहटाएंदीपक साहब,
जवाब देंहटाएंआप सही में मशाल जलाये बढ़ रहें हैं...ब्लॉग के काव्यजगत में...
पहली बार इन सुन्दर कृतियों को देखा, इसका दुःख रहेगा...
gazabb.............gazab........
जवाब देंहटाएंhar JAWAN DIL KI KAHANI........
khoobsurat, mahakti, kuch sunati gazal
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल है भाई।
जवाब देंहटाएंHausla afzaai ke liye aap sabhi mahanubhavon ka tahedil se shukriya...
जवाब देंहटाएंJai Hind...
मशाल जलाये रहिये दीपक भाई ज़माना कभी तो समझेगा । सुंदर गज़ल के लिये बहुत-बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंमशाल जी!
जवाब देंहटाएंआपके शब्द और चित्र बहुत ही बढ़िया हैं।
मगर ब्लॉग से ताला तो हटाइए!
इससे मुझे चर्चा करने में सुविधा रहेगी!
bahut pyaari kavita hai
जवाब देंहटाएंabhi kuch jagah tippaniya di hain / lekin bas aapki post pe hi chhap rahi hai tippani /
जवाब देंहटाएंbaki pe nahi chhap rahi
यूंही शब् भर था सिसकता रहा, मेरी कहानी सुन के 'मशाल',
जवाब देंहटाएंमुझे था शौक गम सुनाने का, वो दीवाना जाने क्या समझा.
बहुत सुन्दर.
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है। हर शे'र पर मस्तिष्क कुछ सोचने के लिए बाध्य हो जाता है और महसूस होता है कि यह ग़ज़ल फ़क़त मनोरंजन के ही लिए नहीं है। बधाई.
जवाब देंहटाएंमहावीर शर्मा
बेहतरीन रचना है!
जवाब देंहटाएंवाह दीपक जी, उम्दा शेरों से भरी ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएं- सुलभ
maine 10-12 baar padhi ki pata chal paaye best lines kaun si hain.. par sab ek se badhkar ek hain!!!
जवाब देंहटाएंdo jagahon par to main atak sa gaya...
तेरी चुनरी ने अश्क सोखे तो, वो फ़साना जाने क्या समझा.
aur
मुझे था शौक गम सुनाने का, वो दीवाना जाने क्या समझा.