खूंखार हुए कौरव के शर
खूंखार हुए कौरव के शर,
गाण्डीव तेरा क्यों हल्का है?
अर्जुन रण रस्ता देख रहा,
विश्राम नहीं इक पल का है.
तमतमा उठो सूरज से तुम,
खलबली खलों में कर दो तुम,
विध्वंस रचा जिसने जग का,
उसको आतंक से भर दो तुम.
ये दुनिया जिससे कांप रही,
उसको आज कंपा दो तुम.
कि हदें हदों की ख़त्म हुईं,
तुम देखो धैर्य भी छलका है. खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों.....
क्षण भर भी जो तुम ठहर गए,
ये धरा मृत्यु न पा जाये,
बारूद यहाँ शैतानों का,
मानव जीवन न खा जाये.
अमृत देवों के हिस्से का,
दैत्यराज न पा जाये,
पीड़ा ह्रदय की असाध्य हुई,
आँसू हर नेत्र से ढुलका है. खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों.....
क्यों खड़े अभी तक ठगे हुए,
अब कान्हा कोई न आयेगा,
थामो अश्वों की बागडोर,
ना ध्वजरक्षक ही आयेगा.
तुम स्वयं पूर्ण हो गए पार्थ,
अब गीता न कोई सुनाएगा,
जो ज्वालामुख ये दहक उठे तुम,
स्वर्णिम भारत फिर कल का है. खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों.....
दीपक 'मशाल'
वाह बहुत सुन्दर कविता है उस्ताद । माँ शारदे का निवास है कलम मे बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद्
जवाब देंहटाएंक्यों खड़े अभी तक ठगे हुए,
जवाब देंहटाएंअब कान्हा कोई न आयेगा,
थामो अश्वों की बागडोर,
ना ध्वजरक्षक ही आयेगा.
बिल्कुल दिनकर जी वाले तेवर दिखा दिये आपने दीपक साहब..
बहुत अच्छी कविता , दिनकरजी की याद आ गयी
जवाब देंहटाएंWah deepak ji wah
जवाब देंहटाएंtejee se aa gaye
furtee se chhaa gaye
ojsvi kvita .
जवाब देंहटाएंbahut achhi rachna
बहुत सुन्दर रचना बन गई है!!
जवाब देंहटाएंगहरी सोच लिए रचना. बढ़िया.
जवाब देंहटाएंदीपक की मशाल की रौशनी...
जवाब देंहटाएं(देखना है कि हम इस प्रकाश में आगे चलने का रास्ता देख पाते हैं या नहीं)
जय हिंद...
shandaar...
जवाब देंहटाएंjai hind...
क्यों खड़े अभी तक ठगे हुए,
जवाब देंहटाएंअब कान्हा कोई न आयेगा,
थामो अश्वों की बागडोर,
ना ध्वजरक्षक ही आयेगा.
तुम स्वयं पूर्ण हो गए पार्थ,
अब गीता न कोई सुनाएगा,
जो ज्वालामुख ये दहक उठे तुम,
स्वर्णिम भारत फिर कल का है.
खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों.....
दीपक,
आज ऐसे ही पार्थ की आवश्यकता है....
कृष्ण की नहीं अर्जुन की ज़रुरत है.....
वीर-रस से ओत-प्रोत तुम्हारी कविता.....
अर्जुनों का आह्वान करती हुई ...आज के सन्दर्भ मैं बहुत सटीक लगी है..
ज़रुरत है इस पुकार पर कान देने की....बस...
दीदी...
दी.. अगर हमें सच में ऐसा अर्जुन बनना ही है तो ना सिर्फ अपने परिवार और यार दोस्तों के लिए बल्कि सच्चाई के लिए हर बुराई का डट कर सामना करने की जरूरत है...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
ek aur shaandaar kavita ke liye badhai sweekaren.
जवाब देंहटाएंक्षण भर भी जो तुम ठहर गए,
जवाब देंहटाएंये धरा मृत्यु न पा जाये,
बारूद यहाँ शैतानों का,
मानव जीवन न खा जाये.
अमृत देवों के हिस्से का,
दैत्यराज न पा जाये,
पीड़ा ह्रदय की असाध्य हुई,
आँसू हर नेत्र से ढुलका है.
खूंखार हुए कौरव के शर,
गाण्डीव तेरा क्यों.....
वाह.....
बेहतरीन रचना है!
आपकी इस कविता में निराधार स्वप्नशीलता और हवाई उत्साह न होकर सामाजिक बेचैनियां और सामाजिक वर्चस्वों के प्रति गुस्सा, क्षोभ और असहमति का इज़हार बड़ी सशक्तता के साथ प्रकट होता है।
जवाब देंहटाएंआज ऐसी वीर रस की कविताओं का अभाव सा दिखता है
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद युवा कलम से ऐसी सशक्त रचना पढ़कर मन का हर्षित होना स्वभाविक ही है
मैं मनोज कुमार जी की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत हूँ
मेरी भी बधाई स्वीकार करें
क्यों खड़े अभी तक ठगे हुए,
जवाब देंहटाएंअब कान्हा कोई न आयेगा,
थामो अश्वों की बागडोर,
ना ध्वजरक्षक ही आयेगा.
तुम स्वयं पूर्ण हो गए पार्थ,
अब गीता न कोई सुनाएगा,
जो ज्वालामुख ये दहक उठे तुम,
स्वर्णिम भारत फिर कल का है
bahut hi achchi kavita
ek ek shabad man chhuta hua
कौरवों के परोक्ष में दग्ध आह्वान ....
जवाब देंहटाएंKHUSHDEEP SEHGAL
जवाब देंहटाएंMOBILE 09873819075
ADDRESS
757, SECTOR 28
NOIDA (UP)
E-MAIL
sehgalkd@gmail.com
क्यों खड़े अभी तक ठगे हुए,
जवाब देंहटाएंअब कान्हा कोई न आयेगा,
थामो अश्वों की बागडोर,
ना ध्वजरक्षक ही आयेगा....
sundar aahwaan desh bhakton ke naam .... aaj jaroorat hai bhaarat ke soye putron ko jaagne ki ...
बेहतरीन रचना है!
जवाब देंहटाएंdipak ...khoobsoorat shabdon ke saath bahut hi khoobsoorat rachna hai.....
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