शनिवार, 14 नवंबर 2009

खूंखार हुए कौरव के शर

खूंखार हुए कौरव के शर
खूंखार हुए कौरव के शर,
गाण्डीव तेरा क्यों हल्का है?
अर्जुन रण रस्ता देख रहा,
विश्राम नहीं इक पल का है.

तमतमा उठो सूरज से तुम,
खलबली खलों में कर दो तुम,
विध्वंस रचा जिसने जग का,
उसको आतंक से भर दो तुम.
ये दुनिया जिससे कांप रही,
उसको आज कंपा दो तुम.
कि हदें हदों की ख़त्म हुईं,
तुम देखो धैर्य भी छलका है. खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों.....

क्षण भर भी जो तुम ठहर गए,
ये धरा मृत्यु न पा जाये,
बारूद यहाँ शैतानों का,
मानव जीवन न खा जाये.
अमृत देवों के हिस्से का,
दैत्यराज न पा जाये,
पीड़ा ह्रदय की असाध्य हुई,
आँसू हर नेत्र से ढुलका है. खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों.....

क्यों खड़े अभी तक ठगे हुए,
अब कान्हा कोई न आयेगा,
थामो अश्वों की बागडोर,
ना ध्वजरक्षक ही आयेगा.
तुम स्वयं पूर्ण हो गए पार्थ,
अब गीता न कोई सुनाएगा,
जो ज्वालामुख ये दहक उठे तुम,
स्वर्णिम भारत फिर कल का है. खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों.....
दीपक 'मशाल'

21 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत सुन्दर कविता है उस्ताद । माँ शारदे का निवास है कलम मे बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद्

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  2. क्यों खड़े अभी तक ठगे हुए,
    अब कान्हा कोई न आयेगा,
    थामो अश्वों की बागडोर,
    ना ध्वजरक्षक ही आयेगा.

    बिल्कुल दिनकर जी वाले तेवर दिखा दिये आपने दीपक साहब..

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी कविता , दिनकरजी की याद आ गयी

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर रचना बन गई है!!

    जवाब देंहटाएं
  5. दीपक की मशाल की रौशनी...

    (देखना है कि हम इस प्रकाश में आगे चलने का रास्ता देख पाते हैं या नहीं)

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  6. क्यों खड़े अभी तक ठगे हुए,
    अब कान्हा कोई न आयेगा,
    थामो अश्वों की बागडोर,
    ना ध्वजरक्षक ही आयेगा.
    तुम स्वयं पूर्ण हो गए पार्थ,
    अब गीता न कोई सुनाएगा,
    जो ज्वालामुख ये दहक उठे तुम,
    स्वर्णिम भारत फिर कल का है.
    खूंखार हुए कौरव के शर, गाण्डीव तेरा क्यों.....

    दीपक,
    आज ऐसे ही पार्थ की आवश्यकता है....
    कृष्ण की नहीं अर्जुन की ज़रुरत है.....
    वीर-रस से ओत-प्रोत तुम्हारी कविता.....
    अर्जुनों का आह्वान करती हुई ...आज के सन्दर्भ मैं बहुत सटीक लगी है..
    ज़रुरत है इस पुकार पर कान देने की....बस...
    दीदी...

    जवाब देंहटाएं
  7. दी.. अगर हमें सच में ऐसा अर्जुन बनना ही है तो ना सिर्फ अपने परिवार और यार दोस्तों के लिए बल्कि सच्चाई के लिए हर बुराई का डट कर सामना करने की जरूरत है...
    जय हिंद...

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  8. ek aur shaandaar kavita ke liye badhai sweekaren.

    जवाब देंहटाएं
  9. क्षण भर भी जो तुम ठहर गए,
    ये धरा मृत्यु न पा जाये,
    बारूद यहाँ शैतानों का,
    मानव जीवन न खा जाये.
    अमृत देवों के हिस्से का,
    दैत्यराज न पा जाये,
    पीड़ा ह्रदय की असाध्य हुई,
    आँसू हर नेत्र से ढुलका है.
    खूंखार हुए कौरव के शर,
    गाण्डीव तेरा क्यों.....

    वाह.....
    बेहतरीन रचना है!

    जवाब देंहटाएं
  10. आपकी इस कविता में निराधार स्वप्नशीलता और हवाई उत्साह न होकर सामाजिक बेचैनियां और सामाजिक वर्चस्वों के प्रति गुस्सा, क्षोभ और असहमति का इज़हार बड़ी सशक्तता के साथ प्रकट होता है।

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  11. आज ऐसी वीर रस की कविताओं का अभाव सा दिखता है
    बहुत दिनों बाद युवा कलम से ऐसी सशक्त रचना पढ़कर मन का हर्षित होना स्वभाविक ही है
    मैं मनोज कुमार जी की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत हूँ
    मेरी भी बधाई स्वीकार करें

    जवाब देंहटाएं
  12. क्यों खड़े अभी तक ठगे हुए,
    अब कान्हा कोई न आयेगा,
    थामो अश्वों की बागडोर,
    ना ध्वजरक्षक ही आयेगा.
    तुम स्वयं पूर्ण हो गए पार्थ,
    अब गीता न कोई सुनाएगा,
    जो ज्वालामुख ये दहक उठे तुम,
    स्वर्णिम भारत फिर कल का है

    bahut hi achchi kavita
    ek ek shabad man chhuta hua

    जवाब देंहटाएं
  13. कौरवों के परोक्ष में दग्ध आह्वान ....

    जवाब देंहटाएं
  14. KHUSHDEEP SEHGAL
    MOBILE 09873819075

    ADDRESS
    757, SECTOR 28
    NOIDA (UP)

    E-MAIL
    sehgalkd@gmail.com

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  15. क्यों खड़े अभी तक ठगे हुए,
    अब कान्हा कोई न आयेगा,
    थामो अश्वों की बागडोर,
    ना ध्वजरक्षक ही आयेगा....

    sundar aahwaan desh bhakton ke naam .... aaj jaroorat hai bhaarat ke soye putron ko jaagne ki ...

    जवाब देंहटाएं

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