गुरुवार, 28 जनवरी 2010
एक बच्चे के जन्मदिन में...>>>>>>>> दीपक मशाल
कल
एक बच्चे के जन्मदिन में
गया था मैं,
बड़ा अच्छा मौका लगा मुझे
अपने बचपन में
वापस जाने का...
हमेशा यूं
नदिया बने रहना भी
ठीक नहीं,
कभी
झील बनना भी
अच्छा रहता है...
सोचा, चलो थोड़ी देर ही सही
वक़्त ठहरे ना ठहरे,
मैं ठहर जाऊँगा...
जलसे में पहुंचा तो
भोला सा मासूम बच्चा,
जिसे सब बड्डे बॉय कह रहे थे,
नए कपडों में
मुस्कान बिखेरता मिला...
जब जुट गए सभी मेहमान तो
केक काटने की सुध हुई...
केक काटने और
उससे पहले
मोमबत्तियां बुझाने के बजाए
मुझे वो नन्ही आँखें
मेहमानों के हाथों में थमे
उपहारों के झोले टटोलते लगीं....
मन के सच्चे बच्चों में
अब जन्मदिन मनाने की
ख़ुशी से ज्यादा,
ये उत्सुकता दिखी मुझे
कि क्या दिया है किसने..
उपहार उसे?
उसे होने लगा था अहसास ये कि
बड़े तोहफे देने वाले अंकल
बड़े होते हैं....
और मुझे ये कि
असल मासूमियत, भोलापन और
निश्छलता शब्द
अब सिर्फ शब्दकोष में होते हैं....
अचानक हुई बेमौसम बरसात ने
माहौल थोड़ा बदल दिया.
मेरी टेबिल पर रखा एक
कागज़ मुझसे दरख्वास्त करने लगा
उसको
एक कागज़ की कश्ती में तब्दील करने की....
हाथ जुट तो गए
उसकी मंशा पूरी करने को
मगर...
उस बिचारी को
पानी पे तिराता कौन?
सभी अबोध तो अपने में गुम थे,
ना बारिश से सरोकार उन्हें
और ना बहते पानी से,
तो बारिश में भीगता कौन
और नाव चलाता कौन........
तभी
एक बच्चे के हाथ से फूटे फुकने,
फुकना; जिसे खड़ी बोली में गुब्बारा कहते हैं,
से जोर की आवाज़ जो हुई
तो सबकी नज़र
चली गई थी उधर
एक लम्हे के लिए...
और फिर सब अपने-अपने काम में लग गए...
जाने क्यों याद आया मुझे..
की जब फूटते थे फुकने,
मेरी या दोस्तों की वर्षगांठों में
तो खुश होकर
लगते थे हम उन्हें मुँह में अन्दर खींचके
छोटी-छोटी फुकनी/टिप्पियाँ बनाने में....
और मज़ा लेते थे,
उन्हें दूसरों के माथों पे फोड़ के...
हँ हँ....
अब तो बच्चों को फुकनी बनानी भी नहीं आती...
तभी पीछे की कुर्सी पर बैठा एक बच्चा
कुछ खीझकर बोला-
''मम्मी, कितना टाइम और लगेगा यहाँ,
मुझे घर जाके होमवर्क भी करना है...''
सुन के ऐसे लगा
कि जैसे
बच्चे अब बड़े हो गए हैं,
वो बच्चे नहीं रहे
बच्चे अब बड़े हो गए हैं.....
दीपक मशाल
चित्र अपनी तूलिका से
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टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
भावों को इतनी सुंदरता से शब्दों में पिरोया है
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना....
sach kaha aaz ke bhoutikvadi yug main bachpana bacha hi kahan hai...
जवाब देंहटाएंbahut khoob ......bachpan ab bachpan na raha
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar kavita...
जवाब देंहटाएंmaine shayd yah pahle padhi hai..aur bahut prabhavit bhi hui thi..aaj ek baar fir padh kar bahut accha laga...acchi kritiyon ko naye pathakon ke liye lekar aana bhi cahiye...aur poorane pathkon ko bhi yaad dilana chahiye..
sachmuch ab bachpan kahan raha bacchon mein...
दीपक मशाल
चित्र अपनी तूलिका से
padh kar pata chala ki tum chitrkaari mein bhi nipun ho..bahut hi sundar banaii hai ye painting..
kavita aur paiting dono ke liye bahut badhaii..
बच्चे अब बड़े हो गए हैं.....
जवाब देंहटाएंhmm
भावों को बेहतरीन रूप दिया है | बिलकुल सच कहा है ... बच्चे अब बड़े हो गए हैं ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर विवेचना!
जवाब देंहटाएंइस बालक को जन्म-दिन की बधाई!
आजकल बच्चे समय के पहले ही बड़े हो जा रहे हैं..
जवाब देंहटाएंबढ़िया सार्थक रचना!
सरलता और सहजता का अद्भुत सम्मिश्रण बरबस मन को आकृष्ट करता है। चूंकि कविता अनुभव पर आधारित है, इसलिए इसमें अद्भुत ताजगी है।
जवाब देंहटाएंहर बड़े में बचपन कहीं छुपा रहता है।
जवाब देंहटाएंलेकिन बच्चे अब बड़े होने लगे हैं। सही है।
बदलते दौर में बचपन भी खो रहा है । अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबचपन के दिन भी क्या दिन थे...
जवाब देंहटाएंएक बार जनाब हमने भी ऐसी हरकत की थी कि मम्मी आज तक याद करती हैं...फर्स्ट अप्रैल से एक हफ्ता पहले ही मासूमियत के साथ पूरे मोहल्ले के बच्चों को न्योता दे आए कि मेरा बर्थडे है...अब फर्स्ट अप्रैल को सारे बच्चे गिफ्ट लेकर हमारे घर...और मामला गंभीर होते देख अपुन छत पर जाकर छुप गए..मम्मी हैरान परेशान...माज़रा क्या है....बच्चों ने कहा आज खोशी (मेरा निकनेम यही है) का बर्थडे है...मम्मी सोचने लगीं कि ये १८ जुलाई कब से १ अप्रैल को आने लगी...मम्मी ने कहा, बच्चों आप को गलतफहमी हो गई...सब बच्चे एक सुर में बोले...खोशी हमसे
खुद कहके आया है...कुछ बच्चे अपनी मम्मियों को भी बुला लाए...मम्मी ने बड़े भाई को कह कर मुझे ढूंढवाया...अब
सब बच्चों ने उलटे गाना गाकर मेरा ही अप्रैल फूल बनाया...और हमारी मम्मी जी को सब को पेस्ट्री, समोसे, कोल्ड ड्रिंक्स की दावत मुफ्त में देनी पड़ी और किसी का गिफ्ट भी हमें नहीं लेने दिया...वो झूठ का जन्मदिन आज भी याद आता है तो चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है...
जय हिंद...
सही बात है अब बच्चे बच्चे नही रहे मगर तुम अभी भी एक अबोध बालक हो
जवाब देंहटाएंबचपन मे ही घूमे जा रहे हो बहुत सुन्दर रचना है आशीर्वाद्
deepak ji !behad sundar prastuti aur sach me ab bachpan nhi raha gaya
जवाब देंहटाएंhumare bhvishya ka bachpan kisi ne chura liya hai. bachche hi humara bhavishya hai uar hum apne bhavishya ko lekar kab se pareshan hai...
deepak ji
जवाब देंहटाएंaaj bachche aur unka bachpan raha hi kahan hai ..........aajkal to paida hi bade hote hain kyunki un par sabki aakankshaon ka bojh bachpan se padne lagta hai aise mein kaise ummeed karein unse unke bachpan mein rahne ki,bal sulabh cheshtayein karne , wo bachpan ki befikri ki.........aaj kal bachche bade hi hote hain.
Dear
जवाब देंहटाएंaapke kavya mai jeevan ka saar hai, sab kuchh
sach hai
sanjay
बेहतरीन रचना...वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज
ha ha ha.. koi yahan bhi dushmani nikaal raha hai chatke wapas leke aur negative laga ke :)
जवाब देंहटाएंlage raho bhai
रंजिशों से मंजिलों की दूरियाँ बढ़ जायेंगी।
जवाब देंहटाएंबात को पहले तुला में तोलना ही चाहिए!
बालकों की बात का कुछ भी बुरा लगता नही,
किन्तु दानिशमन्द को प्रिय बोलना ही चाहिए!
वाह जी सच्ची बात कह दी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...बच्चे तो दिनोदिन समझदार होते जा रहें हैं...और मासूमियत छिनती जा रही है...
जवाब देंहटाएंVery Nice Poem. Keep it up.
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ पधारे और जुड़े:
http://groups.google.com/group/AHWAN1