कभी होती थी जो लब पे, वो अब बात क्यों ना है
नहीं लगता साथ होकर भी, अब तुम साथ हो मेरे
मिरे हाथों में होता था जो, वो अब हाथ क्यों ना है
नहीं चंदा कहीं दिखता, सितारे भी नदारद हैं
कभी जन्नत सी होती थी, वो अब रात क्यों ना है
कि क्यों फैला है सन्नाटा, बिरादर तेरी बस्ती में
संगीत है ना गीत है, अरे वो साज़ क्यों ना है
नहीं बरसा है सावन फिर, हैं पत्ते सूखते सारे
गया भादों भी आधा पर, यहाँ बरसात क्यों ना है
अंधेरों की कई फूँकें, ये दीपक लील बैठी हैं
क्यों हाथों में है फिर शम्मा, मशाल हाथ क्यों ना है.
दीपक मशाल
दुल्हन के जेवर आज भी गिनते हैं हर जगह
दुल्हे के तेवर आज भी मिलते हैं हर जगह
कमते हैं जेवरात तो बढ़ते हैं तेवरात
बाबुल के सर आज भी झुकते हैं हर जगह
दुल्हे के तेवर आज भी मिलते हैं हर जगह
कमते हैं जेवरात तो बढ़ते हैं तेवरात
बाबुल के सर आज भी झुकते हैं हर जगह
दीपक मशाल
कि क्यों फैला है सन्नाटा, बिरादर तेरी बस्ती में
जवाब देंहटाएंसंगीत है ना गीत है, अरे वो साज़ क्यों ना है
वाह दीपक जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति....
बाबुल के सर हमेशा ही झुकेंगे यह सच है . बहुत सुन्दर शब्दो का शोध
जवाब देंहटाएंजैसे उदासी भी आई जबरदस्ती,
जवाब देंहटाएंआज शायरी में वो बात क्यों न है ?
अंधेरों की कई फूँकें, ये दीपक लील बैठी हैं
जवाब देंहटाएंक्यों हाथों में है फिर शम्मा, मशाल हाथ क्यों ना है.
behtareen....
दुल्हन के जेवर आज भी गिनते हैं हर जगह
दुल्हे के तेवर आज भी मिलते हैं हर जगह
कमते हैं जेवरात तो बढ़ते हैं तेवरात
बाबुल के सर आज भी झुकते हैं हर जगह
lajabaab...
bahut gahre utri ye panktiyan.
तुम्हारे दिल की अब धड़कन, हमारे साथ क्यों ना है
जवाब देंहटाएंकभी होती थी जो लब पे, वो अब बात क्यों ना है
--
बहुत खूब!
हर शेर लाजवाब है!
क्या खूब लिखा है !!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब । क्या बात है ।
जवाब देंहटाएंसमाज का मार्मिक सत्य।
जवाब देंहटाएंऐसे तो हर बात ही लाजवाब है पर इसका क्या कहना
जवाब देंहटाएं"नहीं बरसा है सावन फिर, हैं पत्ते सूखते सारे
गया भादों भी आधा पर, यहाँ बरसात क्यों ना है"
पर क्या करें मन पत्तों सा सूखता है और ऑंखें किसी सावन भादों को नहीं बस बरसना ही जानती हैं
ख़ूब कहा
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब कहा जी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हर पंक्ति में खूबसूरती है और हर शब्द में महक..........
वाह !
वाह !
वाह !
कमते हैं जेवरात तो बढ़ते हैं तेवरात
जवाब देंहटाएंबाबुल के सर आज भी झुकते हैं हर जगह
ध्रुव सत्य है भाई
वाह जी बहुत सुंदर लिखा, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे दीपक, लेकिन हम इसे पढ रहे हैं तो ’क्यों ना’ की जगह ’नहीं’ कर दिया है, इजाजत है न? हा हा हा।
जवाब देंहटाएंबाबुल के सर वाली आखिरी पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं।
आखिरी पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं।
जवाब देंहटाएंThanks for b'day wishes
बहुत बढ़िया ...अंतिम पंक्तिय बहुत संवेदनशील ..
जवाब देंहटाएंमजाल भाई, मुआफी चाहता हूँ.. और वादा करता हूँ अगली बार ऐसी गलती नहीं होगी कि आपको निराश होना पड़े..
जवाब देंहटाएंकि क्यों फैला है सन्नाटा, बिरादर तेरी बस्ती में
जवाब देंहटाएंसंगीत है ना गीत है, अरे वो साज़ क्यों ना है
-अच्छा शेर निकाला है. बहुत बढ़िया.
दीपक जी, गजल का भाव सब बहुत अच्छा है...कहीं कहीं बहर से बाहर है शेर..लेकिन बात दिल को छूती है...अऊर अंत में शेर का पूँछ त हम जईसा बेटी के बाप ही समझ सकते हैं!!
जवाब देंहटाएंtumhaari kavitayein hamesha hi saarthak vishayon par hoti hain..
जवाब देंहटाएंbahut hi jaagruk insaan ho tum
accha lagta hai tumhein padhna..
khush raho..
didi..
बाबुल के सर आज भी झुकते हैं हर जगह|
जवाब देंहटाएंअकेले यही मिसरा पूरी ग़ज़ल कि दाद पाने कि कुव्वत रखता है|
बेहतरीन
ब्रह्माण्ड
क्या कहने बहुत उम्दा ग़ज़ल हर शेर काबिले तारीफ है और बेटी के पिता की वेदना को बखूबी बयां किया आपने ...
जवाब देंहटाएंमजा आ गया जी !!
जवाब देंहटाएंनहीं बरसा है सावन फिर, हैं पत्ते सूखते सारे
जवाब देंहटाएंगया भादों भी आधा पर, यहाँ बरसात क्यों ना है
दर्द को शब्द दे दिये।
दुल्हन के जेवर आज भी गिनते हैं हर जगह
दुल्हे के तेवर आज भी मिलते हैं हर जगह
कमते हैं जेवरात तो बढ़ते हैं तेवरात
बाबुल के सर आज भी झुकते हैं हर जगह
क्या कहूं इस पर ……………बदलाव अभी सिर्फ़ कुछ पन्नों मे ही सिमटा हुआ है बाकी सब जगह यही तो हाल है ………………वक्त को भी वक्त लगेगा बदलने मे।
दुल्हन के जेवर आज भी गिनते हैं हर जगह
जवाब देंहटाएंदुल्हे के तेवर आज भी मिलते हैं हर जगह
कमते हैं जेवरात तो बढ़ते हैं तेवरात
बाबुल के सर आज भी झुकते हैं हर जगह
बिलकुल सही कहा पूरी कविता लाजवाब है। आशीर्वाद।
तुम्हारे दिल की अब धड़कन, हमारे साथ क्यों ना है
जवाब देंहटाएंकभी होती थी जो लब पे, वो अब बात क्यों ना है
क्या बात है इस पंक्ति को तो सुर में ढाला जा सकता है....:)
बेहतरीन रचना..
दुल्हन के जेवर आज भी गिनते हैं हर जगह
जवाब देंहटाएंदुल्हे के तेवर आज भी मिलते हैं हर जगह
कमते हैं जेवरात तो बढ़ते हैं तेवरात
बाबुल के सर आज भी झुकते हैं हर जगह ..
दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ ... सच कहा है ... अभी बहूत दूर है दिल्ली इस विषय पर कम से कम ...
कुछ नहीं बदला!...सब कुछ वही है!...नारी भी वही है, पुरुष भी वही है!...साज-शृंगार और पहनावे में बदलाव, तो उपरी तौर का बदलाव है.....मानसिकता तो वही सदियों पुरानी है!...बहुत सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंantim panktiyaan...kamaal ki hain..too gud!
जवाब देंहटाएंBAHUT SATEEK
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्तियाँ सारा सच बयां कर गयीं ,...और कुछ कहने को बचा ही नहीं ...
जवाब देंहटाएंभाई आखिर में तो मन को छू गये ।
जवाब देंहटाएंकुछ अधूरे से शब्द ...अधूरेपन को बयान करते हुए !
जवाब देंहटाएंदर्द को शब्दों में बयां करती बेहद अच्छी रचना दीपक जी...
जवाब देंहटाएं