आदरणीय अग्रज श्री राजेन्द्र स्वर्णकार जी द्वारा मेरी इस रचना को ग़ज़ल का स्वरुप दिया गया है.. उनका बहुत आभारी हूँ..
बड़ी मुश्किल से हाथ आए , तुम्हें हम जाने कैसे दें
अभी पैदा हुई ख़्वाहिश , अभी मर जाने कैसे दें
अभी तो रूठ कर आया है इक बादल समंदर से
ज़मीं प्यासी है , इसको लौट कर अब जाने कैसे दें
तुम्हीं ने आज़माया है , मेरी सच्चाई को यारों
तुम्हारे झूठ पर पर्दा कोई पड़ जाने कैसे दें
' भुला देना न मुझको ' - यूं कहा करते थे तुम अक्सर
न भूलेंगे तुम्हें हम … टूट ये दिल जाने कैसे दें.
इन्हीं ज़ख़्मों की ख़ातिर पूछने आते वो घर मेरे
कोई ज़ख़्मों से कहदे , हम उन्हें भर जाने कैसे दें
बरी हो'के तू निकला है, अदालत से अभी , लेकिन
मुकद्दमे और भी हैं जो कहे - ' हम जाने कैसे दें '
जहां को तू बदल डाले , नहीं इतना भी तू क़ाबिल
'मशाल' अब जां पॅ तुझको खेलते ही जाने कैसे दें
दीपक मशाल
अब यहाँ देखिये क्या कमाल की ट्रेनिंग दी गई है इन साहब को कि गणित भी आता है..अब कोई बच्चा जो काहे कि मैथ्स मुश्किल है तो कौन मानेगा.. मास्टर तो यही कहेंगे कि ''कुत्तों को भी गणित आता है''
अब यहाँ देखिये क्या कमाल की ट्रेनिंग दी गई है इन साहब को कि गणित भी आता है..अब कोई बच्चा जो काहे कि मैथ्स मुश्किल है तो कौन मानेगा.. मास्टर तो यही कहेंगे कि ''कुत्तों को भी गणित आता है''
Pahle ye galatfahmi ye hui ki mujhe 'cooker'yani pressure cooker laga!Khana jo bana rahi thi!
जवाब देंहटाएंAb video dekhti hun...
Rachana to khair..kya kahne!
दीपक जी
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ग़ज़ल कहने के लिए आपको और आपके साथ साथ राजेंद्र स्वर्णकार जी को भी बधाई !
amazing video.
जवाब देंहटाएंbehatareen gazal .
very nice...............
जवाब देंहटाएंlagta hai ab math pahle jaisa tilism nahi rah jayega.gazal bhi bhoot achchhi lagi.
हमने तो गज़ल ही पढ़ी है अभी बहुत उम्दा है ..
जवाब देंहटाएंहा हा , विडियो मस्त है दीपक जी,
जवाब देंहटाएंऔर गज़ल तो है ही उम्दा
बेहतरीन गज़ल ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर गज़ल है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर.........हर बार की तरह
जवाब देंहटाएंजय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड और साथ में जय श्री राम
आप की रचना 10 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
गजल तो आप की हमेशा बहुत अच्छी होती है, लेकिन आज इस विडियो ने भी कमाल कर दिया, बहुत सुंदर जी
जवाब देंहटाएंआजकल बहुत ही बढ़िया लिखने लगे हो...लेखन में निखार आता ही जा रहा है...जारी रहें यह प्रवाह...ढेरों शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंलाजवाब। उम्दा ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंआंच पर संबंध विस्तर हो गए हैं, “मनोज” पर, अरुण राय की कविता “गीली चीनी” की समीक्षा,...!
बरी हो'के तू निकला है, अदालत से अभी , लेकिन
जवाब देंहटाएंमुकद्दमे और भी हैं जो कहे - ' हम जाने कैसे दें '
-ये कुकर महाराज तो विवादित हो लिए हैं.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल .......बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंभुला देना न मुझको और न भूलेंगे तुम्हें हम.... वाह वाह
जवाब देंहटाएंये कुकुर तो गजब ही कर दिये हैं
"इन्हीं ज़ख़्मों की ख़ातिर पूछने आते वो घर मेरे
जवाब देंहटाएंकोई ज़ख़्मों से कहदे , हम उन्हें भर जाने कैसे दें"
बहुत शानदार गज़ल। दीपक और राजेन्द्र जी दोनों को बहुत बहुत बधाई।
वीडियो अभी देखना है।
प्रिय दीपक ,
जवाब देंहटाएंपढकर अच्छा लगा ! आज से राजेन्द्र भाई गज़लतराश हुए !
अच्छी रचना दीपक जी...
जवाब देंहटाएंमुझे सुझाव देने के लिए..धन्यवाद
मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगेगा...यदि आप मेरी गलतियों को सुधारने में मेरी मदद करें...
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल..... बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गज़ल्।
जवाब देंहटाएंसुंदर ,सुसज्जित गजल ।
जवाब देंहटाएंअभी तो रूठ कर आया है इक बादल समंदर से
जवाब देंहटाएंज़मीं प्यासी है , इसको लौट कर अब जाने कैसे दें
वाह....
तुम्हीं ने आज़माया है , मेरी सच्चाई को यारों
तुम्हारे झूठ पर पर्दा कोई पड़ जाने कैसे दें...
कमाल का शेर है...
दीपक जी, आपको और राजेन्द्र स्वर्णकार जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
बहुत लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम.
....बहुत ही उमदा गजल है....आप को बहुत बहुत बधाई और श्री राजेन्द्र स्वर्णकार जी को भी बहुत बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल
जवाब देंहटाएंआज प्रूफ़ हो गया गणित कुत्तो को ज्यादा आती है .
दीपक जी नमस्कार! बहुत ही प्रभावशाली एक लाजबाव गजल कही हैँ आपने। आभार! -: VISIT MY BLOG :- जब तन्हा होँ किसी सफर मेँ ............. गजल को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।
जवाब देंहटाएंजहां को तू बदल डाले , नहीं इतना भी तू क़ाबिल
जवाब देंहटाएं'मशाल' अब जां पॅ तुझको खेलते ही जाने कैसे दें
वाह बहुत शानदार गज़ल है बधाई और वीडीओ भी बहुत मज़ेदार है। आशीर्वाद।
जहां को तू बदल डाले , नहीं इतना भी तू क़ाबिल
जवाब देंहटाएं'मशाल' अब जां पॅ तुझको खेलते ही जाने कैसे दें
हर बार की तरह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल
गणेश चतुर्थी और ईद की बधाइयां, दीपक जी!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दीपक जी...मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए....और मेरी कविता को इतना महत्वपूर्ण स्थान देने के लिए...
जवाब देंहटाएंमसि कागद की मशाल जलाए रखिए.
जवाब देंहटाएंलिखते तो आप लाजवाब सदा ही हैं...इसबार भी कुछ कम नहीं है...लेकिन यहाँ गणितज्ञ कुत्ते से मिलवाकर आपने अचंभित कर दिया...सचमुच यह किसी अजूबे से कम नहीं...
जवाब देंहटाएंgazal aur video, dono bahut sundar
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