शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

कब तक साथ निभाओगे तुम------------>>>दीपक मशाल


देखो जग ने छोड़ दिया है
मुझको सबने छोड़ दिया है
कब तक साथ निभाओगे तुम
कब मुझसे कतराओगे तुम
हाथ मेरे जब खाली होंगे
क्या तब साथ में आओगे तुम

चट्टानें पत्थर सब उड़के
जब मेरी जानिब दौड़ेंगे
तूफाँ कितने अन्दर-बाहर
जब मेरी राहें मोडेंगे
क्या मेरी बांह में बाँहें देके
इन सबसे टकराओगे तुम
कब तक साथ....

पैर थकेंगे मेरे जब ये
राह कोई चलने से पहले
मंजिल का हो होश बाद में
मैं खुद के होश सम्हालूँ पहले
घिसट रहेंगे कदम मेरे जब
क्या तब साथ निभाओगे तुम
कब तक साथ....

ऐसे ताने सुनता हूँ मैं
जैसे गाने सुनता हूँ मैं
सांझ ढले तक उधड़ा देता
सुबह ख्वाब जो बुनता हूँ मैं
क्या सूखी नदिया की धारा में
अपनी नाव चलाओगे तुम
कब तक साथ....

छिन्न भी होगा भिन्न भी होगा
इस जग की नज़रों में जब सब
तन ये मेरा मन ये मेरा
निर्वस्त्र हो जाएगा जब सब
क्या काँधे से चिपका के कांधा
सबसे नज़र मिलाओगे तुम
कब तक साथ...

अब तो रब भी रूठ गया है
अन्दर सब कुछ टूट गया है
इक रीता कमरा छूट गया है
कोई अपना लूट गया है
सबने तो ठुकरा डाला है
कब मुझको ठुकराओगे तुम
कब तक साथ....
दीपक मशाल 
चित्र साभार गूगल से

33 टिप्‍पणियां:

  1. कब तक साथ निभाओगे तुम

    जब तक सांस मे सांस हो
    जब तक बाकी कोई आस हो
    जब तक तेरा विश्वास हो
    सब तेरा साथ निभायेंगे


    बहुत सुन्दर लिखा है दीपक्………………भाव प्रवण्।

    जवाब देंहटाएं
  2. जब तक सांस मे सांस हो
    जब तक बाकी कोई आस हो
    जब तक तेरा विश्वास हो
    सब तेरा साथ निभायेंगे
    भावमय प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. वो ग़ालिब का शेर है ना,
    कभी पुकार लेना यूहीं मुझे मेहरबाँ हो कर ,
    मैं बीता हुआ वक़्त नहीं, जो दुबारा लौट ना सकूँ !
    सुन्दर शब्द रचना.

    जवाब देंहटाएं
  4. छोटे भाई, आल इज़ वैल ना?
    अगर कुछ गड़बड़ है तो ’फ़कीरा, चल चला चल’ वाला गाना कम से कम आठ बार सुनना
    और
    महज रचना है तो बहुत खूब, अगली कड़ी में जवाब भी आये तो अच्छा लगेगा।

    जवाब देंहटाएं
  5. @संजय भाई,
    सिर्फ एक रचना ही है इससे ज्यादा कुछ नहीं.. आपके स्नेह के लिए शुक्रिया नहीं कहूँगा..

    जवाब देंहटाएं
  6. यौवन की तपन हो या , वृद्धावस्था की शीत
    हर पल साथ निभाए जा , सच्चा मन का मीत ।

    एक ढूंढ लो यार ।

    जवाब देंहटाएं
  7. ऐसे ताने सुनता हूँ मैं
    जैसे गाने सुनता हूँ मैं
    सांझ ढले तक उधड़ा देता
    सुबह ख्वाब जो बुनता हूँ मैं
    क्या सूखी नदिया की धारा में
    अपनी नाव चलाओगे तुम
    कब तक साथ....

    --
    बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने!
    --
    कल तो आपकी चर्चा का दिन है चर्चा मंच पर!

    जवाब देंहटाएं
  8. अब तो रब भी रूठ गया है
    अन्दर सब कुछ टूट गया है
    इक रीता कमरा छूट गया है
    कोई अपना लूट गया है
    सबने तो ठुकरा डाला है
    कब मुझको ठुकराओगे तुम
    कब तक साथ....

    जवाब देंहटाएं
  9. जब से तुम मेरे मीत हो गए
    मेरी सरगम के संगीत हो गए
    बजते रहते हैं मेरे कानो में सदा
    जैसे तेरे बोल मेरे गीत हो गए

    बस कुछ ऐसे ही मन में आकि
    मेरी रेड़ियों पर चली कुछ लाईने।

    अच्छी कविता
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रतिकूलता में जो साथ हो उससे प्रश्न ?

    जवाब देंहटाएं
  11. एक गीत याद आ गया ..."जब कोई बात बिगड जाये ....तुम देना साथ मेरा ....

    बहुत ही ले में लिखा है ये गीत दीपक !
    छिन्न भी होगा भिन्न भी होगा
    इस जग की नज़रों में जब सब
    तन ये मेरा मन ये मेरा
    निर्वस्त्र हो जाएगा जब सब
    क्या काँधे से चिपका के कांधा
    सबसे नज़र मिलाओगे तुम
    कब तक साथ.

    ये पंक्तियाँ कमाल हैं..

    जवाब देंहटाएं
  12. रचना को मात्र रचना मानते हुए:

    बेहतरीन रचना!!

    जवाब देंहटाएं
  13. बड़ा ही सुन्दर प्रश्न है, साथ रहने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  14. ऐसे ताने सुनता हूँ मैं
    जैसे गाने सुनता हूँ मैं
    सांझ ढले तक उधड़ा देता
    सुबह ख्वाब जो बुनता हूँ मैं
    क्या सूखी नदिया की धारा में
    अपनी नाव चलाओगे तुम


    बहुत से प्रश्न करती....और मन के अंतर्द्वंद को कहती खूबसूरत रचना

    जवाब देंहटाएं
  15. 'कब तक साथ निभाओगे तुम'...
    अच्छी रचना...

    जवाब देंहटाएं
  16. ऐसे ताने सुनता हूँ मैं
    जैसे गाने सुनता हूँ मैं
    सांझ ढले तक उधड़ा देता
    सुबह ख्वाब जो बुनता हूँ मैं
    क्या सूखी नदिया की धारा में
    अपनी नाव चलाओगे तुम
    कब तक साथ....

    kya baat hai deepak ko kabhi is tareh se nahi dekha...deepak to roshn ho roshni dene ke liye hai.
    lekin sach me kavita bahut bahut acchhi hai.
    dil ko chhu gayi.

    जवाब देंहटाएं
  17. वाह..............क्या ख़्यालात हैं ......... बहुत सुन्दर..................

    जवाब देंहटाएं
  18. ऐसे ताने सुनता हूँ मैं
    जैसे गाने सुनता हूँ मैं
    सांझ ढले तक उधड़ा देता
    सुबह ख्वाब जो बुनता हूँ मैं
    क्या सूखी नदिया की धारा में
    अपनी नाव चलाओगे तुम

    बड़ी ख़ूबसूरत पंक्तियाँ हैं और बहुत ही गहन भाव हैं भाई.....सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  19. हाथ मेरे जब खाली होंगे
    क्या तब साथ में आओगे तुम....
    तब पहचान हो जाएगी। बहुत अच्छी रचना।

    जवाब देंहटाएं
  20. कब तक साथ निभाओगे तुम
    कब मुझसे कतराओगे तुम
    हाथ मेरे जब खाली होंगे
    क्या तब साथ में आओगे तुम...

    व्यावसायिक होते रिश्तों के बीच यह मासूम सवाल मन में उठता ही है ..!

    कब तक साथ निभाओगे या कब कतराओगे, कब ठुकराओगे ...
    कभी लगता है सिर्फ सवाल है , तो कभी अविश्वास में छिपा गहरा विश्वास ...

    मन में उमड़ घुमड़ करते विचारों पर अच्छी रचना ..!

    जवाब देंहटाएं
  21. अब तो रब भी रूठ गया है
    अन्दर सब कुछ टूट गया है
    इक रीता कमरा छूट गया है
    कोई अपना लूट गया है
    सबने तो ठुकरा डाला है
    कब मुझको ठुकराओगे तुम
    mann ki duvidha ko achhe se likha hai

    जवाब देंहटाएं
  22. जो साथ निभाना जानता है....वह सुख दुःख में साथ ही रहता है!....बहुत सुंदर अनुभूति, धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  23. .
    कसमे-वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं , बातों का क्या,
    कोई किसी का नहीं ये झूठे ,नाते हैं नातों का क्या ।
    .

    जवाब देंहटाएं
  24. हाथ मेरे जब खाली होंगे
    क्या तब साथ में आओगे तुम

    यक्ष प्रशन...........

    शायद ही जवाब मिले..

    जवाब देंहटाएं
  25. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 7- 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  26. बेहद खूबसूरत रचना बन पड़ी है दीपक जी ...

    जवाब देंहटाएं
  27. ऐसे ताने सुनता हूँ मैं
    जैसे गाने सुनता हूँ मैं
    सांझ ढले तक उधड़ा देता
    सुबह ख्वाब जो बुनता हूँ मैं
    क्या सूखी नदिया की धारा में
    अपनी नाव चलाओगे तुम
    कब तक साथ...

    बहुत खूब .. क्या लाजवाब लिखा है ... पर जो साथ निभाने का वादा करता है वो निभाता भी है ...

    जवाब देंहटाएं

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