मंगलवार, 17 अगस्त 2010

एक भीगी मुस्कराहट..---------->>>दीपक मशाल


मैं बहुत शर्मिंदा हूँ कि समय कुछ कम है इसलिए आजकल आपके ब्लॉग पर झाँक नहीं पा रहा.. पर वादा कि जल्दी ही आऊंगा.. अगर बुरा ना मानें तो इस कविता के बारे में और इसके शीर्षक के बारे में अपनी बेशकीमती राय जरूर दें.. क्योंकि इसे मैं अपने अगले काव्य संग्रह का शीर्षक बनाना चाहता हूँ..



जिंदगी के कड़ाहे में खौलते हालात..

चुपके से वक़्त का हलवाई
डाल देता है उसमे
उबलने के लिए साँसों को..

जलती, तड़पती, उछलती साँसें
बचतीं, उतरातीं..
तो कभी डूबतीं..

आखिर में जब इस सबसे गुजरी कोई साँस
इस तड़प इस दर्द को
बाँट लेती है कोरे पन्नों के साथ
एक रचना में ढाल...
तो बेजुबान पन्ने
जुबां वालों को करते हैं मजबूर
कभी आह तो कभी वाह उचारने को

पर किन्हीं आँखों का एक जोड़ा
महसूसता है कुछ अलग
वो बेसबब मुस्कुराती रचनाओं की सीपों के पीछे
तलाशने लगता है खारे मोती
तो बरबस भीग जाती हैं मुस्कुराहटें..

और सूखे ज़ज्बातों की रेत के बीच
निर्मित हो जाती है एक मृग मरीचिका
एक भीगी मुस्कराहट..
दीपक मशाल
 

37 टिप्‍पणियां:

  1. दीपक,
    कितनी सादगी से कितनी गहरी बात कह दी……………यही तो तुम्हारा जादू है जो पढने वाले को मजबूर कर देता है ………………कविता क्या है जैसे एक जलता हुआ अंगारा जिस पर गलती से पैर पड गया हो……………दिल को अन्दर तक झिंझोड्ती है………………शीर्षक ने तो कविता मे चार चाँद लगा दिये हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. जिंदगी के कढ़ाहे में खौलते हालात
    और वक़्त का हलवाई
    डाल देता है उसमे
    उबलने के लिए साँसों को..
    जलती, तड़पती, उछलती साँसें
    लगती हैं कभी बचने कभी उतराने
    कभी डूबने..

    उफ़्……………सिर्फ़ दर्द ही दर्द भरा है यहाँ

    पर किन्हीं आँखों का एक जोड़ा
    महसूसता है कुछ अलग
    वो मुस्कुराती रचनाओं की सीपों के पीछे
    तलाशने लगता है खारे मोती
    तो बरबस भीग जाती हैं मुस्कुराहटें..

    ओह! यहाँ तो जैसे कविता कविता न रहकर एक आईना बन गयी है ……………कहाँ से ढूँढकर लाये हो ये बिम्ब और कितना डूब कर लिखी है ये।

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  3. दीपक
    आज तुम ने मुझे निशब्द कर दिया।

    और सूखे ज़ज्बातों की रेत के बीच
    निर्मित हो जाती है एक मृग मरीचिका
    एक भीगी मुस्कराहट..

    अब इसके लिये क्या कहूँ?
    मेरी तो जान ही निकाल दी है इस कविता ने और दिल जैसे कहीं खो गया है।

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  4. अगर हो सके तो इसे मुझे मेल कर देना शुक्रगुज़ार होंगी।

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  5. जलती, तड़पती, उछलती साँसें
    लगती हैं कभी बचने कभी उतराने
    कभी डूबने..
    बहुत गहराई है .. उदात्त बिम्ब कविता को ऊँचाई प्रदान कर रहे हैं
    शीर्षक भी बहुत उम्दा है कविता संग्रह के शीर्षक सा.

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  6. कवि हृदय हो ..इसकी परिचायक यह कविता...
    शब्दों से बहुत अच्छा खेल लेते हो...
    प्रभावशाली लगी है..
    ख़ुश रहो ..
    दीदी..

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत गहराई है .. उदात्त बिम्ब कविता को ऊँचाई प्रदान कर रहे हैं
    शीर्षक भी बहुत उम्दा है कविता संग्रह के शीर्षक सा.

    जवाब देंहटाएं
  8. दीपक,
    कितनी सादगी से कितनी गहरी बात कह दी…

    जवाब देंहटाएं
  9. दिल की गहराइयों से लिखी खूबसूरत बिम्बो वाली कविता इस्किये पाठक के दिल की सतह को छूती है
    संवेदनशील दिल की संवेदनशील कविता.
    बहुत सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  10. गहरी सोच है इस रचना में ।
    इतनी सरल भी नहीं है ।
    बहुत बढ़िया ।

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  11. स्नेहाशीष----
    और कुछ नहीं बस -----
    "A very common person -------------like a deer to search the 'kasturi' which is in my--------------- भीगी मुस्कराहट.."

    जवाब देंहटाएं
  12. प्रिय दीपक ,
    सबसे पहले फोटो पर :
    यह कि इसे किस नाटक से लिया गया है जरुर बताया करें विवरण लिखा करें !

    फिर शीर्षक पर :
    कविता का शीर्षक पढकर एक फिल्म का गीत याद हो आया शायद उसका नाम साथिया था ,विवेक ओबेराय और रानी मुखर्जी अभिनीत! बोल कुछ यूं थे...साथिया मद्धम मद्धम तेरी गीली हंसी ! फिल्म मैंने देखी नहीं बस टीवी पर विज्ञापन याद हैं सो लिख डाला ! मेरे ख्याल से किताब के लिए कुछ और नए प्रयोग करें !

    और कविता पर कुछ :
    जीवन के खौलते हुए कड़ाह पर तडपती उछलती हुई सांसों से कोरे पन्ने पर उतरते दर्द पर आह ही निकल सकती है ! वाह तो कोई बेमुरव्वत ही कह सकेगा ! मुझे लगता है कि कविता में दर्द की कंटीन्यूटी के हिसाब से तीसरे हिस्से में 'मुस्कराती रचनाओं'के बजाये 'बेसबब मुस्कराती रचनाओं' का होना शायद बेहतर होता ! और कविता में तीसरे के होते हुए चौथा हिस्सा गैर ज़रुरी लगा !

    अंत में :
    मैंने जो कहा वो एक पाठक के नज़रिये से ,कविता में मेरा दखल नहीं ही मानियेगा !

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  13. बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  14. बहुत गहराई लिए हुये ख़ूबसूरत रचना..

    जवाब देंहटाएं
  15. :):) कविता दर्द भरी है....पर वक्त का हलवाई ...बहुत बढ़िया बिम्ब लगा ...चाशनी में डाल कर वर्फी या लड्डू तो बना ही देगा ...

    खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  16. और सूखे ज़ज्बातों की रेत के बीच
    निर्मित हो जाती है एक मृग मरीचिका
    एक भीगी मुस्कराहट..


    -क्या बात है....


    ’भीगी मुस्कराहट’....बढ़िया शीर्षक!!

    जवाब देंहटाएं
  17. ख़ूबसूरत बिंब कवि के काव्य-शिल्प को अधिक भाव-व्यंजक तो बना ही रहे हैं, दूसरे कवियों से उन्हें विशिष्ट भी बनाते हैं।

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  18. बहुत खूब. मुस्कुराहट की तुलना मृग मरीचिका से... सुन्दर है.

    जवाब देंहटाएं
  19. दीपक कई बार तुमको पढ़ कर लगता है की अपना रायटोक्रेट कुमारेन्द्र ब्लॉग बंद करके अपने दूसरे साहित्यिक ब्लॉग पर ही नियमित लिखना शुरू किया जाए. बहुत ही बढ़िया लिखा है. इससे अच्छा शीर्षक तुमको अपनी कृति के लिए नहीं मिलेगा, कोई कहे कुछ भी. बिम्ब भी अछे और नए हैं, नई कविता के मानकों की तरह. (वैसे अब कविता में मानक नहीं रह गए हैं) इसके बाद भी तुम अपनी कलम से कुछ न कुछ नया दे रहे हो.
    शुभाशीर्वाद.
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

    जवाब देंहटाएं
  20. आदरणीय अली सर, कुमारेन्द्र चाचा जी.. आप लोगों का दिशा निर्देशन की सख्त जरूरत है.. मेरी कमियाँ बताने में संकोच ना करें.. यहाँ आपने जो भी सुझाया या गलत बताया उसमे रत्ती भर भी झूठ नहीं लगा मुझे.. वंदना जी तहेदिल से आपका आभारी हूँ ज़र्रानवाज़ी के लिए...

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  21. वक्त का हलवाई ...
    दर्द में भी मुस्कराहट ला दे ये बिम्ब ...

    और सूखे ज़ज्बातों की रेत के बीच
    निर्मित हो जाती है एक मृग मरीचिका
    एक भीगी मुस्कराहट..
    बहुत बढ़िया ...!
    काव्य संग्रह के लिए अग्रिम शुभकामनायें ...

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  22. तस्वीर-ए-बेमिसाल में उलझ गया 'मजाल',
    पर क्या था लाजवाब, कुछ समझ नहीं आया.

    जवाब देंहटाएं
  23. पर किन्हीं आँखों का एक जोड़ा
    महसूसता है कुछ अलग
    वो मुस्कुराती रचनाओं की सीपों के पीछे
    तलाशने लगता है खारे मोती
    तो बरबस भीग जाती हैं मुस्कुराहटें..awesome!

    जवाब देंहटाएं
  24. और सूखे ज़ज्बातों की रेत के बीच
    निर्मित हो जाती है एक मृग मरीचिका
    एक भीगी मुस्कराहट..

    बेहद खूबसूरती से ज़िन्दगी की तल्ख़ सच्चाइयों को उकेरा है.
    शीर्षक तो बढ़िया है...बस 'कड़ाहे' से ज्यादा ठीक शब्द शायद 'कड़ाह' है.

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  25. उम्दा शीर्षक है दीपक जी ... अग्रिम बधाई ....
    बहुत प्रभावी रचना है ...

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  26. दृष्टि में अप्रतिम जादू होता है।

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  27. समय के साथ कवितायों में निखार आ रहा है (यह अलग बात है कि आपकी लिखी पहली कविता मेरी आज वाली कविता से लाख गुना बेहतर है, फिर भी पाठक के नजरिये से बोल रही हूँ). वैसे ये शीर्षक बहुत अच्छा है, पर क्या पता कल इस से भी अच्छे शीर्षक की रचना हो जाये.

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  28. प्रिय दीपक भाई, आपकी इस कविता को चार बार पढ़ा। लेकिन इसकी अमूर्तता से अपने को वाकिफ नहीं करा सका। बहुत कठिन या कहूं कि जटिल कविता है। मुझे लगता है कि इस भाव को और सरल या सहज तरीके से कहे जाने की जरूरत है। जो बिम्‍ब आपने लिए हैं,बेशक वे नए हैं। लेकिन उनकी तारतम्‍यता बैठती नजर नहीं आती।
    बहुत संभव है मेरी यह टिप्‍पणी आपको और से जुदा लगेगी। लेकिन जुदा लगे केवल इसलिए यह टिप्‍पणी नहीं कर रहा हूं। उम्‍मीद है आप विचार करेंगे।

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