मेरे घर की दीवालों ने बातें करना सीख लिया है
गूंगे कमरे के आलों ने कुछ-कुछ कहना सीख लिया है
अब उतना भी ना तन्हा होता जब मैं तन्हा होता हूँ..
तन्हाई ने मेरी मुझसे चुहलें करना सीख लिया है
अंधियारे कमरे में जब भी चंद किरण कोई आती है
जाने उसकी शीतल धारा मन को क्यों दहलाती है
दहलीज़ छोड़ तुम गए थे तो क्या लक्ष्मण रेखा खींच गए
इक आँगन इक कमरे में ही जीना मरना सीख लिया है
तन्हाई ने मेरी मुझसे.....
तन्हाई ने मेरी मुझसे.....
बेफिक्र हुआ है मन भी तन भी हो ज्यों पिंजर से छूट गया
जाने क्या-क्या माना मुझसे जाने क्या-क्या रूठ गया
दिल के घर में जब से उसका आना-जाना बंद हुआ
सर्दीली रातों ने मुझपे कम्बल ढंकना सीख लिया है
तन्हाई ने मेरी मुझसे.....
तन्हाई ने मेरी मुझसे.....
रंगीन रंग ये जाने कैसे मिलके दीख रहे हैं अब
लाल गुलाबी नीले पीले ये काले दीख रहे हैं सब
चाहे जो हो मीठा खट्टा स्वाद कोई भी कैसा हो
सबके ऊपर इस जिह्वा ने कड़वा चखना सीख लिया है
तन्हाई ने मेरी मुझसे.....
दीपक मशाल
दीपक मशाल
दीपक भाई,
जवाब देंहटाएंकैसे लिख जाते हो यार ऐसा सब..........
lagta hai, bahut dard aur tanhai hai
जवाब देंहटाएंaapke paas...........
बहुत बढ़िया दीपक ! पर ये शीतल गर्मी कैसी होती है :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है .
चाहे जो हो मीठा खट्टा स्वाद कोई भी कैसा हो
जवाब देंहटाएंसबके ऊपर इस जिह्वा ने कड़वा चखना सीख लिया है
वाह , बहुत खूब ।
जिंदगी सब कुछ सिखा ही देती है ।
aapke liye 50-100-500 post ka aankda koi mayne naa rakhta ho fir bhi
जवाब देंहटाएंmeri taraf se aapko 100 bi post par hardik badhai evam shubh-kamnayen
दीपक,
जवाब देंहटाएंआज की नज़्म रूह मे उतर गयी है।
ज़रा देखो तो
अब उतना भी ना तन्हा होता जब मैं तन्हा होता हूँ..
तन्हाई ने मेरी मुझसे चुहलें करना सीख लिया है
कितना गहरा उतर गये हो यहाँ पर ……………।खासकर इस पंक्ति मे…………………"तन्हाई ने मेरी मुझसे चुहलें करना सीख लिया है
" ये पंक्ति अपनी खामोशी मे ही बहुत कुछ कह रही है।
अब ये देखो
अंधियारे कमरे में जब भी चंद किरण कोई आती है
जाने उसकी शीतल गर्मी मन को क्यों दहलाती है
दहलीज़ छोड़ तुम गए थे तो क्या लक्ष्मण रेखा खींच गए
इक आँगन इक कमरे में ही जीना मरना सीख लिया है
उफ़ …………पीडा छलक छलक जा रही है……………मौन की पीडा का कैसा सजीव चित्रण किया है।
और यहाँ गौर फ़रमाओ
रंगीन रंग ये जाने कैसे मिलके दीख रहे हैं अब
लाल गुलाबी नीले पीले ये काले दीख रहे हैं सब
चाहे जो हो मीठा खट्टा स्वाद कोई भी कैसा हो
सबके ऊपर इस जिह्वा ने कड़वा चखना सीख लिया है
उफ़ ……………क्या कहूँ इसके लिये ……………यहाँ तो शब्द खुद बोल रहे हैं और मैं निशब्द हो रही हूँ।
ये तुम्हारी अब तक की सबसे अच्छी रचना लगी मुझे………………बेहतरीन , लाजवाब, शानदार ………………बस अब और शब्द नही है मेरी डिक्शनरी में।
तन्हाई ने मेरी मुझसे....
जवाब देंहटाएंतन्हाई बहुत कुछ सिखा देती है
बहुत सुन्दर
बेफिक्र हुआ है मन भी तन भी हो ज्यों पिंजर से छूट गया
जवाब देंहटाएंजाने क्या-क्या माना मुझसे जाने क्या-क्या रूठ गया...
क्या बात है!
दीपक,
जवाब देंहटाएंकई दिन से तुम्हारी अनुपस्थिति महसूस हो रही थी। सब ठीक तो है?
पोस्ट पूरी नहीं दिखाई दे रही है। ऊपर का काफ़ी हिस्सा दिखता नहीं है। जितनी दिखी, अच्छी लगी।
जिसने तन्हाई के साथ जीना सीख लिया, वो कुछ भी झेल जायेगा।
बहुत परेशान हूँ ई मेल नही खुल रहा। सुबह पास वर्ड चेन्ज किया था उसके बाद एक बार खोला भी मगर दोबारा नही खुल रहा। कुछ मदद करो।
जवाब देंहटाएंजिंदगी की पाठशाला सबसे उत्तम पाठशाला होती है. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
चाहे जो हो मीठा खट्टा स्वाद कोई भी कैसा हो
जवाब देंहटाएंसबके ऊपर इस जिह्वा ने कड़वा चखना सीख लिया है
बहुत कुछ अनुभवों से सीख लिया जाता है ..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
अभी यही तुम्हारी जीटॉक की प्रोफाईल पर पढ़ रहा था...एक अलग सा प्रयोग मगर बढ़िया. अच्छी लगी रचना.
जवाब देंहटाएंसबके ऊपर इस जिह्वा ने कड़वा चखना सीख लिया है!
जवाब देंहटाएंकमाल कि पंक्तियाँ है, बहुत ही सुन्दर, बेहतरीन!
@दीपक जी
जवाब देंहटाएंशर्त लगा सकती हूँ एक भाव मन में आया होगा और कलम अपने आप चल पड़ी होगी .. मन से निकली ,मन छोटी रचना
ऊपर छोटी को छूती पढ़े
जवाब देंहटाएंसोनल जी आप बिना लगाये ही शर्त जीत गयीं.. :)
जवाब देंहटाएंउफ, यह तनहाई अकेला कहाँ छोड़ती है।
जवाब देंहटाएंवाह वाह जी कविता बहुत पसंद आई.
जवाब देंहटाएंसबके ऊपर इस जिह्वा ने कड़वा चखना सीख लिया है
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता है दीपक जी.
सबके ऊपर इस जिह्वा ने कड़वा चखना सीख लिया है
जवाब देंहटाएंbindaash
bahut kuch kah gaye aap to........
काफी अच्छा लिखते हैं आप....रचना बहुत अच्छी है
जवाब देंहटाएंवाह दीपक भाई-कमाल कर दिया,सुंदर शब्दों का ताना-बाना
जवाब देंहटाएंनागपंचमी की बधाई
सार्थक लेखन के लिए शुभकामनाएं-हिन्दी सेवा करते रहें।
नौजवानों की शहादत-पिज्जा बर्गर-बेरोजगारी-भ्रष्टाचार और आजादी की वर्षगाँठ
वाह दीपकजी, हमने भी बहुत कुछ "सीख लिया है"।
जवाब देंहटाएंसबके ऊपर इस जिह्वा ने कड़वा चखना सीख लिया है ...
जवाब देंहटाएंतन्हाई ने ये अहसान किया है ....
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ...!
दीपक ....ग़ज़ब ढ़ा दिया.... बिलकुल अनूठा प्रयोग है.... एकदम दिल को छू गयी...
जवाब देंहटाएंkकडवा चखना सीख लिया? इस बार आये तो करेले खिलाऊँगी। अच्छी लगी रचना । खुश रहा करो। आशीर्वाद। हाँ तुम्हें मेल की थी उसका जवाब नही दिया मगर प्रबलम साल्व हो गयी।
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
दीपक भाई आपकी बातों ने हमारे मन को छू लिया है।
जवाब देंहटाएं………….
सपनों का भी मतलब होता है?
साहित्यिक चोरी का निर्लज्ज कारनामा.....
दीपक भाई...
जवाब देंहटाएंऐसा क्या हो गया है भाई...
जो तुम इतने तनहा हो...
हमसे मित्र हैं जब तक तेरे...
मित्र कहाँ तुम तनहा हो...
वैसे कविता बहुत ही सुन्दर लिखी है...
लीजिये आज से हम भी आपके पीछे लगे.....(अनुसरंकर्ता बने...)
और हाँ....लन्दन में नेहरु सेंटर में कहानी पठन की हार्दिक बधाई...
शिखा जी की पोस्ट पर मेरी टिपण्णी अवश्य पढ़ें....
दीपक.....
वाह , बहुत खूब
जवाब देंहटाएंएकदम दिल को छू गयी
अब उतना भी ना तन्हा होता जब मैं तन्हा होता हूँ..
जवाब देंहटाएंतन्हाई ने मेरी मुझसे चुहलें करना सीख लिया है
सुंदर अभिव्यक्ति !!
वाह जी क्या बात है...ये तन्हाई का रंग भी अच्छा लग रहा है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है.
बधाई.
Sachmuch behad khubsurat abhivyakti dil ki gahraiyon se nikali ....gaharaiyon me samajaati hai...bahut bahut pasand aai aapki yah rachana!
जवाब देंहटाएंShubhkaamnaae
बहुत बढिय़ा सरकार.......... मेरी तन्हाई ने मुझसे चुहलें करना सीख लिया है।
जवाब देंहटाएंस्वाधीनता दिवस की बधाई हो आपको।
बहुत ही खूबसूरत रचना ........स्वतंत्रता दिवस कि ढेर सारी शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंविकट परिस्थितियों में भी धैर्य से काम लेने की शिक्षा आपने इस रचना में दी है!....सुंदर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अति सुन्दर ,स्वन्त्रता दिवस की बधाई ,जय हिन्द .
जवाब देंहटाएंप्रिय दीपक ,
जवाब देंहटाएंदीवारें , आले और मै ? भला फिर तन्हा कैसे ? यही देख चुहलें करती तन्हाई ! उसे पता है सारी सृष्टि श्याम रंग की पृष्ठभूमि में रची बसी और पली बढ़ी है !
अंतरिक्ष में यही चुहल है , कमरे जैसी ! वही मौन है इस आले सा और संदेशे मेरे जैसे !
कविता हमेशा शिल्प के अंदर हो ये ज़रुरी नहीं है बस वो उतना कह पाये जो उसे कहने के लिए कहा गया हो ! काफी है ! मेरे हिसाब से सुन्दर कविता !
दर्द में भीगी एक नज़्म...क्या क्या सीखा दिया इस तन्हाई ने.....पर अब बस इसका काम ख़त्म ...अब जल्दी से ये तन्हाई दफा हो जाए..और एक खुशनुमा गीत लिख डालो..यही दुआ है
जवाब देंहटाएंVandana jee ne sahi kaha, ab hamare pass to shabdo ki kami hoti hai.......islye unke kahi baato ko hi ditto kar raha hoon.......:)
जवाब देंहटाएंbahut saandaaar rachna........:)
मेरे घर की दीवालों ने बातें करना सीख लिया है
जवाब देंहटाएंगूंगे कमरे के आलों ने कुछ-कुछ कहना सीख लिया है
तन्हाई ने मेरी मुझसे चुहलें करना सीख लिया है
बहुत खूब दीपक जी .... तन्हाई क सहारा मिल जाए तो जीवन आसान हो जाता है .. लाजवाब रचना ...
Main aur meri tanhai bhi kabhi kabhi acchi lagti hai.
जवाब देंहटाएंमेरे घर की दीवालों ने बातें करना सीख लिया है
जवाब देंहटाएंगूंगे कमरे के आलों ने कुछ-कुछ कहना सीख लिया है
अब उतना भी ना तन्हा होता जब मैं तन्हा होता हूँ..
तन्हाई ने मेरी मुझसे चुहलें करना सीख लिया है
अंधियारे कमरे में जब भी चंद किरण कोई आती है
जाने उसकी शीतल धारा मन को क्यों दहलाती है
दहलीज़ छोड़ तुम गए थे तो क्या लक्ष्मण रेखा खींच गए
इक आँगन इक कमरे में ही जीना मरना सीख लिया है
तन्हाई ने मेरी मुझसे.....
दीपक जी
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है... एक-एक लफ़्ज़ बेहद उम्दा....
बहुत खूब.. तन्हाई ने मेरी मुझसे...
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