शनिवार, 24 अप्रैल 2010

पचास रुपये जोड़ा------------------------------->>>>दीपक 'मशाल'


अभी एक दिन अपनी बीती ज़िंदगी के बारे में सोचते हुए अचानक फ्लैश बैक में जाती स्मृति की रील को दिल्ली की एक भीड़ भरी गली में अटका पाया... याद आ गए कोटला मुबारकपुर की एक तंग गली में गुज़ारे अपने दिन और मेरे फ़्लैट के सामने वाले सीलन भरे अँधेरे कमरों में काम करते छोटे-छोटे, दुबले-पतले और कमज़ोर से बच्चे. वो बच्चे जो हर वक़्त सिर्फ एक ही काम में जुटे रहते और वो काम होता लहंगा या और किसी कीमती वस्त्र में कढ़ाई करने का या कि कहें उसे कढ़ाई कर कीमती बना देने का.

बिहार, असम और दूसरे कई गरीब प्रदेशों के वो बच्चे अपने पिता या बड़े भाई के साथ हर वक़्त अपने ही काम में मशगूल रहते थे. बस फर्श पर बैठे हुए अपने हाथों में कपड़ा, सुई-धागा, कुछ नग, कुछ मोती और वो कपड़ा लिए वो बिना दुनिया-जहान की परवाह किये अपने काम में लगे रहते..  जब रात में १२-१ बजे मैं सोने जा रहा होता तब भी और जब सुबह ७ बजे के आस-पास सो कर उठता तब भी.. भगवान् जाने वो सोते भी थे या नहीं. एक दिन बातों ही बातों में उनसे पूछ लिया कि ''कितना पैसा देता है तुम्हारा मालिक?''.. तो जवाब में वो बेचारे रुआंसे हो गए. पता चला सिर्फ ५०-६० रुपये एक रात के काम के मिलते थे.

जानकर तकलीफ तो बहुत हुई पर उस समय मैं भी कुछ ज्यादा सक्षम नहीं था.

वापस वर्तमान में आया तो उनको संबोधित करते एक कविता ही बना पाया.. कोशिश करूंगा कि इस बार जब जाऊं तो उनके लिए ज़मीनी तौर पर कुछ कर सकूं. शीर्षक है 'पचास रुपये जोड़ी'






छायाचित्र- गूगल से साभार

31 टिप्‍पणियां:

  1. दीपक,
    तुम्हारी कवितायें हमेशा ही बहुत संवेदनशील होती हैं...और सबसे अच्छी बात ये होती है की समाज के किसी न किसी नासूर को उजागर करती हैं...कोटला की उन गलियों में मैं भी गयी हूँ और उन बच्चों को मैंने भी देखा है...देखा है कैसे बचपन दम तोड़ देता है..उनकी नाज़ुक उँगलियों को पत्थर बनते देखा है...बहुत ही सशक्त रचना...हमेशा की तरह...
    खुश रहो..
    दीदी..

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  2. aapki rachna ki tareef me shabd kam hi hain....chhote bunkaron ka dard bayan kiya aapne...bahut khoob...

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  3. पर किसी को इससे क्या
    तुम्हें तो अदा कर ही दी गई ना
    इसे सजाने की कीमत
    पचास रुपये जोड़ा...
    अपनी किलकारी को कलाकारी में बदलने का इनाम
    पचास रूपये जोड़ा...
    स्मृति पटल पर पडी याद का बढ़िया चित्रण, दीपक जी !

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  4. बेहद मार्मिक और प्रभावी रचना, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. बहुत मर्मिक और त्रासदी भरी रचना

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  6. अपनी किलकारी को कलाकारी में बदलने का इनाम
    पचास रूपये जोड़ा...

    ओह! मार्मिक!! हर रोशन इमारत की नींव में ऐसे ही कितने दर्द छिपे हैं..कोशिश जो बन पाये उतना तो कर ही सकते हैं आप!!

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  7. बहुत सुंदर शब्दो मै आप ने इन बच्चो का दर्द बंटा...जब मै कपडे का काम करता था, उस समय मुझे इन्हे पास से देखने का मोका मिला था.
    धन्यवाद

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  8. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने। बधाई।

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  9. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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  10. बेहद मार्मिक रचना.........
    दिल को छु गयी ये संवेदना से भरी कविता!!!!!!

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  11. मगर उस चमक को लाने के लिए
    तुमने जो खोई है धीरे-धीरे
    अपनी आँखों की रौशनी
    रात-रात भर जागकर
    उसकी कसीदेकारी में
    aur uske liye 50 rupye.... marm ko ubhar diya, un bujhi ankhon ka mol chuka diya

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  12. दीपक सच्चाई बयां करती कविता लिखी है आज, ऐसे और भी काफी व्यवसाय है जहाँ कम पैसों पर बच्चों से काम करवाया जाता है. सरकार बेशक बाल मजदूरी विरोधी कानून लगा दे पर ये बात सब समझते है कि भूख ऐसी चीज़े है जो बचपन को रोंद देती है और वो थोड़े से पैसों के लिए काम करवा देती है

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  13. स्मृति पटल पर पडी याद का बढ़िया चित्रण। सच्चाई बयां करती बहुत ही सशक्त, मार्मिक और प्रभावी रचना। हर रोशन इमारत की नींव में ऐसे ही कितने दर्द छिपे हैं।

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  14. अंधेरी गलियों में जन्म लेता शिल्प
    जिसकी चकाचौंध दुनिया को रौशन करती है।

    यही विडम्बना है।

    संवेदनाओं से भरपुर अभिव्यक्ति
    आभार

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  15. वाह दीपक जी कितनी खूबसूरती से आपने उन यादगार पलों को व्यक्त किया...संस्मरण पसंद आया और आपकी कविता के तो हम तभी से कायल है जब हिंदयुग्म पर आपको पहली बात पढ़ा था....सामाजिक और दिल छू लेने वालीं रचनाओं के लिए धन्यवाद..

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  16. ये कहानी देश के हर शहर के हर कोने में मिलती है पर.....................
    सुन्दर पर संवेदित करते भाव
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  17. aacha likha hai...par thoda english se bacho...yeh mera vixchaar hai...

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  18. Dear Tej, jo english shabd maine istemaal kiye hain wo bahut sadharan ya bolchaal ki bhasha ke shabd ho chuke hain.. inhe ab khalish angrezi shabd nahin kah sakte. fir hindi ka to swabhaav hi raha hai doosri bhashaon ko apne me aatmsaat karne ka, koi bhasha sirf tabhi sashakt ho sakti hai jab wo doosri bhashaon ke shabdon ko apne me mila sake. kahte hain angrezi bhasha ke bhi sirf 112 ya 115 moolshabd hain baki sab duniya bhar ki bhashaon ke shabd usne apne me mila liye hain.

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  19. khair ye mujhe hindi bhasha ko samraddh karne ka tareeka laga.. ab tum kahan tak sahmat ya asahmat ho aur kyon batana jaroor dear.

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  20. यार दीपक तुम्हारी ये कविता मैं अमर उजाला के लिए प्रेषित कर रहा हूं खुद ही छपने पर कटिंग भेज दूंगा । ईमेल के चक्कर में ये भी निकल जाएगी

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  21. ऐसे ही होता है। इन कारीगरों को तो बेहद कम मजदूरी मिलती है। अच्‍छा प्रसंग उठाया है। बधाई।

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  22. इसके आगे ... फैज़ याद आ गए:
    अनगिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
    रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमख़्वाब में बुनवाए हुए
    जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
    ख़ाक में लिथडे हुए, ख़ून में नहलाए हुए
    जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
    पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
    लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे?

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  23. बेहद मार्मिक और भावुक रचना ।


    नेट की समस्या थी इसलिये ब्लाग जगत से दूर था

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  24. पर किसी को इससे क्या
    तुम्हें तो अदा कर ही दी गई ना
    इसे सजाने की कीमत
    पचास रुपये जोड़ा...
    अपनी किलकारी को कलाकारी में बदलने का इनाम
    पचास रूपये जोड़ा...

    बहुत सम्वेदनशील पोस्ट.

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  25. बहुत से अंजान कलाकार ऐसे ही ओझल हो जाते है दुनिया से ... उनकी कला के सामने चाँद सिक्कों का वज़न ज़्यादा पढ़ जाता है ... बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है ...

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  26. अपनी किलकारी को कलाकारी में बदलने का इनाम
    पचास रूपये जोड़ा...

    कलाकारी को क्रिकेटकारी (आईपीएल) में बदलने का इनाम
    बीस हज़ार करोड़...

    अब बेचारे मुकेश अंबानी, शाहरुख ख़ान, शिल्पा शेट्टी, विजय माल्या, प्रीति जिंटा और सबसे ऊपर ललित मोदी के पेट की फ़िक्र की जाए या इन बच्चों की बेमतलब ज़िंदगियों की...

    आम आदमी के बढ़ते कदम,
    हर कदम पर भारत बुलंद..

    यूपीए सरकार, साधो-साधो...

    जय हिंद...

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  27. नहीं है एक ईंट की भी छत मेरे सर पर
    जहाँ दिए मैंने इस दुनिया को भव्य मकाँ

    दर्द को बयां करती यह प्रस्तुति ,

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