केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम के दूसरे शांतिवार्ता प्रस्ताव का जवाब नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में ७६ जवानों का खून बहा कर दिया।
यह घटना दंतेवाड़ा (छ. ग. ) के चिंतलनार थाने की है जहाँ नक्सलियों ने सोची समझी साजिश के तहत पूरे जवानों को घेर कर इस कारनामे को अंजाम दिया।
देश की जनता इनका कारण जानना चाहती है।
सबसे पहले हमारे देश के पूज्यनीय नेताओं से प्रश्न :-
- ये नक्सली कौन हैं और इनका मकसद क्या है क्या आपने ईमानदारी से इसका जवाब ढूँढने की कोशिश की है?
- ग्रीन हंट ऑपरेशन क्या है?
- आप नक्सलियों को मारना क्यों चाहते हो? उन्होंने कभी आम जनता की जान नहीं ली यह जरूर है कि जनता कि संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर वे जनता को परेशां करते हैं पर यह आपके द्वारा बढ़ाई गई महंगाई से बेहद कम नुकसान है।
- नक्सलियों के सफाए की बात सोचते वक्त आपका दृष्टिकोण क्या होता है?क्या कभी इस नज़र से देखने की कोशिश की है कि यह भी हमारे भाई ही हैं।
- इस शतरंज के खेल में आपको ही हर बार क्यों मात खानी पड़ रही है?
- बेहतर रणनीति किसकी है? आपकी या फिर नक्सलियों की?
- जहाँ तक हमें यह जानकारी प्राप्त हुई है की भोले भाले आदिवासियों के विश्वास को आप लोगों ने शिक्षा और दवाईयों से जीता और उनकी सारी जमीन हथिया ली और शोषण किया। परिणाम आज सामने है। यह कहाँ तक सच है यदि है तो इसका समाधान क्या है? या फिर और कुछ बात है?
इस समस्या का शांतिपूर्ण समाधान ढूँढने में आपको काफी मेहनत करनी पड़ेगी। आप यदि जीतना चाहते हैं तो जीत सही मायने में वही होगी की आप नक्सलियों का ह्रदय भी जीते। यह कार्य सच्ची लगन से होना चाहिए।
नक्सलियों के लिए दिलों में नफ़रत नहीं बल्कि उनको समझने का प्रयास करना होगा नहीं तो हम ऐसे ही जवानों का खून बहता देखेंगे। माताओं की गोद , बहनों की कलाईयाँ और सुहागिनों की मांग सुनी हो जाएँगी। कुछ पलों की हमदर्दी जताकर आप उन्हें भूल जायेंगे और छोड़ जायेंगे उन्हें हमेशा के लिए तन्हा। फिर एक नई तैयार औरों के जीवन को सुना करने की।
नक्सलियों से प्रश्न :-
- क्या चाहते हैं आप?
- अपने अधिकारों के लिए जिस रास्ते को आपने चुना क्या वह सही है?
- किसके खिलाफ लड़ाई है आपकी ? अपने स्वयं के देशवासियों से /अपने देश से?
- शांति का रास्ता छोड़ हथियारों का साथ पकड़ने से आप कहाँ तक सफल हो पाएंगे?
- क्या आपको अपने वाकई में अपने देश और लोगों से स्नेह है?
- आपकी हरकतों से आपके बच्चे क्या सिखेंगे? हथियार पकड़ना, बारूदी सुरंग बिछाना या और कुछ?
- पाकिस्तान और बाकि कुछ राष्ट्रों का हाल तो आपने देखा ही है कि क्या हो रहा है दूसरों का बुरा सोचने से स्वयं भी उसके प्रभाव से बच नहीं सकते। वैसे औरों का भला करने से स्वयं का भी भला होता है।
- संकीर्ण मानसिकता को त्यागकर दूरदृष्टि अपनाएँ जिसमें जन का भला हो।
- आप अपनी ही सरकार से इतने क्रोधित क्यों हैं? हर क्षेत्र में आप लोगों के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है जबकि पीड़ित तो सामान्य वर्ग के लोग हैं जो पढ़ लिख कर बेरोजगार बैठे हैं।
- नक्सली नेताओं से मेरा यह सीधा प्रश्न है कि आप और देश के नेताओं में फर्क क्या है? यद्दपि उन्होंने आदिवासियों कि जमीने , शिक्षा और दवाईयों के नाम से हड़प ली हैं तो आप क्या कर रहे हैं उन भोले भाले आदिवासियों को मोहरा बनाकर अपने स्वार्थसिद्ध करने में लगे हैं।
- एक तरफ हमारे जवान प्यादे हैं तो दूसरी तरफ आपने भोले भाले आदिवासियों को प्यादा बनाकर रखा है। यह दोनों ही सूरत हमारे अपनों के लिए घातक है।
- क्या आप वाकई में आदिवासियों की भलाई चाहते हैं या फिर हमारे परम दुश्मनों की सहायता कर देश में अस्थिरता फैलाना चाहते हैं?
जवानों और अफसरों से प्रश्न:-
- माना अनुशासन से भरी हुई जिन्दगी आपकी होती है इसका मतलब यह नहीं की आप मशीन हो गए! जिसने चाहा जब चाहा वहां बगैर किसी ठोस उपाय के आपको लगा दिया।
- जब आप दुश्मनों के सामने होते हैं तो आपकी पहली शर्त होती है उनका सफाया हथियारों से। क्या आपकी नज़रों में यह सही है?
- क्या आप देश के नेताओं के मात्र कठपुतलियाँ रह गए हैं?
- नक्सल क्षेत्रों में जब आप जाते हैं तो आप नेताओं से ज्यादा उनके करीब होते हैं क्या आपने कभी उनके दिलों तक जाकर उन्हें समझने की कोशिश की है?
- क्या किसी भी समस्या का समाधान हथियार ही है?
- आपके लिए कौन महत्वपूर्ण है ? हमारा देश, देशवासी या हमारे नेताओं के आदेश?
दीपक 'मशाल'
दीपक भाई आप के प्रश्न बहुत वजनदार हैं।
जवाब देंहटाएंतीखे प्रश्न जो सच होने की वजह से सीधे चुभते है , जो हुआ वो सारे भारतवासियों की नीद तोड़ने के लिए काफी था पर हमारे प्रशासन की नींद कैसे टूटेगी ...वैसे भी जगाया उन्हें जाता है जो सोये हो जो सोने का बहाना कर रहे हो उनका क्या करे .
जवाब देंहटाएंअपनी बात को इतनी स्पष्टता से सामने रखने के लिए रश्मि जी को साधुवाद
सही सवाल उठाये आपने
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबहुत ही तथ्यपरक और बैलेंस्ड पोस्ट ...समस्या को गहराई से और सबके नज़रिए से देखने की कोशिश की गयी है...काश हमारे राजनीतिज्ञ भी एक बार हर पहलू से विचार कर इस समस्या की जड़ तक जाएँ ,तो इस तरह बेगुनाहों की जान तो ना जाए...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया दीपक इस पोस्ट तक हमें पहुंचाने का...और रश्मि जी को शुक्रिया इतने सुलझे हुए तरीके से इस समस्या की विवेचना करने के लिए
माओवादी आतंकवादी भारत में खून खराव बदहाली चाहते हैं ये अब बच्चाड-बच्चा जानता है सिवाय इनके समर्थक देश के दुशमनों के। देश के दुशमनों को सेना के जवानों से प्रश्न करने का कोई हक नहीं ।सब जानते हैं कि भारत की सेना संसार की सबसे अधिक मानवतावादी सेना है। वेहतर हो आप लोग माओवादी आतंकवादियों को हथियार छोड़ कर आम्मसमर्पण के लिए प्रेरित करें वरना .यह कोई नेपाल नहीं इनका भारत से तो नमोनिशान मिटेगा ही पर ये नेपाल से भी खदेड़ दिए जायेंगे क्योंकि अब इनमें और तालिवानियों में कोई अन्तर नहीं बचा है
जवाब देंहटाएंदिनेश जी ये प्रश्न कुछ मेरे मन में थे जरूर लेकिन ये पूरी पोस्ट रश्मि साहू जी द्वारा लिखी गई है.. और निगेटिव चटका लगाने वाले भाईसाब से अनुरोध है कि अपना नाम भी बताते जाते तो मैं कुछ सवाल उनके नाम भी जोड़ देता कि अमन की भाषा नहीं समझ आती क्या आपको? या सुबह-सुबह भाभी/आंटी जी ने बेलन चला दिए(क्योंकि ये कोई महिला हों ऐसी सम्भावना तो नहीं है, हाँ यदि किन्नर हों तो कोई बात नहीं)?
जवाब देंहटाएंHindu Tigers ji gaur se padhiyega, sawal dono se kiye gaye hain.. yadi aap sahmat nahin to fir kyon Tulsidas ji ko padhte hain? unhone hi to likha hai na ki- ''मुखिया मुख सो चाहिए, खान-पान को एक
जवाब देंहटाएंपाले-पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक''
इस तरह की पोस्ट पर भी नकारत्मक कैची अगर चलती है तो यही माना जा सकता है कि ऐसे लोगों की सोच ही नकारात्मक है.
जवाब देंहटाएंजो भी हो आप और आप की सोच जैसे सोच वाले लोग व्यथित हैं. प्रश्न जायज हैं.
rashmi ji ne bahut acchhi post dali...khaid he ki maine ise pehle nahi padha. aur shukriya aapka ki aapne ise dubara post kiya...sawal bahut sateek hai...aur ye jaan kar b hairani hui ki koi is mudde par nakraatmak soch bhi rakhta hai...
जवाब देंहटाएंaaj ham apne jawano ki is shahaadat pat vyathit hain.
पूरी पोस्ट बहुत ही प्रभावी है:नक्सलवाद एक विचारधारा है, उसे ताकत से दबाया जा सकता:खत्म नही किया जा सकता:
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए रश्मि जी और आपको धन्यवाद. रश्मि जी नें बहुत गहराई से प्रश्न उठायें हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत ही विचारनीय पोस्ट है, सवाल भी बहुत सही हैं, परन्तु जवानों से जो सवाल हैं वो मुझे सही नहीं लगे क्योंकी इन सवालों से जवानों को ठेस पहुँच सकती है, हमें जवानों का उत्साहवर्धन करना चाहिए, वे किन परिस्थितियों में ऐसी जगह पर रहते हैं ये समझ पाना आम नागरिक के बस का नहीं है, नक्सल प्रभावित जगह पर इन लोगों की जान हथेली पर रहती है, वहां मरो या मारो की स्थिथि होती है, और जो ज़वान अपना घर परिवार छोड़ कर हमारी सुरक्षा में तैनात है उन पर दोषारोपण उचित नहीं है ! प्रयास अच्छा है लेकिन मुद्दा संवेदन शील है, इसलिए इस तरह के विषय पर लिखने में सावधानी बरतनी ज़रूरी है! दीपक जी का शुक्रिया जिनकी वज़ह से ये पोस्ट पढ़ी, धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसही प्रश्न उठाये है रश्मि साहू जी ने..आभार इन्हें यहाँ लाने का.
जवाब देंहटाएंekdam sahi topic par likha hai aaj.
जवाब देंहटाएंदीपक,
जवाब देंहटाएंवाकई बड़ा अच्छा काम किया इतनी अच्छी पोस्ट पढ़ा कर...ये रौशनी साहू की पोस्ट है, रश्मि साहू की नहीं...इस गलती को ठीक कर लो...नक्सलवाद सिर्फ हिंसा से जुड़ी समस्या नहीं है जिसके लिए हवाई हमले जैसी बातें की जा रही हैं...ये सामाजिक-आर्थिक समस्या है और इसे समग्र परिवेश पर विचार कर सुलझाना चाहिए...आदिवासी इलाके क्यों अब भी दो सदी पीछे का जीवन जी रहे हैं...विकास अगर वहां तक नहीं पहुंचा और सिर्फ महानगरों तक ही सिमट कर रह गया है, इसके लिए सरकार और नेताओं के अलावा और कौन ज़िम्मेदार हो सकता है...दूसरी ओर नक्सली भी अर्थहीन हिंसा के ज़रिए अपनी बात मनवाना चाहते हैं...यहां तक कि आदिवासियों पर कहर ढहाने में भी नहीं चूकते...देश में दलितों का तो सशक्त नेतृत्व उभरा है लेकिन आदिवासियों की आवाज़ दमदार तरीके से उठाने वाला कोई संगठन सामने नहीं आ सका...ऐसी हालत में आदिवासियों की हालत चक्की के दो पाटों में पिसने जैसी हो गई है...
जय हिंद...
प्रश्न वजनदार है दीपक जी मगर सुनेगा कौन? एक दुष्ट है तो दूसरा महादुष्ट
जवाब देंहटाएंसवाल तो सही है दीपक लेकिन एक सवाल ये भी तो है ना कि उनकी समझ मे क्यों नही आ रहा है?
जवाब देंहटाएंज्वलंत मुद्दे पर अत्यंत सार्थक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक ये पोस्ट पहुँचनी चाहिए.
अच्छा हुआ कि आपने अपने ब्लॉग पर इसको प्रकाशित किया ....क्रियेटिव मंच पर भी आज ये पोस्ट लगने जा रही थी.
आपका आभार
दीपक जी
पोस्ट लेखिका का नाम सही कर लीजिए.
उनका नाम रोशनी साहू है रश्मि साहू नही.
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया .....निलेश माथुर जी आपने सही फ़रमाया. मेरा कहने का मकसद जवानों को ठेस पहुँचाने का नहीं था.
जवाब देंहटाएंपर आपने हमारे 36garh के किस्से नहीं सुने हैं इसके पहले भी हमारे कई जवान इसी तरह से शहीद हुए हैं. पहले उन्हें नक्सली छोटी घटनाओं से आकर्षित करते हैं और फिर बहुत बड़ी घटना हो जाती है.
यहाँ पर ड्रोन विमानों (जासूसी विमान )का उपयोग किया जा सकता था
उसे दिन भर लगाया जाना चाहिए.
मेरे ख्याल से ड्रोन विमान (जासूसी विमान )जवानों की जिन्दगी से ज्यादा कीमती नहीं है. इस तरह से यहाँ जवानों को शहीद होते देखना बहुत मुश्किल है. उन्हें आवाज़ तो उठानी ही होगी.
१००० नक्सलियों के पीछे मात्र ८० जवानों को लगाया जाना कहाँ की बुद्धिमानी है? इसके लिए भी उन्हें आवाज उठानी होगी. यह सबको मालूम था की वहां समीप ही १५ कि.मी. दूर मोरपल्ली पर नक्सलियो का बड़ा कैंप है मगर वहां बड़ा ऑपरेशन चलाने की रणनीति नहीं बनाई जाती.
फिर भी मै यह कहना चाहती हूँ कि इस समस्या का समाधान हथियार तो हरगिज़ नहीं.
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जवाब देंहटाएंदीपक जी आपका और आप सभी का जिन्होंने इन विचारों का समर्थन किया उन सभी के हम शुक्रगुजार हैं और जिन्हें इससे आपत्ति है इन्हें सिर्फ इतना ही कह सकते हैं ।
जवाब देंहटाएं" कभी तो पिता बनकर देखें आप अपने ही बच्चों को आपस में कैसे लड़वा सकते हैं? अपना दृष्टिकोण बदलकर देखिये। अंग्रेजों ने क्या कम जुल्म किये थे? हमारा सब कुछ तो लुट लिया ना! पर महात्मा गाँधी जी ने क्या किया उन्हें प्रेम और अहिंसा से समझाया। इसलिए तो आज हम उन्हें प्यार से बापू कहते हैं और अंग्रेज क्या सारी दुनिया आज तक उन्हें प्यार करती है। इस महान देश की जनता में ऐसे विचार तो आयेंगे ही ना!
समदृष्टि अपना कर देखो सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जायेंगे। "
आप सभी के comments शहीद जवानों और उनके परिवारों को समर्पित है।
जवाब देंहटाएंएक वक्त था जब हम माोवादियों से वातचीत के पक्ष में थे लेकिन हजारों निर्दोशों के कत्ल के वाद नहीं।जो सरकारी सकूलों,पुलों,रेलों ,पुलों को तोडें लोगों व सेना पर कायरों की तरह मला करें वो किसी सहानूबूति के पातर नहीं हो सकते ।हम लोगों की यही तो समस्या है कि जब भी शत्रु से निपचने का समय आता है हम शत्रु के प्रति सहानुभूति जताकर अपने देशभक्त लोगों का खात्मा करवा देते हैं।
जवाब देंहटाएंसोचो जागो और युद्ध की इस घड़ी में संसार की एकमात्र मानवीय सेना भारतीय सेना से के बहादुर जवानों से प्रश्न करने का दुश्साहस न करो। सिर्फ साथ दो सब ठीक हो जायेगा जितना आप माओवादी आतंकवादियों का पक्ष लेंगे उतना ज्यादा खून खरावा होगा।
deepak ji bhut hi gahan aur sakaratmk aur sadhi hui post
जवाब देंहटाएंsaadar
praveen pathik
9971969084
Very Good, Deepak ji
जवाब देंहटाएंखुशदीप भैया, क्रिएटिव मंच प्रस्तोता जी भूल पर ध्यान दिलाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया और रौशनी जी से क्षमा मांगता हूँ.. और ये उनके एक असली ब्लोगर और अच्छे इंसान होने का परिचायक ही है कि अपना नाम गलत देखने के बावजूद उन्होंने कुछ नहीं कहा जबकि आज की दुनिया सिर्फ नाम के पीछे मर रही है. और टाइगर भाई उग्रता दोनों तरफ से बढ़ रही है(सरकार और माओवादियों) यहाँ किसी का पक्ष नहीं लिया जा रहा, सिर्फ सबकी गलतियों पर ध्यान दिलाया जा रहा है. भारतीय सेना कितनी विनम्र है ये तब पता चलेगा जब तपते बुखार में भी ये आपको रेल के अपने उस कम्पार्टमेंट में चढ़ने भी नहीं देंगे जिसपर उन्होंने अपना नाम लिख रखा हो और जिसमे सारी सीटें खाली हों.
जवाब देंहटाएंis post ko yahan rakhkar bahut sahi kiya......ek ek sawal aur andar ka aakrosh aur manahsthiti shaheedon ke naam
जवाब देंहटाएंआपकी चिन्ता जायज है!
जवाब देंहटाएंकाश् सभी लोग ऐसा सोचते!
बहुत ही सार्थक पोस्ट लगायी है…………………और प्रश्न भी जायज है मगर यहाँ सुनता कौन है…………असर किस पर होता है…………सब अपनी अपनी रोटी ही सेंकने मे लगे है आम जनता का दर्द कौन सुनता है।
जवाब देंहटाएंसबसे पहले रोशनीजी को धन्यवाद जो इन्होने इस नक्सलवाद की जढ़ क्या है और क्यों बढ रहा है इस बारे मैं बताया और जो सवाल किये हैं वह भी सही हैं ! इन सबके पीछे सिर्फ गन्दी राजनीति है और कुछ नहीं ! अगर गन्दी राजनीति बंद हो जाये तो क्यों इस तरह के हादसे हों इस देश मैं ! हमें सिर्फ गन्दी राजनीति बदलने की जरूरत है अगर एक बार यह बदल जाये तो इस देश मैं कभी कोई हादसे नहीं होंगे !पर राजनीति ..........
जवाब देंहटाएंदीपक जी आपको भी धन्यवाद जो इस अच्छी एवं विचारणीय पोस्ट को हम सभी तक पहुँचाया
शायद सरकार नक्सलियों को ही मानव मानती है और उन्हीं के लिये मानवाधिकार आयोग बना है, सरकार पुलिस वालों से वर्दी पहनते समय अपने को मिट्टी में मिलाने की कसम ले लेती है, कि बेचारे मानव नहीं सरकार की कसम से बंधे हुए निरीह प्राणी हैं।
जवाब देंहटाएंघोर निंदनीय
इन सभी सवालों के जवाब जानना जनता का भी हक़ है लेकिन एक सवाल जनता से भी है .. आप कब तक इसी तरह भेड़-बकरियों की तरह हाँके जाते रहेंगे?
जवाब देंहटाएंSharad bhaia,
जवाब देंहटाएंaapka ye sawal to har sandarbh me sahi baithta hai..