आज से करीब १२ वर्ष पूर्व एक व्यंग्य कविता लिखी थी लेकिन शायद वो आज भी समसामयिक है, प्रासंगिक है और सालों तक रहेगी. लगा कि आपको भी पसंद आएगी... आती है या नहीं ये तो पढ़ने के बाद ही पता चलेगा. देखिएगा तनिक-
एक 'तथाकथित' सम्माननीय नेता का
हो गया निधन
'सम्माननीय' थे क्योंकि
सी.बी.आई. ताउम्र नहीं पकड़ सकी
उनके घर से काला धन.
बांधकर यमपाश में
उस महान जन.. ना ना.. 'धननेता' की आत्मा को
यमदूत थे पहुंचे जब यम दरबार में..
मच गई अफरा-तफरी उस अमर संसार में
उड़ गए चित्रगुप्त के होशोहवास
नेता का कर्म लेखा-जोखा जो ना था उनके पास
चित्रगुप्त ने दस्तावेज़ जुटाने को
कुछ दिन की मोहलत माँगी,
यमराज पड़े असमंजस में
और नेता को मिली मुराद बिनमांगी
मरते क्या ना करते देव ने था समय दे दिया
बस्स्स्स!!! चंद दिनों में तिकड़मी उस नेता ने
यम चहेतों को स्वपक्ष में ले लिया
ऐसा कुछ बातों का फेंका उनपर जाल
के धर्मपुरुषों को भी दिखने लगा माल
उधर नेता की मौत के बाद
कई घोटालों में उसका हाथ, पैर, सिर
सब लिप्त-संलिप्त पाया गया
इन कारनामों की
अखबारी कटिंग को सबूत बना
चित्रगुप्त की फ़ाइल में लगाया गया.
अगली पेशी पर जब चित्रगुप्त
यमकोर्ट में आया
मुलजिम के कटघरे में खड़ा वो नेता
कुटिल मुस्कान मुस्काया
और यमराज के फैसला लेने से पूर्व
खुद को यमगद्दी का दावेदार बताया
फिर क्रोधित सूर्यपुत्र को
विश्वासमत को ललकार दिया
बिचारे यम ने मन ही मन
विष का था घूँट पिया
अपने दल को नेता से मिला देख
उसको खुश करते यम बोले-
''छोडो ये सब बातें
तुमको स्वर्ग भेजा जाता है,
यहाँ बिन ए.सी. वाले ऑफिस में क्या रखा है
स्वर्ग तो सबको भाता है.''
नेता ने क्षणभर सोचा-
'इस यू.पी. जैसी गद्दी को पाया तो क्या पाया?
स्वर्ग पहुंचूं ज़रा तो कर दूंगा
सुख-शांति का सफाया'
यम ने दिया फैसला
सोचा छूटी मेरी जान
भले इन्द्रासन में मचता रहे घमासान
स्वर्ग का देखा जो वैभव
औ सुभाष, गाँधी, पटेल का सम्मान
नेता को लगा ये खुद का अपमान
नाटकीय ढंग से किया सबको प्रणाम
फिर बोला वो लोकतंत्र का रावन-
''ये कैसे हैं नेता जो ना दिलवा सकते राशन,
माना लड़ते रहे ये देश की खातिर
मगर लड़ना कौन सा मुश्किल है
अरे हमसे पूछो कैसे सजाई
रंगीनियों की महफ़िल है..
ये तो दिला के खिसक लिए,
हमने बरक़रार रखी आज़ादी
बरकरार रखी शांति,
चंदा दुनिया से माँगा
फैला के गरीबी की भ्रान्ति,
जो वादा भी ना देता
वो है कैसा नेता?
सुन लो जनता मेरी
इक मैं ही सच्चा नेता हूँ.
निज कर्तव्यों का
ना जिसने तुम्हें कराया भान
ऐसे नकली नेताओं पर
जाके फेंको पाषान.''
जब गृहयुद्ध की आई नौबत
तो इन्द्र बहुत घबराए
भागे-भागे, दौड़े-दौड़े
वैकुण्ठ शरण में आये
सुन समस्या इन्द्र की
विष्णु ने नेता को फटकारा-
''धरती से जी ना भरा तेरा
जो यहाँ भी राजनीति का जाल बिछाया..
हमने समझा तुझे भोला मानुष
तू निकला पूरा सांप
जा फिर से बन जा नेता
ऐसा देता तुझको श्राप''
नेता लगा उछलने
और जोरों से चिल्लाया-
''अरे आउटडेटिड प्रभु!
पृथ्वी का शब्दकोष कबसे नहीं उठाया?
नए संस्करण में
नेता बनना श्राप नहीं
वरदान है छप के आया
वरदान है छप के आया...''
दीपक 'मशाल'
नेता जो न कर दे
जवाब देंहटाएंमजेदार और चुटीली भी
इस कविता की चमक और धार आज भी बरकरार है!
जवाब देंहटाएंare bahut hi badhiya vyang hai Dipak...
जवाब देंहटाएंsaanp ka kaata bach sakta hai Neta ka kata kahan bachta hai...bechara yamraj to bahut accha prani hai neta ke saamne...
amazaa ayaa padh kar ...
tumko dekh kar kahna chahiye...
honhaar virvaan ke hot cheekne paat...
bahut badhiye...
didi..
जब तक नेता रहेंगे...यह जिन्दा कविता कहलायेगी. :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!
बहुत ही बेहतरीन व्यंग ! आज भी उतना ही सामयिक है और कई 'माननीय' नेताओं पर फिट बैठता है ! सारगर्भित रचना के लिये आभार !
जवाब देंहटाएंhttp://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
mazedar...kya vyangya kiya sirji...fan ho gaya apka...
जवाब देंहटाएंवाह दीपक जी बहुत बढ़िया..अच्छी रचना..बधाई
जवाब देंहटाएंलम्बी.... मगर ...मजेदार...व सुंदर रचना...अंत तक बाँध कर रखा.....
जवाब देंहटाएंसार्थकता से भरी विवेचना युक्त विचारोत्तेजक कविता के लिए धन्यवाद / ऐसे ही प्रस्तुती और सोच से ब्लॉग की सार्थकता बढ़ेगी / आशा है आप भविष्य में भी ब्लॉग की सार्थकता को बढाकर,उसे एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित करने में,अपना बहुमूल्य व सक्रिय योगदान देते रहेंगे / आप देश हित में हमारे ब्लॉग के इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर पधारकर १०० शब्दों में अपना बहुमूल्य विचार भी जरूर व्यक्त करें / विचार और टिप्पणियां ही ब्लॉग की ताकत है / हमने उम्दा विचारों को सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / इस हफ्ते उम्दा विचार के लिए अजित गुप्ता जी सम्मानित की गयी हैं /
जवाब देंहटाएंएक बेह्तरीन व्यंग्य।
जवाब देंहटाएं''धरती से जी ना भरा तेरा
जवाब देंहटाएंजो यहाँ भी राजनीति का जाल बिछाया..
हमने समझा तुझे भोला मानुष
तू निकला पूरा सांप
दूर तक मारक मिसाईल इजाद की है दीपक भाई
आभार
kal, aaj aur kal sabkuch hai ismein.....vyangya achha karara hai
जवाब देंहटाएंदीपकजी, इससे वेहतर कुछ नहीं हो सकता
जवाब देंहटाएंBahut hi chuteela vyangya aur afsos hai ki aaj bhi yah utana hi praasangik hai aur shaayad aane waale kayee varshon tak rahegi
जवाब देंहटाएंयह फ़ोटू वाले नेता जी क्या सच मै एसे ही है जी???? वेसे भी चोरो के संग साधू थोडे रहते है.... बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत बहुत ही शानदार रचना..............
जवाब देंहटाएंदीपक जी कमाल कर दिया
अमर रहेगी ये रचना क्योंकि नेता सुधरने वाले नहीं हैं अपने
बधाई दिल से...........
- अलबेला खत्री
He who followed the path of sinisters,
जवाब देंहटाएंToday,they are all cabinate ministers !!
सम्पूर्ण चरित्र चित्रण
जवाब देंहटाएंRachna abhi bhi prasangik hai.Shubkamnayen.
जवाब देंहटाएंसारे बड़े नेता एक शिप पर पिकनिक मनाने जा रहे थे...अचानक एक नेता जी को पता नहीं क्या सूझी...जा पहुंचे शिप के कैप्टन के पास...पूछा, अगर ये शिप डूब गया तो जानते हो क्या होगा...कैप्टन ने धीरे से जवाब दिया...और तो कुछ पता नहीं लेकिन ये देश ज़रूर बच जाएगा...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
khushdeep ji ne bhi kya khoob keha...aur deepak ji aapka kataksh sidha nishane par hai :)))
जवाब देंहटाएंkavita aur vyang ka shaandaar mishrran .....saty bhi hai ......ek achhi kavita ..
जवाब देंहटाएंयह कविता दोस्तों के बीच और मंच पर बहुत लोकप्रिय हुई होगी । इसे हम ताली बटोरू कविता कहते हैं ।
जवाब देंहटाएंWah ! Kya zabardast vyang hai!Maza aa gaya!
जवाब देंहटाएंkamaal ka kataksh hai bhai
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आप सबका
जवाब देंहटाएंगजब की कसक है भावों में ।
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