आज पेश-ए-खिदमत है एक रचना वो भी एक ऐसे शायर की जो आज से ४८ साल पहले अपनी सरज़मीन को छोड़ लन्दन आ गए थे लेकिन आज भी दिल से पूरी तरह हिन्दुस्तानी ही हैं. ये हस्ती हैं डॉ. विद्या सागर आनंद जी, जिन्होंने इतिहास, कानून, राजनीति, साहित्य और ना जाने कितने क्षेत्रों में हिन्दुस्तान का झंडा बुलंद किया और आज भी हर भारतीय की सफलता को अपनी सफलता की तरह महसूसते हैं. लन्दन के वेस्टमिन्स्टर इलाके से सत्तारूढ़ लेबर पार्टी से सांसदी का चुनाव भी लड़ चुके हैं और यूरोपियन यूनियन का भी. हाल के प्रधानमन्त्री श्री गोर्डन ब्राउन के अच्छे परिचितों में हैं... अर्थात हर क्षेत्र में दखलंदाजी रखते हैं. अभी तक उनकी विभिन्न विषयों पर करीब १८ किताबें अंग्रेजी और ८ हिंदी/उर्दू में भी भारत, पाकिस्तान, यू.के., यू.एस. से प्रकाशित हो चुकी हैं और वीर सावरकर पर लिखी अपनी पुस्तक के लिए जाने जाते हैं. यहाँ उनके पहले ग़ज़ल संग्रह 'लहर लहर आनंद' से एक रचना आप सबको पढ़ा रहा हूँ-
शीर्षक है 'शहीद'
आग लगी है वृक्ष को जलने लग गए पात
पंक्षी फिर भी ना उड़े पंख भी थे जो साथ
वृक्ष को जलता देख कर पंक्षी क्यों ना उड़े
वृक्ष ने तो जलना ही था वो क्यों साथ जले
वृक्ष था पंक्षी के लिए मातृ भूमि समान
विपत्ति में नहीं छोड़ते माँ की सुधड़ सुजान
हीरे जैसी जान का मिला ना कोड़ी दाम
उनके इस बलिदान का निकला क्या परिणाम
मिल कर कूदे आग पर आग बुझी तत्काल
वृक्ष सलामत रह गया पर जल गए माँ के लाल
उनके इस बलिदान की प्रसिद्धि हुई महान
पुष्प चढ़ा कर आज भी पूजा करे जहान
डॉ. विद्या सागर आनंद
दोस्तों अगर मेरी खुद की रचनाएं आप पढ़ने लायक समझते हैं तो निम्न लिंक पर क्लिक करें-
नई कलम- उभरते हस्ताक्षर
पहला अहसास
भारत ब्रिगेड
शब्दकार
प्रस्तोता- दीपक 'मशाल'
चित्र- दीपक 'मशाल' का छायांकन
सर्वश्री डॉ. विद्या सागर आनंद जी से तुम मिल आये बहुत ही भाग्यशाली हो...
जवाब देंहटाएंउनको हमारा भी नमन...
उनका आशीर्वाद लेकर आये हो इससे बड़ी क्या बात होगी भला...
कविता बहुत मर्मस्पर्शी ...सच है मातृभूमि के साथ मर मिटना ही सच्ची भक्ति है...जाने हम क्या कर रहे हैं..
और फोटोस तो बहुत ही सुन्दर लिया है तुमने...
कविता के लिए एकदम सटीक....
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ..
दीदी...
वृक्ष था पंक्षी के लिए मातृ भूमि समान
जवाब देंहटाएंविपत्ति में नहीं छोड़ते माँ की सुधड़ सुजान
बहुत सुन्दर रचना. भावना बहुत सघन है
प्रणाम रचनाकार को
अच्छा लगा परिचय प्राप्त करके और रचना पढ़ना सुखद रहा, बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंडॉ. विद्या सागर आनंद जी से आपने मिलवाया .....ये हमारे लिए सौभाग्य कि बात है .........रचना तो लाजवाब .
जवाब देंहटाएंपरिचय जानकर बहुत प्रसन्नता हुई और रचना भी ।
जवाब देंहटाएंDeepak jee parichay karwane ke liye bahut bahut dhanyvaad .
जवाब देंहटाएंUnse milne ka mai bhee prayas karungee august me mera aana ho raha hai London .Abhee to vanha election kee garma garmee chal rahee hai .
Dr Anand jee kee rachana ke bare me kuch likhana sooraj ko diya dikhana hai .
रचना तो लाजवाब है
जवाब देंहटाएंडा.विद्यासागर से परिचय कराने का बहुत बहुत शुक्रिया...बहुत ही विलक्षण व्यक्तित्व के धनी हैं...और उनकी कविता तो बहुत ही मार्मिक और प्रेरणादायी है
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता सुन्दर चित्र!
जवाब देंहटाएंहमने हिंदुस्तान मैं रहकर, हिंदुस्तान को ही भुला दिया
जवाब देंहटाएंआप वहां पर भी हिंदुस्तान को याद रखते हैं
आपको शत शत नमन
बहुत महत्त्वपूर्ण पोस्ट!
जवाब देंहटाएंचित्र बहुत मनभावन हैं!
छायाकार की आँखों में
बस जाने का मन करता है!
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माँग नहीं सकता न, प्यारे-प्यारे, मस्त नज़ारे!
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संपादक : सरस पायस
are ravi ji main apne contact lenses hi nikaal ke de deta hoon.. aap kahiye to :)
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा परिचय प्राप्त करके और रचना पढ़ना सुखद रहा, बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंमाफी चाहता हूँ ..... एक कविता की कुछ पंक्तियाँ आपसे शेयर कर रहा हूँ
जवाब देंहटाएंआग लगी इस वृक्ष को
जलने लगा पात
तुम क्यों जले हो , पंक्षियों ,
पंख तुम्हारे साथ ?
फल खाये इस वृक्ष के
गंदे कीने पात
यही हमारा धर्म है
हम जलेंगे इसके साथ ..................... कृपया मई 2015 के नया ज्ञानोदय को रेफर करें ... पृष्ठ संख्या 8 .....
आग लगी इस वृक्ष में, जलते इसके पात,
जवाब देंहटाएंतुम क्यों जलते पक्षियो! जब पंख तुम्हारे पास?
फल खाये इस वृक्ष के, बीट लथेड़े पात,
यही हमारा धर्म है, जलें इसी के साथ।
Ye rachna kiski hai...