बुधवार, 21 जुलाई 2010

झूठा विजेता--------------->>>दीपक 'मशाल'

ऐ इतिहासकारों!!
तुम जब लिखना मेरे बारे में 
तो मेरे बारे में लिखना..
मेरे सच के बारे में
लिखना मुझसे जुड़ी हर बात के बारे में


बेशक लिखना तुम मेरा पराक्रम
मेरी तलवार का दुधारूपन
पर इसकी चमक से अंधे हो कहीं
उन विधवाओं का विलाप न भूल जाना
जो इस धार के द्वारा बनायीं गईं हों...


गुरेज नहीं होगा 
जो तुम मुझे महान बनाने के लिए
मेरे हाथ से दान हुए
चंद सिक्कों की गिनती को असंख्य लिखो
मेरी बोली को बादल की गरज
मेरी चाल को सिंह की तरह लिखो


पर कहीं ये सच भी लिखना जरूर 
कि आबनूसी माहौल में तैर जाते हैं
मेरी भी आँखों में वासनाओं के डोरे
हर आम इंसान की तरह...
उस क्षण के बारे में भी लिखना
हवस मुझपे होती है जब हावी


गर लिखो तुम युद्ध या शांति पर
मेरे फैसलों के बारे में
तो मत चूकना तुम ये बताना कि
मैं कभी न चुन पाया अपने वस्त्रों का रंग


दुश्मनों पर मेरे खौफ का असर कहने के 
पहले या बाद अवश्य उल्लेख करना
बिल्लियों के रुदन से डर जाना मेरा..
मेरे बहादुर वक्तव्यों के साथ
कापुरुषी विचार भी बताना दुनिया को..


जहाँ भी लगाओ मेरी विजय के उपलक्ष्य में स्तम्भ
वहीं मेरी हार को भी अंकित करना..
क्योंकि इतिहास की किताबों में छिप के बैठा
एक तथाकथित महान
मगर झूठा विजेता नहीं बनना मुझे..
दीपक 'मशाल'
(कविता 'परिकथा' साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित)
चित्र गूगल की देन है



एक चोरी का माल भी सुनिए..
अर्ज़ किया है ...
आओ सुलझाये मुद्दा हिन्दो पाकिस्तान का ..
भइय्या आओ सुलझाये मुद्दा हिन्दो पाकिस्तान का....
कि कश्मीर हो District पाकिस्तान का ...
और पाकिस्तान हो State हिंदुस्तान का !!
वाह वा.. वाह वा..

और चलते-चलते बारिश के मौसम में मेरा एक पसंदीदा गाना-

46 टिप्‍पणियां:

  1. जहाँ भी लगाओ मेरी विजय के उपलक्ष्य में स्तम्भ
    वहीं मेरी हार को भी अंकित करना..
    क्योंकि इतिहास की किताबों में छिप के बैठा
    एक तथाकथित महान
    मगर झूठा विजेता नहीं बनना मुझे.

    बहुत अच्‍छी अभिव्‍यक्ति !!

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  2. क्योंकि इतिहास की किताबों में छिप के बैठा
    एक तथाकथित महान
    मगर झूठा विजेता नहीं बनना मुझे..

    -बहुत शानदार बात कही है रचना के माध्यम से, बेहतरीन!!

    अब गीत सुनेंगे आराम से.

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  3. कविता ने भिगोया--- अन्दर से...........
    गीत ने भिगोया----बाहर से ...........
    भीगे हम इस सूखे मौसम में...........
    पूरी तरह--- अन्दर-बाहर से............

    जवाब देंहटाएं
  4. झूठे आत्मप्रवंचना के बजाय सच लिखने का आग्रह
    सुन्दर रचना .. बेहद सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  5. रचना के माध्यम से सुंदर अभिव्यक्ति,कुछ रहस्योदघाट्न करता सा ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहद भावपूर्ण रचना...दीपक जी बार बार ख़ासियत बताना अच्छा नही लगता ..लाज़वाब होती है आपकी रचनाएँ...धन्यवाद भाई

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  7. बहुत ही अच्छी प्रेरक व सत्य की और अग्रसर करती कविता ...

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. उन विधवाओं का विलाप न भूल जाना
    जो इस धार के द्वारा बनायीं गईं हों...

    कि आबनूसी माहौल में तैर जाते हैं
    मेरी भी आँखों में वासनाओं के डोरे
    हर आम इंसान की तरह...
    वहीं मेरी हार को भी अंकित करना..
    क्योंकि इतिहास की किताबों में छिप के बैठा
    एक तथाकथित महान
    मगर झूठा विजेता नहीं बनना मुझे...
    अपने बारे में इतनी निर्ममता से सत्य लिखने को कहना ...
    वह तो विजेता ही हुआ ...
    बहुत बहुत बढ़िया ...
    दीपक महान ....!

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  10. बड़ी सुगढ़ता के साथ चित्रित किया है स्वयं को।

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  11. बहुत शानदार तरीके से सच लिखने का आवाहन....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  12. एक सशक्त अभिव्यक्ति ...
    और चोरी का माल बढ़िया लगा ..अच्छा हल है वैसे ये .

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  13. बहुत ही ओजपूर्ण अभिव्यक्ति....
    बेहतरीन कविता...झूठ का मुलम्मा उतार,सच कहने का साहस

    और ये चोरी का माल नहीं था...रस्ते में पड़ा माल था...:)
    जो बहुत पसंद आया.

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  14. एक तथाकथित महान
    मगर झूठा विजेता नहीं बनना मुझे..
    क्या बात कही है…………………बेहतरीन अभिव्यक्ति।

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  15. बेहतरीन ख्यालों के इशारों पर थिरकते नाचते दौड़ते भागते ठहर जाते शब्द ! बेशक अदभुत कविता !




    [ सरहदों की समस्या चुटकियों में सुलझाई आपने :) कम से कम हम तो सहमत हुए ]

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  16. बेशक लिखना तुम मेरा पराक्रम
    मेरी तलवार का दुधारूपन
    पर इसकी चमक से अंधे हो कहीं
    उन विधवाओं का विलाप न भूल जाना
    जो इस धार के द्वारा बनायीं गईं हों...

    --

    शौर्य और वीरता का संचार करने वाले भाव के साथ ही जनजागरण का मार्मिक साहित्य पढकर अच्छा लगा!

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  17. हर आम इंसान की तरह...
    वहीं मेरी हार को भी अंकित करना..
    क्योंकि इतिहास की किताबों में छिप के बैठा
    एक तथाकथित महान
    मगर झूठा विजेता नहीं बनना मुझे...

    झूठ का सिक्का हमेशा नहीं चलता, जब सच की आंधी चलती है तो मजबूत दिखने वाले बड़े-बड़े पेड़ों को पलभर में नेस्तनाबूत कर देती है..
    बेहतरीन जनजागरण अभिव्यक्ति।

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  18. एक तथाकथित महान
    मगर झूठा विजेता नहीं बनना मुझे..
    बहुत खूब ...
    सच बोलने कि हिम्मत कितनों में है ?
    बेहतरीन अभिव्यक्ति...!
    दीदी..

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  19. ’पुष्प की अभिलाषा’ पढ़ी थी, आज पढ़ ली एक ईमानदार हृदय की अभिलाषा भी।
    और चोरी का माल बहुत मजेदार just like other stollen marvels.

    शुभकामनायें भी और आमीन भी।

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  20. बहुत अच्छे से मंथन करके जो निकलता है वो कुछ ऐसा ही होता है .................

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  21. मगर झूठा विजेता नहीं बनना मुझे.......... बहुत अच्छी लगी यह अंतिम पंक्तियाँ... दीपक में कितने रूप समाये हैं... मैं यह देख रहा हूँ.... versatility का अम्बार है .... कविता बहुत सुंदर है...

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  22. pehli baar apke blog par ayi hoon. kavita achchi hai. par katrayon ki kafi trutiyan hain. kavita ka effect kam ho jata hai.

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  23. चोरी का मॉल ज्यादा पसंद आया. तुम्हारा तो अच्छा होता ही है....
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  24. कविता के साथ साथ चोरी के माल में बड़ा मज़ा आया ! शुभकामनायें !!

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  25. बहुत मार्मिक कविता...दीपक जी...वाकई आपने युद्ध की तस्वीर उकेर दी है...जख्मों को मरहम लगाते हुए ताजा बना दिया है...अच्छी रचना...

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  26. दीपक जी, कमाल की रचना है, बहुत दिनों के बाद इतनी शानदार रचना पढने को मिली है, शब्द नहीं है तारीफ़ के, आपकी लिखनी का कायल हूँ! बेहतरीन! चोरी का माल भी शानदार है!
    देर से आने के लिए माफ़ी, कई दिनों से टूर पर था!

    जवाब देंहटाएं
  27. दीपक जी, कमाल की रचना है, बहुत दिनों के बाद इतनी शानदार रचना पढने को मिली है, शब्द नहीं है तारीफ़ के, आपकी लेखनी का कायल हूँ! बेहतरीन! चोरी का माल भी शानदार है! देर से आने के लिए माफ़ी, कई दिनों से टूर पर था!

    जवाब देंहटाएं
  28. भई अच्छी कविता लगी..कविता मे समाहित ई्मानदारी इतिहास की कमजोरियों पर भी तंज कसती है..और तमाम महानताओं को समय के कटघरे मे खड़ा करती है..वैसे इतिहास विजेताओं का होता है..और कोई विजय तमाम शौर्यगाथाओं का दस्तावेज होती है..कि जीत की चमक मे अंदर के ढेर से अंधरे खुद को छुपा लेते हैं...फिर वे किताबों मे नजर नही आते...
    चोरी का माल है तो डिस्काउंट रेट पर ही होगा... ;-)

    जवाब देंहटाएं
  29. जहाँ भी लगाओ मेरी विजय के उपलक्ष्य में स्तम्भ
    वहीं मेरी हार को भी अंकित करना..
    क्योंकि इतिहास की किताबों में छिप के बैठा
    एक तथाकथित महान
    मगर झूठा विजेता नहीं बनना मुझे..

    विचारणीय रचना है ... आपका आत्मचिंतन मुग्ध करता है .... काँसे कम सच कहने का साहस तो कर रहे हैं आप ...

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  30. कविता इतनी सशक्त है कि उसके साथ किसी माल को लगाया जाना, कविता के वजन को कम करना है.
    ..दुश्मनों पर मेरे खौफ का असर कहने के
    पहले या बाद अवश्य उल्लेख करना
    बिल्लियों के रुदन से डर जाना मेरा..
    ..इतना सच तो एक कवि ही बोल सकता है.
    .ढेर सारी बधाई.

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  31. बेहतरीन लिखा है सर आपने :)
    और गीत तो मेरा भी ये फेवरिट में से आता है :)

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  32. कविता तो अच्छी है ही...चोरी के माल में भविष्यवाणी है.

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  33. मशाल जी
    बहुत ही सुन्दर कविता..........

    काश ! ये कविता किसी कवि ने दो चार सौ साल पहले लिखी होती तो हिन्दुस्तान का इतिहास शायद कुछ दूसरा होता ।

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  34. Kya gazab likha hai! Sach...lekhni kee dhar chahe jo sitam dhaye kisiko bewa nahee banati...kiseeka bhai ya beta nahi chheenti...

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  35. एक शानदार कविता। हार्दिक बधाई।

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  36. sach kahoon, charcha manch se jana to padha hai lekin ek utkrisht rachna aur sva-abhivaykti ki bebak kaamana ke liye bahut bahut badhai.

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