बुधवार, 5 मई 2010

''लोग क्या कहेंगे?''(लघुकथा)-------------->>>दीपक 'मशाल'


'अ' एक लड़की थी और 'ब' एक लड़का. बचपन से ही दोनों के बीच एक स्वाभाविक आकर्षण था, जिसे बढ़ती उम्र और मेलजोल ने प्रेम के रूप में निखार दिया. दोनों साथ में पढ़ते, घूमते-फिरते, कॉलेज जाते और कला-संगीत के कार्यक्रमों में रुचियाँ लेते. एक दूसरे की रुचियों में समानताएं होने से प्यार सघन होता गया. उनके अटूट से दिखते प्रेम को देख लोगों के दिलों से निकली ईर्ष्या के उबलते ज़हर की गर्मी उनके आसपास के वातावरण को जितना उष्ण करती उनके प्रेम की शीतलता उन्हें उतना ही करीब ले आती.  
पढ़ाई ख़त्म होते-होते दोनों के परिवारवालों को अपने-अपने बच्चों की शादी की चिंता सताने लगी. ये तो याद नहीं पड़ता कि कौन, किससे,  कैसे और कितना ज्यादा अमीर था लेकिन दोनों के परिवारों के बीच के पद-प्रतिष्ठा, धन और शोहरत के इसी अंतर ने उनके प्रेम के पिटारे में झाँकने की ज़हमत ना उठाई, चारों तरफ सवाल उठे- ''लोग क्या कहेंगे?'' और अ या ब किसी एक के घरवालों ने उनके प्रेम को परिवार की इज्ज़त को डंस सकने वाले ज़हरीले नाग का खिताब दे उस पिटारे को वहीँ दफ़नाने का हुक्म सुना दिया. दोनों के रिश्ते अलग-अलग परिवारों में अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक कर दिए गए. किसी से कहे बगैर मन ही मन दोनों ने अपने-अपने बच्चों के साथ ऐसा ज़ुल्म ना करने की ठान नियति के आगे सर झुका दिया.

सालों बीत गए.. अ और ब दोनों ने अपनी मेहनत और लगन से समाज में अच्छा रुतबा, धन-दौलत और वो सब जिसके लिए लोग खपते हैं, कमा लिया. दोनों अलग-अलग शहर में थे एक दूसरे से अन्जान, अलबत्ता यादों में दोनों अभी भी एक-दूसरों को याद थे. अ का बेटा अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका था और अ उसकी शादी के लिए सुयोग्य लड़कियां ढूँढने लगी थी और उधर ब अपनी खूबसूरत और खूबसीरत बेटी के लिए भी यही सब उपक्रम करने लगा था. दोनों ने सोचा क्यों ना एक बार अपने-अपने बच्चों से जान लिया जाए कि कहीं उन्हें तो कोई पसंद नहीं. दोनों का सोचना सही निकला. इधर अ का बेटा एक लड़की से बेइन्तेहाँ मोहब्बत करता था और वो लड़की भी तो उधर दूसरी तरफ ब की बेटी को भी एक लड़के से प्रेम था. कहीं ना कहीं अ और ब की सी कहानी दोनों तरफ पनप रही थी.
अ ने अपने बेटे की प्रेमिका के बारे में कहीं से जानकारी जुटाई तो पता चला वो एक मॉडल थी.. लोगों ने बीच में मिर्च-मसाला लगा इस पेशे की बुराइयां गिनानी शुरू कर दीं- ''मैडम, आप तो जानती ही हैं इस पेशे में क्या-क्या उघाड़ना पड़ता है और क्या-क्या छुपाना पड़ता है.. अपनी इज्ज़त का कुछ तो ख्याल कीजिए. लोग क्या कहेंगे?''
उधर ब की बेटी को जो लड़का पसंद था उसके ना माँ का पता था ना बाप का.. अनाथालय में पला-बढ़ा था. लोगों ने यहाँ भी कहना शुरू किया, ''इंटेलिजेंट है तो उससे क्या? खानदान भी तो देखना पड़ता है कि नहीं? अगर इकलौती बेटी के लिए भी ढंग का खानदानी लड़का ना ढूंढ पाए तो लोग क्या कहेंगे?''

एक बार फिर दो अलग-अलग शहरों में दो प्रेम कहानियों का ''लोग क्या कहेंगे?'' के शोर के बीच क़त्ल कर दिया गया.. अब अ और ब की मर्जी के मुताबिक उनके बेटे-बेटियों की कहीं शादियाँ हो रही थीं. फिर शहनाइयों के बीच २५ साल पुराने 'अपने बच्चों के साथ ये ज़ुल्म ना होने देंगे' जैसे संकल्प दोहराए जा रहे थे.
दीपक 'मशाल'
चित्र साभार गूगल से

39 टिप्‍पणियां:

  1. दीपक भाई मैने अपने बच्चो को बिलकुल छुट दे रखी है, वो जिस लडकी से चाहे शादी करे, लेकिन उन्हे सथ साथ मै संस्कार भी दिये है कि यह हीरोईन, यह माडल... घर को बसाने वालिया नही हो सकती, ढुढो तो शरीफ़ लडकी ढुढो.... इस लिये आंखो देखी मक्खी कोई नही निगल सकता, आप की इस लघू कथा से पुरण रुप से तो नही कही कही सहमत जरुर है, आनाथ गरीब बच्ची से शादी से इंकार नही,

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  2. यह हीरोईन, यह माडल... घर को बसाने वालिया नही हो सकती, ढुढो तो शरीफ़ लडकी ढुढो...

    भाटिया जी ने सही कहा ।

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  3. जैसा समाज में होता है....उसका बिलकुल सही चित्रण किया है.....

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  4. वाह गुरू...............

    लघु कथा कह कर कहानी पढवा दी........

    कहानी अच्छी लगी..........

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  5. itihas duhrata hai kahavat ko charitarth karatee aapkee laghu katha..........

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  6. दीपक यही तो त्रासदी है हमारी. कि बच्चों को पालते वक़्त हम ये भूल जाते हैं कि कभी हम भी उनकी ही उम्र के थे..और वही दुहराते हैं जिसे कभी हम गलत कहा और समझा करते थे...किसी के मोडल या अनाथ होने से उसे अयोग्य ठहरा देना मेरी तो समझ से परे हैं ....अच्छी लघुकथा.

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  7. sahi chitra pesh kiya...pehla bhag to zindgi me dekh liya...jaati ki deewaarein thi...aur poori ummeed hai dooja bhag bhi dekhne ko mil hi jayega...bahut kuch yaad dilaya Deepak ji bahut bahut dhanyawad...

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  8. Kya kahoon Dileep bhai ye tumhari-meri sabhi ki kahani hai.. haan shayad tumhe achchha lage jaankar ki mera naam pahle Dileep hi rakha gaya tha panditon aur mere nana ji ke anusaar.. :)

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  9. उम्र के एक पायदान पर आकर सब सीख जाते हैं
    क्या गलत है क्या सही है।

    आभार

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  10. यह लघुकथा लघु से थोड़ी बड़ी है और बड़ी से थोड़ी लघु । कहानी मे कुछ भी नयापन नहीं है ऐसी कहानी कई बार दोहराई जा चुकी है । हाँ इसमे भाषा और प्रस्तुति मुझे अच्छी लगी ।
    इतनी खिंचाई ठीक है ना ?

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  11. दीपक भाई, जो अपने लिखा वो बिलकुल सही हैं
    अपवाद हर जगह होते हैं.....एक परिवार हैं ,उसके दोनों बच्चो भाई और बहिन ने जिद करके अपने अपने प्रेमी से विवाह किया......बहिन का प्रेम विवाह तो सफल हैं, खुश हैं......पर भाई का प्रेम विवाह असफल हो गया.......

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  12. waise Dileep naam se jo badal dete hain...wo bade safal hue...A R rehman, Khali...;)

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  13. Aur haan aapki profile bhi padhi hamare shauk bhi kaafi milte hain....

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  14. samaj ! safalta asafalta to waqt per hai, janne ko to saree umra kisi ko nahi jana jata.....per aaklan aise nahi hota

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  15. gajab gajab gajab...likhte ho dipak..
    ham to kuch bol hi nahi paate hain sach mein..
    aaj ye charcha manch par bhi jaa rahi hai...
    didi..

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  16. लघु कथा में तीन पीढियां , दो युग और जाने कितनी ही सभ्यताओं की कहानी .....नहीं शायद कहानी नहीं ..सच कह डाला दीपक । बहुत खूब ...पसंद आई ये कहानी ।

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  17. @ दीपक हम वो ही लिखते है जो हमारे साथ या आस-पास होता है .....सब हमारे जीवन मे घटी घटनाएं होती है ......कई बार सामाजिक कुरीतियों को बदलने में हम सफ़ल हो जाते है ,कई बार असफ़ल,पर अच्छे कार्य के प्रयास सतत होते रहने चाहिए ......

    औए एक बात
    @ दीपक ....
    @ दिलीप....... दोनो से ----- दोनो अच्छा लिखते हो,एक ही विषय की दोनो की कविता मुझे बहुत पसंद आई......

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  18. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति

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  19. wah..bhaai ...bahut kuchh dekha hai aisa hamne .....haamre man ki baat kah dee


    http://athaah.blogspot.com/

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  20. ऐसा ही होता जिन्दगी हर पल रंग बदलती है । हर इंसान अपने सोच के दायरे तक सीमित होता है..............

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  21. समय के साथ सोच बदल जाती हैं

    जो पहले खराब लगता है बाद में वही सही लगाने लगता है

    किसे सही कहा जाए ये किसी को नहीं पता ....

    लघु कथा पसंद आई :)

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  22. बहुत बेहतरीन..एक उम्दा प्रस्तुतिकरण और प्रवाह! बधाई.

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  23. दीपक भाई, जो अपने लिखा वो बिलकुल सही हैं

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  24. लघुकथा में सुमन को बात लगी कुछ खास।
    अक्सर होता है यही दुहराता इतिहास।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  25. ek din aisa aayega jab insan apne dil ki sunega ! naa samaj ki aur naa reeti rivaz ki

    aap ka lekh koi laghu katha nahi hai

    hai bas aaj ka sach

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  26. माँ-बाप को ये लगता है कि अपने समय में वो तो समझदार थे...उन्होंने जो कर लिया..सो कर लिया लेकिन बच्चे नासमझ हैं हैं...भूले से भी गलती ना कर बैठें...इसलिए उनके क्रियाकलापों पर अच्छे-बुरे का ठप्पा लगा खुद का नियंत्रण रखना चाहते हैं...

    सच्चाई को उजागर करती सुन्दर लघुकथा

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  27. सुन्दर प्रस्तुति !
    क्या आपको पता है कि इतिहास खुदको दोहराता क्यूँ है ?
    क्यूंकि हम आज भी इतिहास से कुछ भी सीखने के लिए तैयार नहीं है !

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  28. दीपक,
    तुमने तो सिर्फ ये कहानी लिखी है लेकिन भारत में प्रेम करने का खतरनाक अंजाम पत्रकार निरूपमा के साथ क्या हुआ, सभी देख रहे हैं...

    वैसे कभी कभी का एक डॉयलॉग भी याद आ रहा है-

    हमें कोई हक नहीं बनता कि हम अपने मां-बाप के अरमानों की चिता पर अपने ख्वाबों के महल खड़े करें...

    जय हिंद...

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  29. दीपक जी
    शायद इसीलिये कहा गया है कि इतिहास खुद को दोहराता है और हम जो आधुनिकता का दम्भ भरने वाले लोग हैं ना, हम खुद उसी का शिकार हो जाते हैं…………कथनी और करनी सभी की यहाँ अलग ही होती है………दोहरे मापदंड अपनाते हैं हम सब…………………कोई अछूता नही रहता सिर्फ़ कुछ गिने चुने लोग मुश्किल से ही मिलेंगे जिन्होने इन परम्पराओं को तोडा होगा।

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  30. deepak ji...

    sab ne wo baten kahi hain ..jo main bhi kehna chahta hun ... itna kahunga... ki aap ka blog tatolta rahunga.. shuqriya

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  31. बस .....लोग क्या कहेंगे ..यही सोच कर ये सिलसिला चलता रहता है.....अच्छी लघु कथा ..नया सन्देश देती हुई

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  32. भाई शादी -ब्याह एक अत्यंत पेचीदा मामला है । बस फर्क यही है कि यहाँ रिश्ते मुश्किल से मिलते हैं और वहां मुश्किल से चलते हैं।

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  33. इसे कहते हैं आज़ादी............आज़ादी है भी पर बंदिश भी की मॉडल, हीरोइन घर बसने वाली नहीं......दूंदो तो शरीफ....................????????????
    राज भाई का कहना है तो बाताएं की शरीफ कौन ???? जो बिना विवाह के गर्भवती न हुई हो?
    जिसके कईयों के साथ शरीरी क्सम्बंध रहे हों पर किसी को पता न हो?
    सेक्स कईयों के साथ किया हो पर गर्भवती न हुई हो?
    शरीफ की परिभाषा यदि स्वाभाव से हो की घर में आते ही माँ बाप को लड़के से अलग नहीं करेगी. एक ही घर में रह कर दो जगह चूल्हे नहीं जल्वाएगी, घर के सभी बड़ों को सम्मान देगी.....
    बहरहाल लघुकथा अच्छी है.......................... गद्य में भी उन्नति कर रहे हो..........आशीर्वाद..........
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  34. बड़ी अच्छी कहानी लिखी है दीपक...और प्रस्तुतीकरण तो लाजबाब.
    एक बड़ा सन्देश भी और समाज को आईना भी दिखाती है ये कहानी..

    और सुना नहीं क्या. Great Minds Think Alike इसीलिए हम दोनों ने एक जैसा सोचा...:) :)
    अब तो यकीन हो गया नहीं पढ़ी थी...सो सॉरी देर से आने के लिए

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  35. देखो सभी ने इसे कहानी लिखा है, तो कहानी ही लिखो भाई। अच्‍छा लिखते हो, अनावश्‍यक विधा-विशेष के फेर में क्‍यों पड़ते हो। वैसे भारत में विवाह परिवार के संचालन और श्रेष्‍ठ संतानोत्‍पत्ति के‍ लिए होते हैं। जब तक भारत में यह संस्‍‍कृति जीवित है तब तक ऐसे प्रश्‍न आपके और मेरे घर में उठते ही रहेंगे। लेकिन जैसे ही हम परिवार संस्‍था को समाप्‍त कर देंगे तब कोई नहीं पूछेगा कि आप क्‍या कर रहे हैं, यहाँ तक की आपके माता-पिता भी नहीं।

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