हाल ही में होली के पूर्व भारत के कई हिस्सों में खाद्य निरीक्षकों द्वारा डाले गए छापों के दौरान जिस तरह से काफी बड़ी तादाद में नकली या मिलावटी खोवे, घी, क्रीम, दूध, मिठाई और किराना सामग्री इत्यादि के बरामद होने के मामले प्रकाश में आये, उससे मन में यह विश्वास बैठ गया है कि भ्रष्टाचार, मिलावट, मुनाफाखोरी अब सतही बुराइयां नहीं रहीं. बल्कि यह जन-जन में संस्कार के रूप में अपनी पैठ जमा चुकी हैं. अब शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति भारत में शेष हो जो इन क्रियाकलापों से अछूता रहा हो, चाहे वह इस अपराध के अपराधी के रूप में रहा हो या फिर भुक्तभोगी के रूप में. यूँ तो यह सब सिर्फ आज की बात नहीं है ये लालच की 'संतान' बुराइयां सालों पहले हमारे यहाँ पैदा हो चुकी थीं और कितने ही बार ऐसी ख़बरें हमारी आँखों के सामने से गुजरीं. लेकिन जिस तरह से इस होली और बीती दीवाली पर मिलावट की घटनाएं देखने को मिलीं उससे लगता है कि देश को तबाह करने के लिए एक अप्राकृतिक और अदृश्य सुनामी भारत और विशेष रूप से उत्तर और मध्य भारत में भी आया हुआ है.
समझ नहीं आता कि कैसे चंद पैसे कमाने के लालच में हमारे बीच ही उठने-बैठने वाले लोग हमारी ही जान खतरे में डालने को तैयार हो जाते हैं. कैसे ये लोग भूल जाते हैं कि अगर वो बबूल बो रहे हैं तो उन्हें भी आम नहीं हाथ आने वाले. कल को हर व्यक्ति मिलावट से ही मुनाफे के चक्कर में उलझकर एक दूसरे के स्वास्थ्य को नुक्सान पहुँचाता मिलेगा. एक व्यक्ति जो जल्दी अमीर बनने के लिए खोवा नकली बनाकर बेचेगा वो फिर उन्ही पैसों से खुद के लिए भी नकली दालें, सब्जियां, मसाले, तेल इत्यादि खरीदेगा. हम सभी तो एक दूसरे को कहने में लगे हैं की 'तू डाल-डाल, मैं पात-पात'.
जिसके जो हाथ में आ रहा है वो उसी को मिलावटी बना देता है. पेट्रोल पम्प हाथ आ गया तो पेट्रोल, डीजल में किरासिन मिला दिया, किराने की दुकान है तो दाल-चावल, मसाले, घी में अशुद्धिकरण, दूधवाले हैं तो यूरिया मिलाकर दूध ही नकली बना दिया वरना कुछ नहीं अगर थोड़े ईमानदार हैं तो पानी मिला कर ही काम चला लिया. बाजारों में उपलब्ध सब्जियों, फलों को कृत्रिम तरीके से आकर्षक एवं बड़े आकार का बनाया जा रहा है. फलों को कैल्शियम कार्बाइड का छिड़काव कर पकाने की बातें तो हम सालों से सुनते आ रहे हैं, ये कार्बाइड मष्तिष्क से सम्बंधित कई छोटी-बड़ी बीमारियों का स्रोत है. सब्जियों को बड़ा आकार देने के लिए उनके पौधों की जड़ों में ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन लगाये जा रहे हैं, ये वही ऑक्सीटोसिन है जो कि प्राकृतिक रूप से मादा के शरीर में बनता है और प्रसव के दौरान शिशु को बाहर लाने में एवं उसके बाद दुग्ध उत्पन्न करने में सहायक होता है. गाय-भैंसों को यही इंजेक्शन देकर ज्यादा दूध निकाला जा रहा है, जबकि इस हारमोन के इस तरह मानव शरीर में पहुँचने से होने वाले गंभीर दुष्प्रभावों पर रिसर्च चल रही है. मटर को हरा रंग देने के लिए कॉपर सल्फेट का प्रयोग होता है जो हमारे शरीर के लिए काफी नुकसानदेह है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में बाज़ार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों में ९०% खाद्य पदार्थ मिलावटी होते हैं. यानी हम हर रोज़ कितना धीमा ज़हर ले रहे हैं हमें पता भी नहीं है. अब हम इन्हें खाते हैं तो अपनी मौत को दावत देते हैं और नहीं खाते तो जिंदा कैसे रहें?
वैसे ये सब खेल सिर्फ भारत में ही नहीं अन्य कई विकसित देशों में भी चल रहा है, लेकिन वहां के शुद्धता मानक अलग हैं और वहाँ की सक्रिय मीडिया समय-समय पर सरकार और लोगों को इस सब के खिलाफ चेताती रहती है इसलिए स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में रहती है.
ये मिलावटी पदार्थ भले ही तुरंत दुष्प्रभाव ना दिखाएँ लेकिन इनके दूरगामी परिणाम तब समझ आते हैं जब किसी व्यक्ति को या उसके परिवारीजन को किसी न किसी जानलेवा बीमारी के रूप में इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं. उस समय हम सिर्फ यही कहते रह जाते हैं कि ''हे ईश्वर! हमने किसी का क्या बिगाड़ा था जो यह दिन देखने को मिला..''
उस समय वह यह भूल जाता है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कहीं ना कहीं उसने स्वयं यह ज़हर अपने आस-पास फैलाया है. मोटे तौर पर कहें तो वो दस रुपये कमाने के लिए अपने ही लोगों का हज़ार रुपये का नुक्सान कर रहा है.
पिछले साल ऐसे अप्राकृतिक तरीके से आकर्षक और बड़े आकार की बनाई गई सब्जियां-फल बाज़ार में लाने वालों के खिलाफ कानपुर में एक समूह ने आवाज़ उठाई जरूर थी, लेकिन उसके बाद क्या हुआ पता नहीं चला. सरकारी अमला ऊपर से आदेश आने से पहले इस तरफ ध्यान देता नहीं और ऊपर से आदेश आने से रहा. क्योंकि देश को चलाने वाले ही इन माफियाओं के साथ लंच-डिनर करते देखे जाते हैं.
आखिर कब तक सिर्फ उस खनक के लिए हम अपने ही लोगों के प्राणों से खिलवाड़ करते रहेंगे जो कि तब भी यहीं थी जब हम धरती पर ना आये थे और तब भी रहेगी जब हम ना होंगे. हम सभी विश्व को खूबसूरत बनाने और जीवनशैली को बेहतर बनाने की दिशा में एक इकाई कार्यकर्ता की तरह कार्य करें तो समाज, देश, दुनिया बदलने में ज्यादा देर नहीं लगेगी. इस सोच को दिल से निकालना होगा कि 'एक अकेले हम नहीं करेंगे तो क्या फर्क पड़ जाएगा?'.. हम सभी इसी सोच के तहत दूध की बजाय सुरम्य तालाब को पानी से भर रहे हैं, सभी यही सोच रहे हैं कि सारा गाँव तो दूध डाल रहा है एक मैं पानी डाल दूंगा तो किसे पता चलेगा. इस तरह सभी एक दूसरे को धोखा देते रहे तो हम और न जाने कितने सालों तक सिर्फ विकासशील ही बने रहेंगे.
दूसरी तरफ खाद्य और आपूर्ति विभाग को भी कड़े क़ानून बनाने, उनको पालन कराने और लोगों में जागरूकता फैलाने की सख्त आवश्यकता है. वर्ना पहले से ही हमारे यहाँ प्रति दस हज़ार व्यक्ति पर एक डॉक्टर है....
दीपक मशाल
बहुत आवश्यक मुद्दे पर चिन्तन किया है. काश!! इसके दूरगामी परिणाम लोग समझें.
जवाब देंहटाएंबधाई इस सार्थक आलेख के लिए एवं इस मुद्दे को उठाने के लिए.
बहुत सही बातें लिखी हैं ।
जवाब देंहटाएंइसके जिम्मेदार हैं --बढती आबादी , महंगाई और भ्रष्टाचार ।
तीनों ही कम नहीं होने वाले । इसलिए बस सब सहन किये जा रहे हैं और जिए जा रहे हैं ।
पैसे कमाने की होड़ में जिंदगी सस्ती हो गयी है. उचित प्रश्न उठाया है दीपक.
जवाब देंहटाएंमिलावट स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। मानसिकता में ही मिलावट हो जाये तो खालिस तत्व कहाँ मिलेंगे।
जवाब देंहटाएंजब पकड़े जाते है, उसके बाद क्या होता है?...लोगों को सिर्फ़ मुनाफ़ा ही समझ में आता है ....फ़िर से वहीं आ जाते है...फ़िर नया छापा नए लोग....सच कह रहे हो--संस्कारी हो गए हैं हम....चिंताजनक स्थिती...
जवाब देंहटाएंमिलावटखोरों पर attempt to murder का केस चला कर फांसी देना चाहिये ।
जवाब देंहटाएंAise milawat khoro ko AK 47 ka dose dena padega
हटाएंMai shakahari hu
Meri sabjiyon ka taste aur sugand chheen liya gaya
Government aur milawatkhor iske jimmedar hain
Health dipartment bilkul nakara hai
Mujhe to soch ke hi dar lagta hai ki hamari aane wali peedhi
हटाएंhamare bache fal sabjiyan nahi jahar khayenge
bahut sahi mudda uthata aapne
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएं'एक अकेले हम नहीं करेंगे तो क्या फर्क पड़ जाएगा?'..सबसे पहले इस निरर्थक प्रश्न से हमें निकालना होगा , तभी चेतना की वर्तिका कंचें की लौ बन जलेगी . वरना विनाश के तो नित नए मार्ग बनते ही जा रहे हैं. जितना वक़्त उसमें देकर मौत को बुलावा दे रहे, नई नई बिमारियों को ला रहे ... उससे अलग कुछ साँसों के निर्माण के लिए एक पौधा तो लगाओ दोस्तों . कृत्रिम वायु में जीवन कहाँ ? बेमौसम की सब्जियों में वह स्वाद कहाँ !
जवाब देंहटाएंसबसे शीर्ष स्तर पर बैठे व्यक्ति के खुद ईमानदार होने से ही कुछ नहीं हो जाता...
जवाब देंहटाएंशीर्ष पर बैठा व्यक्ति आयरन हैंड वाला भी होना चाहिए...ये नहीं कि जब सुप्रीम कोर्ट ही कोड़ा चलाए तब ही वो हरकत में आए...
भ्रष्टाचार, मुनाफ़ाखोरी पर नकेल टॉप टू बॉटम ही कसी जा सकती है, बॉटम टू टॉप नहीं...
जय हिंद...
in logonko ye samaz me kyu nahi ata wo khud aur uske apne bhi is tarah mout ki traf dhire dhire badhenge.....
जवाब देंहटाएंiske liye chalo HUM EK JUTE HO JAYE .....
बहुत ही गंभीर प्रश्न उठाया है दीपक । आज जो लोग इन मिलवाटी धंधों में लगे हैं और सिर्फ़ इन मिलावटी खाद्य पदार्थों ही क्यों नकली दवाइयों और नक्काली के कारोबार से जुडे हैं वे किसी भी तरह हत्या के प्रयास जैसे गुनाह से कम के जिम्मेदार नहीं हैं ......तुमने मुझे आज का मुद्दा के लिए एक विषय दे दिया , शुक्रिया जल्दी ही लिखूंगा इस विषय पर और कानूनी स्थितियों के अनुरूप ही
जवाब देंहटाएंसारे गलत काम ऊपर से शुरु होकर नीचे तक पहुंचते हैं पहले सिस्ट्म को बदलना पडेगा तब जाकर कोई उम्मीद कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएं@सच कहा वंदना जी, लेकिन इकाई सिस्टम नहीं हम स्वयं हैं.. सिस्टम बदलने के लिए हमें पहले खुद को बदलना होगा.. बुराई की धार ऊपर से नीचे नहीं बल्कि नीचे से ऊपर की ओर ही चढ़ती है. हम्मे से कोई एक इस तरह के काम की पहल करता है और बाकियों की चुप्पी उसे हवा देती जाती है..
जवाब देंहटाएंश्री गिरजेश राव जी ने एक गंभीर बात जोड़ी है जो बताना जरूरी समझता हूँ-
''आप ने सब लिखा और आदमी में हो चुकी मिलावट के बारे में लिखा ही नहीं। वही मिलावट सारे मिलावटों की जड़ है।
महीने भर से जल संस्थान के अधिशासी, सहायक और जूनियर इंजीनियरों से भिड़ा हुआ हूँ - सीवर के पानी का कुछ करो। पब्लिक है कि या तो कुछ नहीं महकता या देख कर चुपचाप चल देती है। मिलावट सर्वत्र है भैया!
तरकारी, दूध, खोया तो कुछ भी नहीं...आदमी का क्या करोगे? ब्लॉग तो फिर भी दूर की बात है, यहाँ लोग आँख में अंगुली करने पर भी नहीं झपकाते।
लगे रहो मुन्नाभाई! कभी तो..''
तुमने बहुत बढिया बात लिखी है दोस्त, अजय जी ने घोषणा कर दी है। वह भी जल्द ही इसकी अगली कड़ी पेश करने जा रहे हैं। आप िलखते रहें हम पढ़ते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंसच में बुरा हाल है ..दूध से लेकर करेले तक में मिलावट. लोग खाएं तो क्या खाएं.
जवाब देंहटाएंअभी कुछ दिन पहले एक भारतीय मित्र मुझसे इस बात पर बहस कर रहे थे कि अरे क्यों रहते हो इंग्लेंड में है क्या वहां?मैंने यही कहा हजार परेशानी सही पर एक सुकून है कि अपने बच्चों को जो खिला पीला रहे हैं उससे उनकी जान को खतरा कम से कम नहीं..
चिंतनीय विषय पर सार्थक पोस्ट.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
एक बहुत ज्वलंत मुद्दा उठाया है आपने -ये बढ़ती घटनाएं चीख चीख कर कह रही हैं कि हम एक पूरी तरह से भ्रष्ट समाज में जी रहे हैं जहां मानवीयता और नैतिकता पनाह मांग रही है -हमें खुद अपने स्तर और सामूहिक स्तर पर अब बिनाऔर देरी के इस स्थति से निपटने की मुहिम छेड़नी होगी -अन्यथा सब इसके चपेट में आते जायेगें !
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही मुद्दा उठाया है। सेहत को बनाए रखने के लिए लोग फल और सब्जियां खाते हैं लेकिन इन्हें भी खाते समय मन में यह विचार आ ही जाता है कि धरती से पैदा किए गए इन कुदरती खाद्य पदार्थों में इंसान ने अपने मुनाफे के लिए न जाने कितना जहर मिला दिया है। आपकी यह बहस दूर तक जाएगी, लेकिन लोग जागरुक कैसे होंगे यही विचारणीय प्रश्न है? इस विषय पर शुरु करने के लिए आपको बधाई।
जवाब देंहटाएं-डॉ. रत्ना वर्मा
यह मुद्दा आप ने सही ऊठाया, लेकिन इस का इलाज हमारे तुम्हारे हाथ मे नही, सारा दिन भारत मे एक आदमी क्या क्या खाता हे ओर किस किस मे मिलावट हे, यहां तक कि दवाये भी नकली, पानी भी नकली,इस का इलाज सिर्फ़ सख्त कानून बना कर किया जाना चाहिये जो भी कम्पनी मिलावट करती पकडी जाये, पहली बार या अंतिम बार उस के घर के एक एक समान की निलामी करवा कर उसे सडक पै खडा कर दे, ओर कठोर से कठोर सजा दे, फ़ंसी तक भी, क्योकि वो तो बहुत से लोगो का हथियारा हे, जब कि ऎसा होना भारत मे नम्मुकिन हे, क्योकि इन मिलावट करने वालो के पीछे हमारे नेता खडे हे, सिर्फ़ मिलावटियो के पिछे ही नही गुंडे बदमाशो, लूटॆरो, चोरो के पीछे भी हमारे नेताओ का हाथ हे, जो लोग भारत से बाहर रहते हे, उन्हे मालूम हे सख्त कानून क्या से क्या कर सकते हे, जर्मनी मे ट्रेफ़िक मिनिस्ट्र का ही लाईसेंस दो साल के लिये छीन गया था, जब की उस जुर्म की सजा दो महीने थी, उसे दो साल इस लिये कि ट्रेफ़िक मिनिस्ट्र हो कर जो कानून का पालन नही करता उसे सजा बहुत ज्यादा दो, ओर उस की जमानत भी रद्द, कोई मिलावट करता पकडा जाये तो... उसे सजा के साथ ही सडक पर खडा कर देती हे यहां की सरकारे, यह सब भारत मे नाम्मुकिन.
जवाब देंहटाएंया जो भी मिलावट करता पकडा जाये, जनता उसे मिल कर इतना पिटे की वो वही मर जाये...दस केस ऎसे हो जाये फ़िर देखो केसे मिलावट होती हे
सारे समाज ही पैसे के पीछे भाग रहा है और अपराध करने में तनिक भी नहीं हिचक रहा है क्या कीजिएगा।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयक्ष प्रश्न ये है की सब कुछ जानते हुए भी हम इन मिलावट खोरों के खिलाफ व्यक्तिगत या सामूहिक कदम क्यू नहीं उठाते . शायद ऑक्सीटोसिन की सांद्रता हमारे दिमाग और जिजीविषा भर भी असर कर चुकी है .
जवाब देंहटाएंअब हमें तरीके बदलने होंगे मशाल जी. हमें आवाज़ उठाने के लिए अब सीधे निशाने साधने होंगे पर सबसे पहले तो स्वयं में ही परिवर्तन लाने होंगे जब तक हम स्वयं को अनुशासित न बना पाए हम दूसरों से आशा नहीं कर सकते. और शिक्षा में एक जबरदस्त परिवर्तन चाहिए हमें इसे संवेदनात्मक बनाना होगा. और यह पहल यहाँ छत्तीसगढ़ में शुरू होने जा रही है. बस ईश्वर से प्रार्थना है की यह ज्योत कभी बूझे न और यह मशाल बन जाये. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंरोशनी
यह चिंतनीय विषय है इस पर लोगों को सोचना ही होगा. क्योंकि कहीं न कहीं वे भी इसका शिकार बनते जा रहे हैं. आप दूसरों को धोखा देते हो पर कहीं न कहीं आप भी बेवकूफ बन रहे होते हो. और रुपयों से कभी भी सम्मान नहीं ख़रीदा जा सकता. सम्मान और प्रेम हमें निरंतर चाहिए और ये सब हम सीमित वस्तुओं से पूरा करने की कोशिश में लगे रहते हैं. और हम भ्रमवश एक के बाद एक बड़ी गलतियाँ करते जाते हैं और सारी मानव जाती और सृष्टि के लिए भयावह / विनाशकारी होते जा रहे हैं. आपका बहुत बहुत धन्यवाद मशाल जी इस गंभीर विषय को उठाने के लिए. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंरोशनी
अत्यंत गंभीर विषय है
जवाब देंहटाएंआज किसी भी चीज में शुद्धता की गारन्टी नहीं है ! मुनाफाखोरी की हवस ने अब हर चीज को अशुद्ध कर दिया है ! बच्चे आज सिंथेटिक दूध पीकर बड़े हो रहे हैं ! घी में मिलावट, पनीर में मिलावट, सब्जियां केमिकल से पकी हुई, गेंहू में मिलावट, दाल में मिलावट , चावल में मिलावट ! यहाँ तक कि भगवान को चढ़ने बाला प्रसाद में भी मिलावट ! देश के हर छोटे- बड़े शहर, गाँव और कस्बों का एक सा हाल है ! अब तो मिलावट के धंधे को बढता देख बड़ी कंपनीया भी मिलावट करवाने लगी है ! क्यों की उन्हें तो सिर्फ़ फायदा ही चाहिए लोगो का स्वस्थ कैसा भी रहे उन्हें कुछ फर्क नही पड़ता ! इन मिलावटखोरों को सजा देने की प्रक्रिया भी बेहद झोल भरी है ! स्थानीय लैब में सैम्पल जाने से लेकर केन्द्रीय लैब तक सैम्पल टेस्ट होने में ही वर्षों निकल जाते हैं ! इन मिलावट करने वालो को किसी का कोई डर नही क्यों की इन्हे कोई पकड़ेगा नही और पकड भी गये तो रूपये दे कर छूट जाएगे !
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जब एक आम आदमी रोज ही इस तरह की ख़बरें देखता- सुनता और पढता है तो उसका विश्वास भी अपने ऊपर से डगमगा जाता है ! आखिर वह किस पर यकीन करे और किस पर नहीं, उसे समझ नहीं आता ! क्या असली और क्या मिलावटी ? अब उसे हर चीज में मिलावट नजर आती है ! आज के दूषित वातावरण में हम इंसानों के व्यवहार, रिश्ते-नाते, मान-सम्मान, रीति-रिवाज, दोस्ती- प्रेम सब कुछ मिलावट भरे से लगते हैं !
good post....thoughtfull..
जवाब देंहटाएंvicharneey
जवाब देंहटाएंहमारे देश में इस तरह की हरकत विकसित देशों से ही आई है, खाद्य सामग्री तो चलो ठीक है, आपको पता चल जाए तो उसको नहीं खरीदेंगे पर जब खून में मिलावट करके बेचा जाने लगे तो भयावहता को सोचा जा सकता है. इस पर गहन चिंतन की जरूरत है पर जब हम देह, सेक्स, आजादी, विमर्श, नशा, मुक्ति आदि जैसे अति-गंभीर मुद्दों से अपना ध्यान हटा लें तब यहाँ पर ध्यान दें.
जवाब देंहटाएंजय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
ताजे हरे पत्ते वाले पालक को धोते समय जब हरा पानी निकला तो उसकी ताजगी का रहस्य समझ आया ...कहाँ तक बचें , हर चीज में मिलावट...
जवाब देंहटाएंकिसी अन्य से सुधार की अपेक्षा रखने से पहले खुद को सुधारना होगा ...बहुत सही !
जब सारे कुए में ही भंग पड़ी हो तो क्या किया जाए |बहुत अच्छे मुद्दे
जवाब देंहटाएंआशा
shayad tab tak ye chalega jab tak swayam kaal ka graas na ban jae..........
जवाब देंहटाएंdikhava jhootee shaan bhee sahyog dete hai ise gair kanoonee tareeke se kaam karne kee .
atayant gambhir aalekh..
जवाब देंहटाएंpraveen jee ne sahi kaha!
दीपक जी जब समाज का नेत्रुत्व अपने कर्तव्यो से विमुख होकर भ्रष्टाचार मे लिप्त हो जाये तो समाज का भी पतन होने लगता है
जवाब देंहटाएंअभी परसों की ही तो बात है.पिताजी मछली लेकर आए थे ,बोले ताज़ी है जल्दी से धोकर बना लो.रक्तरंजित मछली ताज़ी ही लग रही थी.मैंने जैसे ही उसे धोया मेरे हाथ लाल रंग में रंग गए .मैं अपने हाथों को और मछली पथराई आँखों से मुझे देख रही थी.
जवाब देंहटाएंबहुत ही गंभीर प्रश्न उठाया है मशाल जी इस गंभीर विषय को उठाने के लिए. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंस्थित गंभीर और चिंताजनक है।
जवाब देंहटाएंसार्थक और विचारोत्तेजक पोस्ट।
दीपकजी, अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढकर, बहुत से अछे लोग हैं यहाँ, अच्छी -२ टिप्णियाँ भी कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंये सचमुच बहुत गंभीर मुद्दा है, पर लोग पता नहीं क्यों सब कुछ चुपचाप सहन करते चले जाते हैं,
जो लोग दूसरों को जहर खिला, या पीला रहे हैं उनको तो मौत की सजा होनी चाहिए
दीपक के द्वारा उठाया गया विषय वाकई सोचनीय है परन्तु सोच कर ही रह जाते है अब करने की आवश्यकता है लेकिन करे क्या?....हम क्या कर सकते है?.....हमारे अकेले से क्या होगा? ज्यादा से ज्याद हम मिलावटी चीजों से दूर रहने की कोशिश (जैसा की हम पिछले २ साल से हल्दीराम की सोनपापड़ी खा कर त्यौहार मन रहे है और अपने आप को सेफ समझ रहे है......) कर रहे है
जवाब देंहटाएंकिस चीज़ से बचे ....सब्जी, फल, दूध, घी..मै याद करने की कोशिश कर रही हूँ कि क्या सुरक्षित बचा है? मिलावट करने वाले लोगो मै डर क्यों नहीं है नेतिकता क्यों नहि है
मुझे लगता है कि सबसे बड़ी प्रॉब्लम है इन लोगो मै डर नहीं है.क्यों कि जब यह लोग पकडे जाते है तो मात्र कुछ रुपयों का जुरमाना या कुछ दिन कि जेल कि सजा का ही प्रावधान hai....अब आर को इन लोगो के खिलाफ कानून मै कुछ बदलाव लानेकी जरुरत है जब १ आतंकवादी हमला करता है और ८-१० लोगो के मारे जाने पर पूरे देश मै प्रदर्शन होता है सरकार भी जाग जाती है फिर यहाँ तो देश के ही कुछ लालची लोग हजारो लोगो कि जान से खेल रहे है क्या सरकार को ऐसे लोगो के पकडे जाने पर उन पर attemp to murder लगाने कि जरुरत है जो जान बूझ कर लोगो कि जान से खेल रहे है ........ और कुछ बदलाव के साथ ऐसे लोगो पर रा सु का लगाने कि जरुरत है.
बाकि एक सामान्य नागरिक क्या करेगा? मिलावटी चीजों से दूर रहेगा .......या...मिलावट करने वालो लोगो को पकद्वायेगा (और वोह लोग छूट जायेंगे)..........
मुद्दा बहुत गंभीर है...
जवाब देंहटाएंपर ऐसा लगता है...हमें अब इतनी आदत पड़ चुकी है कि..शायद शुद्ध खाद्दान्न ही पाच्य ना हो :)
बात बहुत गहरी है, लेकिन सच ये है कि हम सब used-to हो चुके हैं। अब तो शायद असली माल नुकसान पहुँचा दे। महानगरों में तो आमतौर पर सुनते हैं कि असली दूध से पेट खराब हो जाता है और दूधवाले से शिकायत होती है कि दूध सही नहीं।
जवाब देंहटाएंकानून जो बने हुये हैं, अगर उनका भी सही से पालन हो जाये तो स्थिति इतनी खराब नहीं हो।
सामाजिक और राष्ट्रीय चरित्र के हिसाब से बेहद गंदे लोग हैं हम सभी !
जवाब देंहटाएंbhai deepakji !
जवाब देंहटाएंshukriya aapka is aalekh ke liye
bahut sahi aur samaya par likha...
badhaai !