झाँक रहीं थीं सूरज की ओर
उनके धुंधले पड़ते अक्स से
मानो सूरज के थे पुराने रिश्ते
तस्वीरें ढूंढ रहीं थीं
आशा की किरण मेरे लिए
आग के महाकूप से निकलती लपटें झुलसा देतीं
खामोश तस्वीरों की उमीदों को
मगर पगली तस्वीरें फिर नयी आस उगा लेतीं
उनके चारों कोने सोख लेते कुछ ऑक्सीजन
वो फिर लग जाती नई कोशिश में
तस्वीरें सपने नहीं देखतीं
इसलिये कि तस्वीरें कभी नहीं सोतीं
पर आज जाने कैसे आँख लग गई उनकी
रात के तीसरे पहर
एक तस्वीर बड़बड़ा रही थी ख्वाब में
'अब तुम आ गए हो तो...
आशा की किरण का क्या करना'
पता नहीं जाने किसे देखकर
पता नहीं जाने किसे देखकर
दीपक मशाल
(कविता गर्भनाल में पूर्व प्रकाशित)
तस्वीरें सपने नहीं देखतीं
जवाब देंहटाएंइसलिये कि तस्वीरें कभी नहीं सोतीं
सुंदर भाव
bahut sundar rachna hai dipakji, har baar ki tarah uttam prastuti
जवाब देंहटाएंहिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्र की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
तस्वीरें स्मृतियों में जकड़ जाती हैं, इसीलिये नहीं सो पाती हैं। बहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा कविता...वाह!!
जवाब देंहटाएंनव-संवत्सर पर हार्दिक शुभकामनायें।
बहुत दिनों बाद पोस्ट पढ़ने को मिली इसके लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.... आपको बधाई
जवाब देंहटाएंVivek Jain vivj2000.blogspot.com
रात के तीसरे पहर
जवाब देंहटाएंएक तस्वीर बड़बड़ा रही थी ख्वाब में
'अब तुम आ गए हो तो...
आशा की किरण का क्या करना'
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं .
शुक्रिया.... इसे पढ़ने का मौका दिया यहाँ पोस्ट कर...अच्छी लगी...
जवाब देंहटाएं'अब तुम आ गए हो तो...
जवाब देंहटाएंआशा की किरण का क्या करना'
bahut khub...deepak bhai...aapke shabd lajabab!!
तस्वीरें ढूंढ रहीं थीं
जवाब देंहटाएंआशा की किरण मेरे लिए..
बहुत सुन्दर कविता।
'अब तुम आ गए हो तो...
जवाब देंहटाएंआशा की किरण का क्या करना'
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं .
वाह ! जी,
जवाब देंहटाएंइस कविता का तो जवाब नहीं !
हमेशा की तरह एक शानदार सोच का परिचय दिया है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंतस्वीरें सपने नहीं देखतीं ...सच है. पर दिखाती जरुर हैं.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता.
..यह कविता बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंतस्वीरें होती ही ऐसी हैं । किसी को भी उलझा सकती हैं ।
जवाब देंहटाएंस्मॄतियां जब चित्रावली बन जाती है, तब स्मॄतियां विस्मॄत करने लगती हैं..
जवाब देंहटाएंati sundar...
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