शनिवार, 12 मार्च 2011

झील के पानी में भी वो इक रवानी ढूंढती है!!---------->>>दीपक मशाल


संयम की मूरत में उग्रता की निशानी ढूंढती है,
आस की देवी बूढ़ी रगों में जवानी ढूंढती है!
हय ढूंढती है भावनाएं कब्र के कंकाल में वो, 
झील के पानी में भी वो इक रवानी ढूंढती है!! 

कैसे तू भूली ऐ देवी काल ना सतजुग रहा अब,
जलजलों में जी रहा इंसां जो सचमुच रहा अब, 
सत्य की जय कह रहे हैं पर झूठ से भी मेल है, 
कहता कुछ है आदमी और कर कुछ रहा अब,

पूष में तो ढूंढती है तमतमाते सूर्य को और,
जेठ के महीने में वो पुरबाई सुहानी ढूंढती है!  

उसने समझा सच दिख रहा सुबह के अखबार में,  
देश प्रगति कर रहा संसार में संचार में व्यापार में, 
पर नई जमात आई है जिसने कलम बेच खाई है, 
जो करती चुपके से दलाली जनतंत्र के दरबार में, 

इसको क्या मालूम अस्ल ख़बरों की खबर क्या, 
हकीकत के दर्द में जो सनसनी कहानी ढूंढती है! 

डूबती है नब्ज़, साँस आख़िरी बस चल रही है,
रोज़ संसद में चिता गणतंत्र की जल रही है,
दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रहीं हैं कोठियां,
नींव भरने वाले की झोपड़ी पर खल रही है,  

नई दुनिया में अलग है महक आज रिश्तों की, 
तू किसलिए इनमे वही खुशबू पुरानी ढूंढती है!! 
दीपक मशाल 

तस्वीर- अमृता शेरगिल का एक सेल्फ पोर्ट्रेट 
 

17 टिप्‍पणियां:

  1. प्यारी रचना ...शुभकामनाएं आपको !!

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  2. पूष में तो ढूंढती है तमतमाते सूर्य को और,
    जेठ के महीने में वो पुरबाई सुहानी ढूंढती है!
    ..वाह। नज़्म के भाव उम्दा हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. होली की अपार शुभ कामनाएं...बहुत ही सुन्दर ब्लॉग है आपका....मनभावन रंगों से सजा...

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहद शानदार रचना है दीपक्…………बहुत गहरे भाव सीधे दिल से निकले हैं।

    जवाब देंहटाएं
  5. उसने समझा सच दिख रहा सुबह के अखबार में,
    देश प्रगति कर रहा संसार में संचार में व्यापार में,
    पर नई जमात आई है जिसने कलम बेच खाई है,
    जो करती चुपके से दलाली जनतंत्र के दरबार में,

    बेहतरीन लेखन ।
    अति सुन्दर ।

    जवाब देंहटाएं
  6. खदेरन बहुत ही स्मार्ट है... यह शानदार रचना दिल को छू गई..

    जवाब देंहटाएं
  7. नई दुनिया में अलग है महक आज रिश्तों की,
    तू किसलिए इनमे वही खुशबू पुरानी ढूंढती है!!
    bahut hi achhi rachna

    जवाब देंहटाएं
  8. उसने समझा सच दिख रहा सुबह के अखबार में,
    देश प्रगति कर रहा संसार में संचार में व्यापार में,
    पर नई जमात आई है जिसने कलम बेच खाई है,
    जो करती चुपके से दलाली जनतंत्र के दरबार में,
    --
    बहुत उम्दा!

    जवाब देंहटाएं
  9. सही है और ठीक भी है ये कविता में जो आक्रोश है थोड़ा सा..
    बहुत अच्छी लगी कविता...

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  10. कैसे तू भूली ऐ देवी काल ना सतजुग रहा अब,
    जलजलों में जी रहा इंसां जो सचमुच रहा अब,
    सत्य की जय कह रहे हैं पर झूठ से भी मेल है,
    कहता कुछ है आदमी और कर कुछ रहा अब,

    Bahot Sachhi Baat.......Dipak bahot hi sunder likhte ho.....

    जवाब देंहटाएं
  11. इसको क्या मालूम अस्ल ख़बरों की खबर क्या,
    हकीकत के दर्द में जो सनसनी कहानी ढूंढती है!


    बहुत जबरदस्त!!

    जवाब देंहटाएं
  12. इसको क्या मालूम अस्ल ख़बरों की खबर क्या,
    हकीकत के दर्द में जो सनसनी कहानी ढूंढती है!
    नई दुनिया में अलग है महक आज रिश्तों की,
    तू किसलिए इनमे वही खुशबू पुरानी ढूंढती है!!
    वैसे तो ऐसा कोई शेर नही जिस की तारीफ न की जाये मगर ये दो तो मुझे बहुत ही अच्छे लगे। बधाई और आशीर्वाद।

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  13. आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं

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