शुक्रवार, 11 मार्च 2011

इश्क़ में कभी तुम बंजारे नहीं लगे--------->>>दीपक मशाल



कल रात चक्खे थे आँसू वो खारे नहीं लगे !
तुम्हारे जाने के बाद हम हमारे नहीं लगे !!

ना जीते रहने की खुशी ना दहशत है मौत से
जिनकी आंच से डरते थे  अंगारे नहीं लगे !!


होली इस बार भी आई तो थी मोहल्ले में
मगर रंग चहरे पर हमारे तुम्हारे  नहीं लगे !!


मुश्किल नहीं था हमारे लिए यूँ  शादी रचाना
पर  मन के आईने में  खुद कुंआरे नहीं लगे !!


मौके  कई आए हाथ मझधार से बचने को
मगर तुम बिन डूबना था  सो किनारे नहीं लगे !!


इसमें भी ढूंढते हुए तुम जीत की मंजिल रहे
'मशाल' इश्क़ में कभी तुम बंजारे नहीं लगे !! 
दीपक मशाल 

24 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन, आँसुओं ने भी खारापन खो दिया।

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  2. बेहद खूबसूरत...बेहतरीन है सर जी..

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  3. bahut khub dipakji,
    bahut dinon baad aaye maidan main aur
    aate hi sixer jad diya ,

    ek - ek line behtreen, bahut sundar rachna

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  4. ओहो ..क्या बात है लल्ला । बेटा आज तो फ़िर किसी मेम की याद बडी जोर से आई है । चलो यदि कुवांरे रहने से ही अईसा कमाल लख रहे हो तो कुछ दिन और बैचलरी कर लो ....। बहुत ही सुंदर लिखा है बच्चे

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  5. मौके कई आए हाथ मझधार से बचने को
    मगर तुम बिन डूबना था सो किनारे नहीं लगे !!

    हासिले गज़ल शे'र

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  6. कल रात चक्खे थे आँसू वो खारे नहीं लगे !
    तुम्हारे जाने के बाद हम हमारे नहीं लगे !!

    kya baat hai bhai sahab!! itna dard kyon bayan kar diya aapne..~!

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  7. ना जीते रहने की खुशी ना दहशत है मौत से
    जिनकी आंच से डरते थे अंगारे नहीं लगे !!


    होली इस बार भी आई तो थी मोहल्ले में
    मगर रंग चहरे पर हमारे तुम्हारे नहीं लगे !!

    मुश्किल नहीं था हमारे लिए यूँ शादी रचाना
    पर मन के आईने में खुद कुंआरे नहीं लगे !!
    रे वाह बेटा कमाल के शेर लिख डाले। तो आजकल गज़ल पर हाथ आजमा रहे हो। बधाई शुभकामनायें। लेकिन जल्दी शादी कर लो हमे तो तुम कंवारे ही लगते हो। हा हा हा।

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  8. कल रात चक्खे थे आँसू वो खारे नहीं लगे !
    तुम्हारे जाने के बाद हम हमारे नहीं लगे !!

    यही तो इश्क है जब इंसान खुद का भी ना रहे और जहान का भी ना रहे…………॥


    मुश्किल नहीं था हमारे लिए यूँ शादी रचाना
    पर मन के आईने में खुद कुंआरे नहीं लगे !!

    जरूरत क्या है…………ये तो इक ख्याल की तरह है वरना ज़िन्दगी जीने को मन का आईना भी काफ़ी है।



    एक से बढकर एक शेर हैं दीपक्………पूरी गज़ल ना जाने कौन सी चाशनी मे डुबोकर लिखी है कि सीधे दिल मे उतरती है।

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  9. मौके कई आए हाथ मझधार से बचने को
    मगर तुम बिन डूबना था सो किनारे नहीं लगे !!

    बेहतरीन गज़ल .....

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  10. वाकई बहुत अच्छी रचना दीपक ! शुभकामनायें !

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  11. होली इस बार भी आई तो थी मोहल्ले में
    मगर रंग चहरे पर हमारे तुम्हारे नहीं लगे !!

    आह होली पर ऐसा अत्याचार ! कैसे सहन किया यार ?

    बढ़िया ग़ज़ल ।

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  12. मुश्किल नहीं था हमारे लिए यूँ शादी रचाना
    पर मन के आईने में खुद कुंआरे नहीं लगे !!

    waha bahut khub...dil se likhi kriti

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  13. • ग़ज़ल में आपकी गहरी संवेदना, अनुभव और अंदाज़े बयां खुलकर प्रकट हुए हैं।

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  14. मौके कई आए हाथ मझधार से बचने को
    मगर तुम बिन डूबना था सो किनारे नहीं लगे !!

    kya baat hai..waah!!

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  15. कल रात चक्खे थे आँसू वो खारे नहीं लगे !
    तुम्हारे जाने के बाद हम हमारे नहीं लगे !!
    बहुत सुन्दर

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  16. हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया हजरात..

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  17. मुश्किल नहीं था हमारे लिए यूँ शादी रचाना
    पर मन के आईने में खुद कुंआरे नहीं लगे !
    दीपक जी ,आइना का मन का है बदल भी नहीं सकते बहुत अच्छा लगा , बधाई !

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  18. मौके कई आए हाथ मझधार से बचने को
    मगर तुम बिन डूबना था सो किनारे नहीं लगे !!

    बहुत सुंदर ग़ज़ल -
    कई बार पढ़ी -
    बधाई |

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  19. ना जीते रहने की खुशी ना दहशत है मौत से
    जिनकी आंच से डरते थे अंगारे नहीं लगे !!
    waah kya baat hai

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  20. इसको क्या मालूम अस्ल ख़बरों की खबर क्या,
    हकीकत के दर्द में जो सनसनी कहानी ढूंढती है
    बहुत सुन्दर. आज की पत्रकारिता का यही रूप देखने को मिल रहा है.

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