कब से इक तमन्ना
दिल में दबी हुई थी..
तुम चिंगारी कह रहे हो
पूरी आग लगी हुई थी..
सरदार संपूर्ण सिंह जी याने गीतों और नज्मों के सरताज सबके दिलों पर राज करने वाले आदरणीय गुलज़ार साब... एक ऐसी शख्सियत जो ना सिर्फ नज़्म, ग़ज़ल या गीत के मामले में बल्कि फ़िल्मकारी, निर्देशन और कहानी लेखन में भी माउंट एवरेस्ट कहे जा सकते हैं. जिनसे मिलने के लिए मैं इस बार दिसंबर में भारत जाने पर उनके एक करीबी पारिवारिक मित्र के मार्फ़त उनसे मिलने की योजनायें बना रहा था...
आदरणीया दिव्या माथुर जी के साथ |
जिनको हमेशा लेखन में अपना आदर्श मानता रहा हूँ.. उनको विगत शनिवार तारीख ०९.१०.१० को अपने सामने पाया... लगा कि कुआँ स्वयं प्यासे के पास चला आया.. राजा आया है रंक से मिलने.. चांदनी को ओढ़े हुए, हिमालय जैसे ही सफ़ेद कुरता और पेंट एवं जरी वाली सुनहरी जूतियाँ पहने हुए वो मेरे जैसे जाने कितनों के खुदा मेरी आँखों के सामने थे.. इन्हीं आँखों के सामने जो आज ये पोस्ट लिखते वक़्त की-बोर्ड को निहार रही हैं.. जब वो स्टेज पर थे तो मैं उनकी छवि को आँखों में उतारने के बाद कैमरे में समेटने में लगा रहा.. बाद में खाने के वक़्त 2010 की अप्रवासी मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से सम्मानित प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया दिव्या माथुर जी, जिनका हमेशा ही मुझपर पुत्रवत स्नेह रहा है, ने श्री गुलज़ार साब से मेरा परिचय कराया.. उनकी चरण रज पाकर अपने को धन्य भाग्य ही समझ रहा हूँ.. उनसे क्या बात हुई? क्या लेना देना हुआ वो सब बाद में पहले अभी सिर्फ वो चंद पंक्तियाँ जो उन्हें देखते ही मन से फूट पड़ीं.. शिल्प या शब्द सौंदर्य तो नहीं है इनमे मगर सिर्फ भाव के लिए शबरी के बेर की तरह चख लीजियेगा..
परदेस में ही सही
पूरा मेरा इंतज़ार हुआ है
डर था
कहीं खारों के दरमियाँ ही
ना बीत जाए ज़िन्दगी..
तुम आये तो
गुलशन ये 'गुलज़ार' हुआ है..
कुछ ज़िदें हो गयीं थीं ढीठ इतनीं
उन्हें कितना ही दिखलाता बाहर का दरवाज़ा
मगर बारहा आ धमकती थीं दबे पाँव
जाने किस फ़िराक में..
उन्हीं ज़िदों में से एक तो थी
तुमसे मिलने की ज़िद
ख्वाहिश होती तो फिर भी समझा ही लेता
खैर.... अब वो ज़िद भी ज़िन्दा ना रही
रहती भी क्यों भला?
उसकी आख़िरी तमन्ना जो पूरी हो गई
तुम आ गए हो ना चांदनी के लिबास में..
वैसे ये कुछ ज्यादा ही हो गया लेकिन फिर भी विशाल भारद्वाज से उनके करीबी रिश्तों को लेकर ये त्रिवेणी भी उपजी-
डर है सुलगकर ख़ाक ना हो जाऊं
शोला ही रहूँ मैं राख ना हो जाऊं
औरों से तेरी नजदीकियाँ, बहुत जलाती हैं मुझे..
दीपक 'मशाल'
११.१०.१० को एक बार फिरसे उनसे मिलने का मौक़ा मिला तभी ये वीडिओ भी बनाया.--
6/10
जवाब देंहटाएंशुभान-अल्लाह
आप भाग्यशाली हैं!
जवाब देंहटाएं--
बहुत-बहुत बधाई!
yesssssssssss..I missed it :( I envy u.
जवाब देंहटाएंकाफी दिन से नज़र नहीं आ रहे आये तो कुछ नया सा लेकर. गुलज़ार साहब से मिलने का असीम अनुभव आपने बता ही दिया है. शबरी के बेर भी बहुत अच्छे लगे. बधाई .
जवाब देंहटाएंगुलज़ार साहब के क्या कहने...आप धन्य हैं कि उनका आशीर्वाद आपको मिला...उनके साथ रहेंगे तो इस तरह की सुंदर कविताएं तो मन से निकलेंगी ही
जवाब देंहटाएंWaqayi bahut bhagyshali hain aap! Aur rachana,behtareen!
जवाब देंहटाएंबहुत ही आप सौभाग्यशाली है की आपकी मुलाकात गुलज़ार जी से हुई ... बहुत ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी है ..
जवाब देंहटाएंउस दिन ये गीत चल रहा था ----"तुम जो मिल गए हो तो ये लगता है के जहां .....मिल गया" ....
जवाब देंहटाएंवाह आप तो काफी खुशकिस्मत निकले | मै तो देखने भर की तमन्ना लिए हु आप दो बार मिल आये अब तो हमें जलन हो रही है आप से | मुझे उनकी फिल्मे भी काफी पसंद आती है |
जवाब देंहटाएंअरमान निकल कर घर से कोई
जवाब देंहटाएंचला आया था
आसमान में देखा कोई तारा फिर टूटा था ...
how lucky u r....
बहुत ही आप सौभाग्यशाली है की आपकी मुलाकात गुलज़ार जी से हुई ... बहुत ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी है ..
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत
बहुत-बहुत
.............
बधाई!
तुम्हारी इस पोस्ट का इंतज़ार था...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएं कर डालीं...
अगली पोस्ट में कुछ और संस्मरण लिख डालो, मय तस्वीरों के
तुम भी आने वाली पीढ़ी के लिए किसी एवरेस्ट से कम नहीं हो.
जवाब देंहटाएंआशीर्वाद.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
क्या हालत बना ली है
जवाब देंहटाएंकुछ लेते क्यों नहीं...
बधाई हो..
गुलजार साहब से मिलने का सौभाग्य मिला आपको
बहुत खुब जी , आज खुश कर दिया, आप को दुर्गाष्टमी की बधाई
जवाब देंहटाएंThe moments to cherish for life time
जवाब देंहटाएं-आनन्द आ गया देख, सुन, पढ़ कर...
बहुत बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ.
बहुत अच्छा लगा देख , पड़ कर ......भाग्य के धनी है आप !
जवाब देंहटाएंबधाईयाँ .
इस माननीय हस्ती से मिल सके यह जानकर अच्छा लगा....
जवाब देंहटाएंबाकी रश्मि रविजा जी का कहना सही है.... आगे ऐसे ही संस्मरण वाली पोस्ट का इंतजार रहेगा....
वे तो हमें भी अच्छे मतलब बहुत अच्छे लगते हैं पर आप मिल पाये :)
जवाब देंहटाएंआपके फेसबुक प्रोफाइल पे तो कल रात ही देख लिया था सारे फोटो...आज सब पढ़ देख बड़ा अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंत्रिवेणी खासकर...
सब कुछ अच्छा है...
बहुत सुन्दर पोस्ट
हम तो मुंबई में रह कर पिछड़ गये ,आप ने बाजी मार दी ।
जवाब देंहटाएंआप भाग्यशाली हैं!
जवाब देंहटाएं--
बहुत-बहुत बधाई!
बड़े किस्मत वाले हो भाई ...
जवाब देंहटाएंदीपक भाई शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंapni khushi me hame bhi shamil rakhna.
जवाब देंहटाएंनिसंदेह जिसे आप इतना पसंद करते हैं,दिल में एक खास जगह उनके लिए रखते है उनसे मिलना सुखद होता है.गुलज़ार जी के नाम को मात्र पढ़ कर मैं उनकी फिल्म्स देखने चली जाती थी और उनकी हर फिल्म को मैंने देखा.किसी खूबसूरत कलाकृति सी होती थी उनकी फिल्म्स और उनके लिखे गीत एक अलग ही पहचान रखते हैं.और लिखना क्या क्या बाते हुई.प्यार
जवाब देंहटाएंbadhaee.
जवाब देंहटाएंshubhkamnae.......
बहुत बहुत बधाईयां। अब ज़िन्दगी से कभी गिला नही करना क्यों कि जो तुम सच्चे दिल से चाहते हो मिल जाता है। आशीर्वाद।
जवाब देंहटाएंये तो सिर्फ़ ट्रेलर लगाया है अभी दिल नही भरा………………पूरा संस्मरण लगाना और बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआखिर मुलाकात तो हुयी
कुछ दिल की बात तो हुयी
कुछ अरमान तो निकले
बस थोडे कम निकले
...ऐसी उमदा शख्सियत से मुलाकात होना, अहोभाग्य है आपका दिपकजी!...पिछ्ले चार दशकों से गुलजार साहब जनता के दिलों पर राज कर रहे है!...उनका आशिर्वाद पा कर आप भी जीवन में बहुत तरक्की करें...यही हार्दिक शुभेच्छा!
जवाब देंहटाएंभई हमे तो मज़ा आ गया । खुशी प्रकट करने के लिए तो शब्द ही नहीं हैं ।
जवाब देंहटाएंगुलजार साहब की बात ही निराली है।
जवाब देंहटाएंविश्व हिन्दी सम्मेलन न्यूयार्क में गुलजार साहब से मुलाकात हुई थी। वे पूरे तीन दिन सम्मेलन में रहे थे। उनकी कविता भी सुनने को मिली थी। उनका व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावित कर गया था। इतनी सादगी कि कोई भी उनके साथ फोटो खिंचाए या बाते करे, उनकी मुस्कराहट कम नहीं होती थी। आपने उनसे मुलाकात की, वास्तव में वे क्षण बहुत अनमोल होंगे। आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंगुलज़ार साहब के गीतों को कोई ज़वाब नहीं । बधाई इस मुलाकात के लिए ।
जवाब देंहटाएंआदरणीया अजित मैम,
जवाब देंहटाएंआपने बिलकुल सच कहा.. उनकी सादगी तो ऐसी है कि बस कोई भी प्रभावित हुए बिना ना रह पाए.. खुशी हुई कि कार्यक्रम के २-३ दिन बाद भी उन्होंने याद रखा इस नाचीज़ को साथ ही उनके जो स्कैच मैंने बनाये थे और 'अनुभूतियाँ' की एक कॉपी अपने साथ मुंबई ले गए.. धन्य महसूस कर रहा हूँ.. :)
दीपक भाई, बहुत बहुत बधाई। ऐसा दुर्लभ क्षण बहुत कम लोगों के जीवन में आता है।
जवाब देंहटाएंवाह !!क्या बात है आपके जरिये ही उन्हें जान लेंगे हम
जवाब देंहटाएंउफ्फ!!! मैं तो जल भुन कर ख़ाक हुआ जा रहा हूँ..
जवाब देंहटाएंबस दिल में तमन्ना हो, मंजिलें मिल ही जाती हैं !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ! और आप भी जनाब फोटो में झकास (superb) लग रहे हों :)
देखना सुनना पडःअना सब सुंदरतम.
जवाब देंहटाएंदुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.
रामराम.
दीपक भाई, आपको भी विजयादशमी की शुभ कामनाएं, और धन्यवाद आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिये :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संयोग मिला और वो सपना था तो साकार हुआ. ऐसे सपने रोज सच होते रहें ऐसी कामना है और इस बारे में और पढ़ने कि इच्छा है.
जवाब देंहटाएंaapne gulzar sahab se hui mulakat ko behad khubsurat shabdo me likha hi and aapko unse hui mulakat k leye bahut badhaye
जवाब देंहटाएंबधाई ... आपकी आस पूरी हुई ...
जवाब देंहटाएंदीपक, आपके अनुभव पढ़ कर मुझे इस वर्ष जयपुर के साहित्य सम्मलेन और इस्मत और मंटो पर दो दिनी दिल्ली में हुए सम्मलेन की याद ताज़ा हो आई. सच, उनकी सादगी और उनका अंदाज़ सामने वाले को मोहित किये बिना नहीं छोड़ता. सौभाग्य है कि उनसे मुलाकात हुई और कुछ बात हुई.
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