उत्तरी कैरोलिना से सुप्रसिद्ध साहित्यकार आदरणीया डॉ.सुधा ओम ढींगरा जी के सौजन्य से ये रिपोर्ट प्राप्त हुई.. सोचा आप सब साथियों से साझा कर लिया जाए.. भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रसार का सम्माननीया डॉक्टर सा'ब और उनके साथियों का यह प्रयास निश्चित ही सराहनीय है..
अक्तूबर १७, २०१० को हिंदी विकास मंडल एवं हिन्दू सोसाईटी (नार्थ कैरोलाईना) ने मौरिसविल (नार्थ कैरोलाईना) के हिन्दू भवन के खुले ग्राउंड में दशहरा उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया| ३८ फुट का रावण (जिसका शरीर ३० फुट का, सिर ६ फुट का, मुकुट १.८ फुट का और कलगी ०.२ फुट की थी) सबके आकर्षण का केंद्र था| अमेरिका में यह सबसे बड़ा रावण था| इसका डिजाइन और ढांचा स्वयं-सेवकों की टीम (अशोक एवं मधुर माथुर, रमणीक कामो, अजय कौल, डॉ. ध्रुव कुमार, सतपाल राठी, डॉ. ओम ढींगरा, मदन एवं मीरा गोयल, ममता एवं प्रदीप बिसारिया, तुषार घोष, उत्तम डिडवानिया, लुईस और रमेश माथुर) ने तीन महीने की मेहनत और लगन से तैयार किया|
रावण दहन से पहले राम और रावण के द्वन्द्व युद्ध का मंचन किया गया| ध्वनी और प्रकाश के प्रयोग ने इसे बहुत प्रभावित बना दिया| राम जी की भूमिका (अतीश कटारिया), सीता जी (स्मिता कटारिया), लक्ष्मण (रमेश कलाज्ञानम), हनुमान (डॉ. ध्रुवकुमार), ब्राह्मण (रमेश माथुर ) और रावण (डॉ. अफ़रोज़ ताज) ने किया| रामलीला के इस अंश को लिखा और प्रस्तुत किया डॉ. सुधा ओम ढींगरा ने और निर्देशन दिया रंगमंच के प्रसिद्ध कलाकार और निर्देशक हरीश आम्बले ने| बिंदु सिंह और डॉ. सुधा ओम ढींगरा ने पात्रों का मेकअप कर उन्हें सजीव कर दिया| प्रकाश का सञ्चालन किया शिवा रघुनानन ने और ध्वनी का संयोजन किया जॉन कालवेल ने| राम और रावण को आवाज़ें दीं रवि देवराजन और डॉ. अफ़रोज़ ताज ने| राम जी की शांत और ठहराव वाली आवाज़, रावण की विद्रूप हँसी के मिश्रण पर बच्चों और बड़ों ने बहुत तालियाँ बजाईं|
रावण दहन से पहले राम और रावण के द्वन्द्व युद्ध का मंचन किया गया| ध्वनी और प्रकाश के प्रयोग ने इसे बहुत प्रभावित बना दिया| राम जी की भूमिका (अतीश कटारिया), सीता जी (स्मिता कटारिया), लक्ष्मण (रमेश कलाज्ञानम), हनुमान (डॉ. ध्रुवकुमार), ब्राह्मण (रमेश माथुर ) और रावण (डॉ. अफ़रोज़ ताज) ने किया| रामलीला के इस अंश को लिखा और प्रस्तुत किया डॉ. सुधा ओम ढींगरा ने और निर्देशन दिया रंगमंच के प्रसिद्ध कलाकार और निर्देशक हरीश आम्बले ने| बिंदु सिंह और डॉ. सुधा ओम ढींगरा ने पात्रों का मेकअप कर उन्हें सजीव कर दिया| प्रकाश का सञ्चालन किया शिवा रघुनानन ने और ध्वनी का संयोजन किया जॉन कालवेल ने| राम और रावण को आवाज़ें दीं रवि देवराजन और डॉ. अफ़रोज़ ताज ने| राम जी की शांत और ठहराव वाली आवाज़, रावण की विद्रूप हँसी के मिश्रण पर बच्चों और बड़ों ने बहुत तालियाँ बजाईं|
राम-लक्ष्मण तथा हनुमान जी के तिलक से उत्सव का आरंभ हुआ| स्टेशन वैगन को सजा कर "इन्द्र वाहन" बनाया गया और उसकी छत पर बैठ कर पूरा काफिला रामलीला ग्राउंड में पहुंचा| पीछे छोटे बच्चों की बानर सेना, हनुमान जी की तरह सजे- धजे "जय सिया राम" का उच्चारण करते चले| अमेरिका की धरती पर समय बंध गया| हज़ारों लोग राम जी की सवारी, रामलीला और रावण दहन में शामिल हुए| इस सारे कार्यक्रम को हिंदी विकास मंडल की अध्यक्ष श्रीमति सरोज शर्मा के मार्ग दर्शन में तैयार किया गया|
रिपोर्टर- कुबेरनी हनुमंथप्पा ( यू .एस .ए )
अब एक कविता जिसका शीर्षक देने के लिए(नामकरण करने के लिए) आप सबसे निवेदन है..
जाने कैसे कुछ रह ही जाता था हरबार कहने से
सोचता सब कह दूंगा आज..
हिम्मत भी करता
पर तुम साथ रहते तो
कुछ का कुछ कहता..
लगता जैसे अक्कबक्क मारी गई
कभी कुछ कहता तो
पता नहीं चलता क्या कहा क्या बाकी रहा
सही भी कहा या नहीं.. क्रम में कहा या नहीं
पर जाने के बाद तुम्हारे लगता
फिर रह गया बाकी कुछ
जाने ये कुछ क्या है..
ताज्जुब है कि इस रह जाने वाले 'कुछ' के बारे में
उसे ही नहीं पता जिसे कहना है
और ना है पता उसे जिससे कहना है
या क्या पता दोनों जानते हों..
तुम्हें पता है क्या
कैसे किसी के सामने आने से
दिल उछल कर एक सवा फिट ऊपर चढ़ जाता है
दिमाग के ऊपर..
और जमा लेता है उसपर अपना अधिकार...
जैसे बिना टोपा लगाए
घंटे भर को टहल कर आये हों बाहरगांव
जबकि चल रही हो शीत लहर जनवरी की..
दीपक 'मशाल'
सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशीर्षक- "अक्कबक्क...!"
अच्छा लगा जानकर..
जवाब देंहटाएंकविता पूरी है..इसलिए शीर्षकविहिन भी चलेगी.
रामलीला का सुन्दर चित्रण।
जवाब देंहटाएंशीर्षक देना तो सबसे कठिन कार्य है और कठिन का्यों में अभिरुचि कम ही है।
विदेशों में भी रावण दहन ..अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएं" कहा -अनकहा " ..."कही- अनकही "..!
देश के बाहर भी हमारे त्योंहारों
जवाब देंहटाएंकी ऐसी छटा बिखरती है....
अच्छा लगता है जानकर .... धन्यवाद
इसे साझा करने के लिए
"ankhi baten"
जवाब देंहटाएं'अकथ'
जवाब देंहटाएं'तेरे इश्क़ में'
2.5/10
जवाब देंहटाएंस्तरहीन रिपोर्टिंग
कम से कम दो-चार फोटो ही और लगा देते.
कविता के साथ एक सुडोकू भी देते तो बेहतर था.
acchha laga jaankar ki hamare desh ke baahar bhi hamaree sanskriti fal-fool rahi hai...
जवाब देंहटाएंThank you so much for infos, pics and solid poem...
रामलीला का चित्रण बहुत बढिया किया।
जवाब देंहटाएंजहाँ तक कविता के नाम की बात है तो बिना नाम के भी दिल मे उतर रही है और यदि फिर मे मन ना माने तो ये दे दो…………"कुछ अनकहा………मगर क्या…………नही जानता"
bahut badhiya lagaa jaankar...chitran bhi badhiya.
जवाब देंहटाएंअमेरिका में दशहरा काफी अच्छी तरह मनाया जाता है.अच्छी जानकारी दी.कविता भी अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रिपोर्ट साझा की...सोच रही हूँ...कितना उमंग होगा लोगों के बीच...कितने मन से तैयारियाँ की होंगी और उनके बच्चे भी अपनी संस्कृति से परिचित हो पाए होंगे.
जवाब देंहटाएंकविता सुन्दर है...शीर्षक तो कई लोगों ने बता दिया है...ज्यादा इकट्ठा होने पर कन्फ्यूज़ हो जाओगे :)
यू एस में रावण दहन का विवरण पढ़कर आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई ।
जवाब देंहटाएंविदेश में भी अपना देश देखना अच्छा लगा और कविता में कुछ न कह पाने की स्थिति में मेरे ब्लॉग पर "तरंगों" से कुछ जान लो
जवाब देंहटाएंविदेश में अपनी संकृति कि जीवन्तता हमें गर्व से भर देती है. इसके लिए समर्पित सभी व्यक्ति बधाई के पत्र हैं और सबसे अधिक आप जिसने इसे हम लोगों तक पहुंचा दिया. कविता अपने खुद बोल रही है शीर्षककी जरूरत नहीं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विवरण, आप ने तो पुरी राम लीला ही दिखा दी, इस बार दिल करता था कि अपने गार्डन मै एक रावण का पुतला बना कर जलाऊं,ओर फ़िर मित्रो के संग घर पर दशहरा मनाये, पता नही क्यो, लेकिन जो रावण हमारे अंदर हे पहले उसे तो निकाल बाहर करुं, इस कारण यह ना कर सका
जवाब देंहटाएंअमेरिका में रावण के सबसे बड़े पुतले का दहन और रामलीला की धूम -
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा जानकर कि विदेश में भी अपनी संस्कृति का पालन कर रहे हैं लोग।
कविता बहुत अच्छी है - ’सोचता ही रह गया’
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ....
जवाब देंहटाएंआपकी कविता लाजवाब है ... किसी भी शीर्षक की क्या ज़रूरत ... दिल की बात को कोई शीर्षक क्या देना ...
मन ही मन घुटने से क्या फायदा?
जवाब देंहटाएंआप जिसे बताना चाहते हैं उसे कम से कम अपने दिल की बात एक बार कह कर तो देखिए
कम से कम न कहने का मलाल तो नहीं रहेगा कभी!
कविता बहुत अच्छी बन पड़ी है, बिना शीर्षक ही उसका मंतव्य पूरा हो चुका है.
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