शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

देखते हैं कब तलक तुम हमको झेले जाओगे-------->>>दीपक 'मशाल'




देखते हैं कब तलक तुम हमको झेले जाओगे
ना करें कि हाँ करें हम, तुम तो पेले जाओगे

चीर उतरा द्रोपदी का आज कान्हा गुम रहा
दांव खोकर भी सभी तुम, खेल खेले जाओगे

ओए सुन लो फालतू इतना नहीं है माल ये
एक चुटकी की जगह क्या मुठ्ठी भर ले जाओगे.

हैं खड़े इक पांव पर, ये बस भरी है भीड़ से
जो पाँव भी अपना नहीं क्या उसको ठेले जाओगे

बाप की कजूंसियों का आज ये आलम हुआ
दे चवन्नी पूछता है, तुम भी मेले जाओगे

लाइफ जैकेट डाल कर, वो पूछने हमसे लगा
छेद वाली नाव को अब, किस तरफ ले जाओगे.

है ’मशाल’ हाथों में मेरे, पर जिद्द अंधेरों की रही
हम हैं जुगनु के ही साथी, तुम तो वेले जाओगे.

वेले= अकेले
ठोक पीट कर और आखिरी शेर जोड़ कर आदरणीय समीर जी ने रचना को पढ़ने लायक बना दिया..
दीपक 'मशाल'
चित्र- दीपक 'मशाल' 

39 टिप्‍पणियां:

  1. बाप है कंजूस इतना भाग में इसके बदा
    दे चवन्नी पूछता क्या तुम भी मेले जाओगे
    ....यह भी खूब रही...वो चवन्नी लाख में भी नसीब नहीं अब तो..

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  2. इक पाँव पर हैं टिके हम, बस है डीटीसी भरी
    वो पाँव भी अपना नहीं है कितना ठेले जाओगे


    -हा हा! मजेदार!

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  3. कुछ तो लोग कहेंगे, की लिखा क्यों लीक से हटकर,
    रखोगे हौसले, तो ये खेल भी बखूबी खेल जाओगे...

    अपने को तो बढिया लगा, लिखते रहिये .......

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  4. जितनी सुन्दर कविता, उतना सुन्दर चित्र।
    क्या करें, बेदर्द जमाना है,
    हमको उनसे फिर भी निभाना है।

    जवाब देंहटाएं
  5. कुछ भी कहे कोई,
    हम तो तुमको
    .... जायेंगे:)

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  6. लाइफ जैकेट डाल ली हमने तो अपने जिस्म पर
    छेद डाली नाव तुम्हारी देखें कैसे खे ले जाओगे.

    DIPAKJI,

    BAHUT SUNDAR

    जवाब देंहटाएं
  7. बाप है कंजूस इतना भाग में इसके बदा
    दे चवन्नी पूछता क्या तुम भी मेले जाओगे

    क्या खूब ! बढ़िया है ।

    जवाब देंहटाएं
  8. आक्रोश को किसी भी शक्ल में बाहर आना ही चाहिये ! आखिर को हम ठगे जा चुके हैं की, अनुभूतियां सभी को कहां होती हैं ! कुछ मासूम टाइप बन्दे उनके खेलनें में भी देश गौरव ढूंढने लग जाते हैं ! शुक्र है कि आप उनमें से एक नहीं है !

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  9. >>>:)

    kya shaandaar baat kahi hai boss apne!!

    waise sabhi waille hi jayenge.........koi jane waqt ssaath nahi hota..:)

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  10. बाप की कजूंसियों का आज ये आलम हुआ
    दे चवन्नी पूछता है, तुम भी मेले जाओगे
    चलो पूछ तो रहा है
    सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  11. 1.5/10

    लिखने को तो लिख दिया है जैसे-तैसे पोस्ट ये
    देखना है झेलने की ताब कैसे लाओगे

    बहुत हलकी पोस्ट
    सतही लेखन

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  12. हा हा गुलजार साहब से मिलने का असर है ये . उस्ताद जी क्या कर रहे है आप ?

    जवाब देंहटाएं
  13. बाप की कजूंसियों का आज ये आलम हुआ
    दे चवन्नी पूछता है, तुम भी मेले जाओगे
    वाह क्या बात है। लाजवाब। आशीर्वाद।

    जवाब देंहटाएं
  14. है ’मशाल’ हाथों में मेरे, पर जिद्द अंधेरों की रही
    हम हैं जुगनु के ही साथी, तुम तो वेले जाओगे.
    Bahut khoob!

    जवाब देंहटाएं
  15. बाप है कंजूस इतना भाग में इसके बदा
    दे चवन्नी पूछता क्या तुम भी मेले जाओगे
    सुन्दर रचना,आज कुछ अलग ही बात है

    जवाब देंहटाएं
  16. देखते हैं कब तलक तुम हमको झेले जाओगे
    ना करें कि हाँ करें हम, तुम तो पेले जाओगे
    ओए सुन लो फालतू इतना नहीं है माल ये
    एक चुटकी की जगह क्या मुठ्ठी भर ले जाओगे.
    Bahut khoob!

    जवाब देंहटाएं
  17. :) लगता है आजकल नए प्रयोग करने में लगे हो :) बढ़िया है.

    जवाब देंहटाएं
  18. लाइफ जैकेट डाल ली हमने तो अपने जिस्म पर
    छेद डाली नाव तुम्हारी देखें कैसे खे ले जाओगे.


    बढ़िया रचना...आक्रोश को बढ़िया तरह से शब्दों में उंडेला है..

    जवाब देंहटाएं
  19. वाह दीपक जी,

    आज तो मशाल हर कोनें को उज्जवल कर गई।

    देखते हैं कब तलक तुम हमको झेले जाओगे
    ना करें कि हाँ करें हम, तुम तो पेले जाओगे

    जवाब देंहटाएं
  20. पोस्ट पुनर्मूल्यांकन
    3.5/10

    मेल प्राप्त हुयी
    आपका कहना सही लगा
    आपकी व्याख्या और सन्दर्भ के पश्चात पोस्ट का पुनर्मूल्यांकन जरूरी हो गया था. लेकिन सवाल यह भी है कि आप किस-किससे व्याख्या करेंगे :)

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  21. @उस्ताद जी..
    चलिए आपने कैसे भी पास तो कर दिया ३३% के ऊपर है अब.. :)

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  22. वाह दीपक जी,

    ........क्या खूब ! बढ़िया है ।

    जवाब देंहटाएं
  23. बेह‍तर रचना। अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ सशक्‍त अभिव्‍यक्ति।

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  24. आपका ये प्रयोग सराहनीय रहा, जैसा कि कई लोगों की टिप्पणियों से पता चलता है। हमें तो खूब पसंद आया।

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  25. उस्ताद जी की अप्रूवल से ग्रेस के साथ पास घोषित. :)

    जवाब देंहटाएं
  26. है ’मशाल’ हाथों में मेरे, पर जिद्द अंधेरों की रही
    हम हैं जुगनु के ही साथी, तुम तो वेले जाओगे.
    --
    बहुत सुन्दर गजल है!

    जवाब देंहटाएं
  27. है ’मशाल’ हाथों में मेरे, पर जिद्द अंधेरों की रही
    हम हैं जुगनु के ही साथी, तुम तो वेले जाओगे.

    बह्त खूब रचना

    जवाब देंहटाएं
  28. वाह अच्छी रचना
    आप ही किसी को साथ ले लो ना

    जवाब देंहटाएं
  29. कुछ अलग सी बन पड़ी है रचना.... अच्छा लगा पढ़कर

    जवाब देंहटाएं
  30. लगता है उस्ताद जी की भी मार्क शीट निकलवानी पड़ेगी...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  31. वाह दीपक उस्ताद जी को भी झिलवा ही दिया ...हा हा हा...एक मेल और करो..थोड़ी और व्याख्या.....

    जवाब देंहटाएं
  32. चीर उतरा द्रोपदी का आज कान्हा गुम रहा
    दांव खोकर भी सभी तुम, खेल खेले जाओगे

    दीपक जी ... ये शेर खास लगा ... आज के सच को बोलता हुवा ...

    जवाब देंहटाएं

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