रविवार, 27 जून 2010

खुराफाती मीडिया----------------->>>दीपक 'मशाल'


मीडिया जिसका नाम है, वो है तो एक खुराफाती जीव ही.. चाहे वो भारत का हो या वहाँ से बाहर का. आज मैं बात करना चाहता हूँ यहाँ यू.के. की पत्रिकाओं के बारे में.. एक बात जो मुझे यहाँ की लगभग हर पत्रिका के साथ दिखी सो आप सबको भी बताना चाहता हूँ.. आप चाहे 'हैलो' पत्रिका उठा लें चाहे, 'लुक' या 'हाय', 'ओके', 'न्यू' या 'नाओ'.. सभी जगह जो भी आलेख होते हैं वो सिर्फ चंद बातों के आस-पास घूमते रहते हैं..
हरबार बातें वही ८-१० होती हैं हाँ जो बदल जाते हैं वो हैं सिर्फ सेलेब्रिटी चेहरे.. वैसे  वो लोग भी १०-१२ ही हैं जिनके बारे में बात होती है.. हर बार या तो गप्प वही रहती है इंसान बदल जाता है या फिर इंसान वही रहता है गप्प बदल जाती है.. बेचारे लोगों को यही पढ़ाते रहते हैं कि इस बार फलां-फलां ने पिछले साल से इतना-इतना वजन कम कर लिया.. इतना-इतना बढ़ा लिया.. उसका बॉयफ्रैंड छोड़ गया उसकी गर्लफ्रैंड छोड़ गई.. उसकी अंगुली में अब इंगेजमेंट रिंग नहीं.. उसकी में है.. आजकल वो सिर्फ कार्ब खा रहा/रही है.. वो सिर्फ पत्ते वाला भोजन ले रही है.. और वो प्रोटीन ज्यादा ले रहा है.. किसने वैसी ड्रेस पहनी जो महीने भर पहले किसी और ने पहनी थी और किसने सैंडिल... किसने बच्चे को गोद लिया किसने नया घर लिया, कौन अपने बोय्फ्रैंड/ गर्लफ्रैंड से झगड़ कर या तलाक लेकर नए घर में रहने चला गया.. कौन तन्हा रहना चाह रहा या रही है.. कौन माँ बनने वाली है, कौन बाप? कौन बन चुकी/चुका है किसका पेट कितना बड़ा है और गर्भवती सेलिब्रिटी कैसी लग रही है इन सब बातों का बाकायदा सचित्र वर्णन या तुलना होती है.. लगता है यहाँ तभी एम.डी.एच. का चंकी चाट मसाला या कोई चटपटा मसाला नहीं खाया जाता क्योंकि मीडिया महान खुद ही इतने चटपटे व्यंजन परोसता रहता है..
इस सबसे इतर वहाँ भारत में भी असंवेदनशील मीडिया का एक चेहरा देखने को मिल रहा है जहाँ एक मॉडल की मौत को कभी फ़िल्मी कहानी से जोड़ा जा रहा है तो कभी किसी और की मौत से..उसकी मौत का तमाशा बनाया जा रहा है.. इससे तो लगता है कि मीडिया परसन होने की पहली शर्त ही यही है कि दिल नाम के बकवास अंग को निकाल फेंको..
दीपक 'मशाल'

32 टिप्‍पणियां:

  1. More or less it is the same scenario here in India as well 'cos trends are set there followed here (by mindless middle classes )

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  2. बहोत ही अच्छा लिखा है आपने. शुभकामनाएँ
    भारत प्रश्न मंच पर आपका स्वागत है. mishrasarovar.blogspot.com

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  3. media ko dosh dene se kya fayda bhai saab ... khilanewala to wahi parosh raha hai jo khanewala khana chahta hai .... sach to ye hai ... ki sunne me bhale bura lage par .... aaj janta ki ruchi ek suwar ki ruchi se kuch jyada behatar nahi hai .... aap suwar ke saamne swaadist bhojan rakhiye chahe ________.

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  4. How boring..!
    कोई समाचार ही नहीं..!
    हमारे बनारस की मीडिया क्या मस्त खबर लाती है...
    बुजुर्ग को मार कर लाखों की चोरी....
    स्कूल गयी छात्रा लापता....
    दहेज हत्या के जुर्म में पूरा खानदान गया जेल के अंदर...
    जेल में मिले ऐशो आराम के सामान...
    फलां मोहल्ले में २ दिन से बिजली नहीं आ रही....
    पीने के पानी के लिए सर फोडऔव्वल...
    यहाँ तो हम चाय की प्याली के साथ रोंगटे खड़े कर देने वाले अमानवीय समाचार भी चटखारे ले कर पढ़ते हैं.
    ..आपको तो कोई समाचार ही नहीं मिलता पढ़ने के लिए..!
    How sad..!

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  5. दीपक मशाल याने दीप के समय दीप और क्रान्तिकारी मशाल। यह मशाल मीडिया के लिये। बहुत खूब।

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  6. बिल्कुल सही कहा……………सभी जगह एक ही हाल है।

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  7. dipak ji aapki mshaal ki roshni men mene hmaare kotaa or raajsthaan kaa midiyaa bhi dekhaa he yhaan tntr mntr se thgi krne or mrdaani taaqton ke prtibndhit vigyaapnon se yeh midiyaa bhraa pdaa he bs inki khuraafaat vigyaapn daataa ke liyen nhin hoti kyonki voh inke maayi baap hote hen. akhtar khan akela kota rajsthan mera hindi blog akhtarkhanakela.blogspot.com he

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  8. खबरों में रहने के लिये खबर गढना मजबूरी बन गया है

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  9. Dil bhi aur dimag bhi ...dono nadarat hon to wo safal(!!!) patrkaar ban jaye!

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  10. भारत का मीडिया भी उसी राह पर है… जल्दी ही वहाँ पहुँचेगा। :)

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  11. सही दुखी हो रहे हो बन्धु। मीडिया कहता है कि पब्लिक यही सब चाहती है, पब्लिक कहती है मीडिया यही सब परोसता है। हैं दोनों ’कॉम्प्लीमेन्ट्री एंड सपलीमेन्ट्री।’

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  12. मिडिया भी क्या करे ? सैकड़ों चैनल , २४ घंटे --कहाँ से लायें इतनी ख़बरें । घूम फिर कर वही दो चार ख़बरें रह जाती हैं दिखाने के लिए ।
    वैसे वहां से तो फिर भी बेहतर है । यहाँ किसी की निजी जिंदगी में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ली जाती ।

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  13. दीपक जी आपका अवलोकन शब्दशः सत्य है । समेटकर रख दिया है पत्रकारिता को कुछ ही विषयों में ।

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  14. पर मिडिया भी क्या करे दीपक...कोई धर्मार्थ या समाज सेवा के लिए तो पत्रिकाएं नहीं चलातीं....आजकल लोग भी ऐसी चटपटी ख़बरें पढना चाहते हैं...जिसे दो मिनट में पढ़ें और भूल जाएँ....कोई गंभीर लेख होता है तो उसे किनारे रख दिया जाता है...आराम से पढेंगे...और वो आराम कभी नहीं आता.
    यहाँ भी यही हाल है..पर हम तो उनका अन्धानुकरण ही करते हैं...:(
    हमें ही मोती चुनने होंगे....उन बेकार की ख़बरों के बीच.

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  15. पत्रिकाएं तो हमारे यहां भी सब ऎसे ही मसाले छापती है, लेकिन अब अखवार वाले भी इन से पीछे नही, हमारे यहां एक अखबार छपती है बिल्ड नाम से जिस का मतलब हिन्दी मै चित्र है, उस मै सिर्फ़ सिर्फ़ बकवास ही छपती है, ओर आप हेरान होगे वो सब से ज्यादा बिकती है, कोई कम्पनी आप से धोखा करे, आप उन्हे सबूत दे दे यह अखबार दो दिन मै ही उस कम्पनी को घुटनो पर ला देती है, किसी हिरोईन ने क्या किया, क्या पहना, किस के साथ गई इन को सब पता होता है ओर सारी अखबार ऎसी ही बेहुदा बातो से भरई होती है

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  16. अरे क्या किया जाये क्यों टेंशन लेते हो भारत से बुरा हाल तो कहीं नही होगा न। मगर हर कोई विवश है। आशीर्वाद।

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  17. मीडिया से इतनी नाराजगी दीपक जी...क्या बात है...?

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  18. पत्रकारिता कभी धर्म होती थी अब तो बिजनेस है ,कई समझौते होते हैं ।

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  19. @- पत्रकारिता कभी धर्म होती थी अब तो बिजनेस है ,कई समझौते होते हैं ।

    Sehmat hun

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  20. प्रिय दीपक
    सामान्यतः जीवन १०-२० बातों के ही इर्द गिर्द घूमता है :)
    मसला ये है कि वहाँ,पश्चिम में खाये पिये अघाये लोगों का समाज है इसलिए वहाँ के मीडिया ने उस हिसाब से अपनी प्राथमिकताये चुनी है यहाँ पूरब में भुखमरी है गरीबी है और ...और ...और बहुत कुछ ऐसा ही , तो यहाँ के मीडिया ने भी यहाँ के हिसाब से १०-२० बातें ही चुनी है बस ज़रा बेचैन आत्मा की टिप्पणी पर गौर किया जाए !
    सच कहूँ तो ये 'खुराफात' आसमान से नहीं उतरी बल्कि हमारी अपनी जाई है


    जाई = पैदा की हुई

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  21. ab media bhi kare............ek aam aadmi ko thora chatkaredaar khane ka saath thora chatkaredaar news padhne ki aadat ho gayee hai...:(

    waise ye sach hai, iss panchve stambh se aisee ummid nahi thi......

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  22. कल पाठशाला पिक्चर देखी ....अभी तक मीडिया की बातें दिमाग में घूम रही हैं....मीडिया जो ना कर दे कम है ...सार्थक पोस्ट

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  23. प्रिय भाई दीपक जहां जैसा बाजार होता है मीडिया उसका ध्यान रखता है।
    सारी व्यवस्था अब बाजार आधारित हो गई है।

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  24. एक बात बताओ ..या पढ़ना चाहते हैं लोग? हर जगह डिमांड और सप्लाई है तो बेचारा मिडिया क्या भूखा मरे ?

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  25. dear dipakji,

    aaj ki patrkarita main sab kuchh jayaj hai
    aaj yah kuchh bhi kar sakta hai chahe achha ho ya bura

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  26. बहुत अच्छा और विचारणीय लेख है.... पाने यहाँ की मिडिया तो और भी बुरी है.... यहाँ तो न्यूज़ का मतलब फ़िल्मी बातें ही ज़्यादा हैं....

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  27. is post ki sabse badi khasiyat iska akhir misra hai ..sahi kaha deepak bhai ....dil nam ka bakwas ang... kitna asamvednasheel ho jata hai aadmi ..

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  28. आपका मीडिया के प्रति का रोश बिलकुल जायज है!...


    दीपक जी!...गलतियों की ओर जरुर इंगित करें!... मेरी शिक्षा मराठी,गुजराती और इंग्लिश माध्यम से हुई है!...हिन्दी भाषा के प्रति मुझे सन्मान है और हिन्दी में लिखने का साहस जरुर मैने दिखाया है!.मेरा एक उपन्यास शिध्र ही प्रकाशित होने वाला है, जो हिन्दी में है!...लेकिन मैने हिन्दी माध्यम से कभी भी पढाई की नहीं है!

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  29. accha likha hai bhai..
    ab sab kuch paisa aur publicity ke ird-gied ghumta hai, media ne bhi vahi trend apna liya hai .

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  30. 'लगता है यहाँ तभी एम.डी.एच. का चंकी चाट मसाला या कोई चटपटा मसाला नहीं खाया जाता'
    &

    लगता है यहाँ तभी एम.डी.एच. का चंकी चाट मसाला या कोई चटपटा मसाला नहीं खाया जाता..

    Baree baat kah gaye- dheere se.

    Media ek business ban gaya hai... lekin agar hum naa padhen to wo shayad naa chapen?

    Likhte rahiye!

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  31. Side bar par Hindi mein comment karne ka widget rakhen to convenient rahega... aisa widget Chokher Baali blog par dekha hai. Best wishes!

    :)

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