शनिवार, 5 जून 2010

''चोर कहीं का..''(लघुकथा)----------------------------------->>> दीपक 'मशाल'

''कल तो किसी तरह बच गया लेकिन आज? आज कैसे बच पाऊँगा पिटाई से, जब घर पर पता चलेगा तो....'' ये सोच-सोच कर सिहरा जा रहा था वो. थोड़ी-थोड़ी देर बाद क्लास के बाहर टंगी घंटी को देखता जाता और फिर चपरासी को.. ठीक ऐसे जैसे जेठ की दोपहर में प्यास से व्याकुल कोई मेमना हाथ में पानी की बाल्टी लिए खड़े अपने मालिक को तके जा रहा हो कि कब वो बाल्टी करीब रखे और बेचारा जानवर अपनी प्यास बुझाये. उसका मन आज पढ़ाई में बिलकुल नहीं लग रहा था जबकि क्लास में वो हमेशा अब्बल रहने वालों में से था. कुछ देर बाद जैसे ही चपरासी मध्यावकाश(इंटरवल) की घंटी बजाने के लिए आता दिखा तो वो खुशी से लगभग चीख उठा, ''इंटरवल्ल्ल्ल ............''
''गौरव!!!!!!!!!!'' अंगरेजी वाले मास्टर जी ने डांट कर उसे चुप कराया. हाँ यही नाम था उसका.
उसे पहली बार पढ़ाई से ध्यान हटाकर इस तरह चिल्लाते देख मास्टर जी और उसके साथियों को तो अजीब लगा ही.. वो खुद भी अपने आप को ऐसे देखने लगा जैसे वो एलियन(बाहरी गृहवासी) में तब्दील हो गया हो. सब अपना-अपना टिफिन लेकर लंच के लिए चले गए.. मगर वो नहीं गया जबकि उसके सबसे ख़ास दोस्त ने उससे कितनी बार चलने के लिए कहा भी.
इंटरवल के बाद सब कुछ वैसा सा ही हुआ जैसे रोज चलता था.. वही मास्टर जी, वही क्लासवर्क, वही होमवर्क और अब वो भी सामान्य सा दिख रहा था रोज की तरह. पर आखिरी क्लास के बाद जब सारे बच्चे अपने-अपने जूते-मोज़े(जुराबें) पहिनने लगे तो उसका एक सहपाठी रोनी सूरत लिए हुए मास्टर जी के पास जाके बोला, ''मास्टर जी, एक हफ्ते पहले ही मेरे पापा ने नए मोज़े दिलवाए थे और मैं आज पहली बार वो पहिन कर आया था लेकिन अभी वो मेरे जूतों में नहीं हैं..''
मास्टर जी ने समझाया, ''नहीं अंकित यहाँ कोई ऐसा काम नहीं कर सकता.. जरा सीट के नीचे देखो शायद किसी के पैर से छिटक कर दूर गिर गए हों..''
''नहीं सर मैंने देख लिया सब जगह'' अंकित ने रोआँसे होते हुए कहा..
''मगर स्कूल ड्रेस के सभी मोज़े एक जैसे होते हैं.. अगर किसी ने लिए होंगे तो तुम पहिचानोगे भी कैसे? क्या कोई निशान लगाया हुआ था उनपर?'' मास्टर जी ने सवाल किया.
''हाँ सर, मैंने सुबह जल्दबाजी में उसपर लगा लेबल नहीं हटाया और उस पर सर्टेक्स लिखा हुआ है..''
''हम्म.. देखो मैं सबसे कह रहा हूँ जिसने भी अंकित के मोज़े लिए हों वो चुपचाप आके यहाँ वापस करदे, मैं उसे कुछ नहीं कहूँगा..'' पर किसी ने भी मास्टर जी की बात का कोई जवाब नहीं दिया..
''ठीक है फिर.. सब लोग एक-एक कर आगे आयें और अपने मोज़े अंकित को दिखाएँ.. जिससे कि वो अपने मोज़े पहिचान सके.'' मास्टर जी ने तमतमाते चेहरे से सबको आदेश दिया.
मगर किसी के मोज़े दिखाने से पहले ही गौरव के सबसे खास दोस्त ने खड़े होकर बताया, ''ये चोरी गौरव ने की है..''
अब सबकी नज़र गौरव की ओर थी जो ये सुनते ही राम बिलईया(एक बरसाती कीड़ा) की तरह अपने आप में दुबक सा गया.
काफी जोर देने पर भी जब वो उन सर्टेक्स के लेबल वाले मोजों के उसके खुद के होने का दावा करता रहा तो गौरव ने फिर कहा, '' 'विद्या कसम' खा के बोलो कि तुमने थोड़ी देर पहले मुझसे ये नहीं कहा था कि 'कल किसी ने मेरे नए मोज़े चुरा लिए थे और मैंने किसी तरह ये बात घर पर छुपा ली क्योंकि बताता तो मार खाता और मेरे पापा के पास इतने पैसे भी नहीं कि मुझे इतनी जल्दी फिर से नए मोज़े दिला सकें.. इसलिए आज मैंने अंकित के मोज़े, जो बिलकुल वैसे ही हैं जैसे मेरे थे, उठा लिए'..'' 
बाकी सब गौरव की चुप्पी ने कह दिया..
''चोर कहीं का..'' मास्टर साहब तो बिना उसे पीटे इतना कह कर चले गए..
लेकिन आज भी उसके स्कूल के 'साथी' उसे यही कह कर बुलाते हैं......  ''चोर कहीं का..''
दीपक 'मशाल'
चित्र गूगल से साभार 

31 टिप्‍पणियां:

  1. ये कहानी...दो पक्षों पर प्रकाश डालती है एक तो बाल सुलभ मन नई चीज़ों को देखकर लालायित होता है.....पर कई बार मजबूरी या मार का डर भी उस से चोरी करवा लेता है...और बच्चे चीज़ों को एक आवरण में कहना नहीं जानते सीधे -सीधे कह डालते हैं,इसलिए चोर का लेबल लगा दिया उस पर...
    हमेशा की तरह बहुत ही संवेदनशील कथ्य..

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  2. बच्चो को घर मै इतना भी डराना नही चाहिये नुकसान होने पर, बल्कि उन्हे समझाना चाहिये जो हुआ सो हुआ आंईदा ध्यान रखो कि ऎसा ना हो

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  3. बद अच्छा बदनाम बुरा, इसीलिये तो कहा गया है !

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  4. bahut hi marmik............kabhi kabhi na chahte huye bhi kuch aisa zindagi mein ghat jata hai ki usse sari zindagi peecha chudwana kathin ho jata hai..

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  5. भाई ये तो कन्फ्यूजन रह गया । चोर कौन ?
    वैसे चोरी के लिए कोई वज़ह मांफ नहीं होती।

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  6. gaurav ne moze churaaye, beshak majboori mein, daant ya maar ya fir ghar mein arthabhav ki vajah se..chori to chori hai...iske liye koi sahanubhooti nahi honi chahiye...
    is baar tumhaari kahani mujhe utni acchi nahi lagi jitni hamesha lagti hai...
    shayad sandesh paksh majboot nahi ban paaya...
    ...didi

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  7. विचारणीय प्रेरक प्रस्तुती |

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  8. मौजे गौरव ने चुराए ..यदि पहले दीं उसके मौजे चोरी हुए तब उसने शिकायत क्यों नहीं की ? इतना डरा हुआ क्यों था? कहानी अच्छी है ..सन्देश देती हुई कि बद अच्छा बदनाम बुरा

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  9. bachche nahin jante ki vah kya kar rahe hain
    sab kuchh anjaane main ho jaata hai
    aur ek dar unke man main humesha rahta hai

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  10. Ek ghatna yaad aayi. Ek school me ek 8ya 9 saal ki ladki ko teacher ne kewal isliye sab ke saamne chor kaha aur kamre me band kiya,chunki usne mez par se chalk uthaya tha!Aur use yahi label lag gaya...chor!

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  11. लेखन की यही कमियाँ हैं जिन्हें दूर करने के लिए मैं आप सबके सामने अपनी अधपकी लघुकथ/कविता/व्यंग्य वगैरह रखता हूँ.. और अपने आपको खुशनसीब भी मानता हूँ कि आप लोग सिर्फ वाह-वाह ना करके मुझे वो कमियाँ भी बता रहे हैं जिन्हें दूर कर मैं बेहतर करने की दिशा में बढ़ सकता हूँ.. आज के लघुकथा में आप सभी की टिप्पणियों से स्पष्ट हो रहा है कि मैं इस लघुकथा के सन्देश को साफ़ नहीं कर पाया.. इसलिए अब टिप्पणी के माध्यम से बताना चाह रहा हूँ कि यह लघुकथा सोचते हुए मेरे मन में क्या था जो मैं सन्देश में ढालना चाह रहा था..
    आदरणीय दराल सर ने इशारा भी किया कि 'चोर कौन?' पर यहाँ मैंने यही गलती की कि लघुकथा की बजाय कहानी के अंत की तरह यह सवाल पाठक के खुद के सोचने के लिए अनुत्तरित छोड़ दिया..
    मैं चाहता था कि लोग सोचें कि दोनों ही परिस्थितियाँ संभव थीं.. शायद गौरव का कहना सच हो, पर यहीं जो गलती हुई वो आदरणीया संगीता मैम ने बताई कि गौरव ने ही जुराबें चुराई हैं क्योंकि उसने मास्टर साब से उस वक़्त शिकायत नहीं की थी, जब उसकी जुराबें चोरी हुई थीं... निश्चित ही इस लघुकथा का सन्देश अस्पष्ट या कुछ भटका हुआ सा लग रहा है और इसके लिए मैं माफी भी मांगता हूँ..
    पर मैं इस सब को उन घटनाओं से जोड़ कर दिखाना चाहता था जिनके बारे में मीडिया की गढ़ी कहानियां या कल्पनाओं को सुनते ही हम निर्णय कर बैठते हैं कि कौन सही है और कौन गलत.. जबकि हमारी ये सोच कभी-कभी निर्दोष को सजा दे देती है और उसे एक ऐसे अपराध का दंड आजीवन भुगतना होता है जो काफी कम था या था ही नहीं..
    अदा दी ने जिस तरह से बेहिचक इस लघुकथा के पसंद ना आने की बात की उससे मुझे इतना अच्छा लगा कि कह नहीं सकता.. क्योंकि ये अहसास होने लगा था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि ब्लॉगजगत में मैं लोगों से कुछ ज्यादा जुड़ गया हूँ इसलिए वो मेरी गलतियों को नज़रंदाज़ कर जाते हैं.. :)
    आप सभी को एक बार फिर शुक्रिया कहना चाहूँगा और आगे भी इसी तरह मुझे सुधार के लिए प्रोत्साहित करते रहने के लिए निवेदन करना चाहूंगा..

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  12. अच्छी लगी रचना.
    बेशक कुछ तथ्यात्मक विसंगतियाँ हैं पर भावना और मार्मिकता कूट कूट कर भरी हुई हैं.

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  13. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 06.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  14. दीपक भाई..
    आपकी टिप्पणी शानदार है.

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  15. गौरव चोर नहीं है
    कई बार हालात आदमी को चोर बना देते हैं
    गौरव ने अपने माता-पिता की गरीबी को ध्यान में रखकर यह मोजा चुराने का कृत्य किया
    मुझे लगता है आपकी लघुकथा कम्पलीट है। मैं यह नहीं समझा सकता कि हम इसे और कैसे बेहतर बना सकते हैं लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि दुनिया में ऐसा कोई आदमी नहीं है जिसने चोरी नहीं की.. प्यार नहीं किया... झूठ नहीं बोला
    गौरव का कृत्य यह बताता है कि वह अपने मां-बार की गरीबी का कितना ध्यान रखता है। उसने अपने मोजे के बदले एक दूसरा मोजा उठाया।
    मैं ऊपर मौजूद कुछ पाठकों से यह भी जानना चाहूंगा कि जिस किसी ने गौरव का मौजा गायब किया था क्या वह चोर नहीं था।
    उसे किस हालात ने चोर बनाया।
    यदि पहला बच्चा जिसने गौरव का मोजा गायब किया वह चोर है तो फिर गौरव भी चोर है लेकिन यदि आप गौरव के मोजे को गायब करने वाले बच्चे को छोड़ देते हैं तो फिर आपको गौरव को भी छोड़ना होगा।
    मास्टरजी ने गौरव को तो चोर कह दिया लेकिन क्या यह जानने की कोशिश कि उनकी क्लास के एक बच्चे को यह हरकत क्यों करनी पड़ी।
    मास्टरजी क्या केवल किताब की बातें ही पढ़ाते हैं।
    क्या एक बच्चे में वे इतनी ताकत नहीं पैदा कर सकते हैं कि वह अपनी गरीबी का मुकाबला अपनी भीतरी ताकत के साथ कर सकें।
    मैं तो उस मास्टर को खारिज को करता हूं और गौरव को पास करता हूं।
    शानदार लघुकथा मुझे सही ढंग से समझ में आई है।

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  16. प्रभावित किया भीतर तक इस कहानी ने...........

    बढ़िया !

    बहुत बढ़िया !!

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  17. भइया आपकी कहानी प्रभावित करती है, ठीक उसी तरह जिस प्रकार गौरव प्रभावित हुआ है, कहानी का मर्म समझाने मे आप सफल है।

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  18. laghu katha kuch aspasht si hai karan "gorav ne kaha ki jagah..."gorav ke dost ne kaha hona chahiye to bat spsht ho jayegi .
    pavitra agarwal

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  19. bahut achhi rachna hai deepak bhai ....bas ek bat kahunga ..seed in seed ourt ke taur par .."label " achha use hua hai .. pahle mojon ka lable ..baad me gaurav pe laga " chor kaheen ka " ka lable ... mere hisaab se is kahani ka nam hi .. "lable" hona chahiye..

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  20. एक ने स्वयं को व्यक्त किया और दूसरे ने नहीं ।

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  21. कहानी के तत्वों के आधार पर इसको मनोवैज्ञानिक कहानी कह सकते हैं...............अध्यापक के शब्दों ने एक मासूम को चोर बना दिया....हम अपराधी इसी तरह ही तो बनाते हैं....
    लघुकथा अच्छी है...........गद्य में भी अच्छी पकड़ बनती दिख रही है.....हिन्दी साहित्य का भविष्य उज्ज्वल है.....अब हिन्दी साहित्य का क्षेत्र कुछ मठाधीशों की पकड़ से बाहर आता नज़र आता है.
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  22. Bahut sahajtapurvak manobhavon ka sundar chitran kiya hai aapne laghu katha ke madhayama se..
    Bahut shubhkamnayne........

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