गुरुवार, 27 मई 2010

बड़ा आदमी(लघुकथा)----------------------------------->>>दीपक 'मशाल'


मुजीब ढाबे से चाय पीने के बाद लौट कर अपने ट्रक पर आया, गाना चालू किया और एक बार फिर ट्रक को पुणे की तरफ दौड़ा दिया.. थोड़ी देर बाद जैसे ही दो गानों के बीच गैप आता, उसे ऐसा लगता कि ट्रक में कोई दूसरा भी है उसने इधर-उधर देखा तो कोई दिखाई ना दिया. अपने मन का वहम समझ वह आगे बढ़ता गया, अब यहाँ अकेले में पूछता भी तो किससे? अरे हाँ अकेले इसलिए कि पिछले हफ्ते ही उसका क्लींज़र हैजे की चपेट में आ दुनिया छोड़ गया था और अभी तक उसे कोई नया क्लींज़र नहीं मिला था. पर माल की डिलीवरी टाइम से देनी थी इसलिए उसे अकेले आना ही पड़ा.
लेकिन जब कई बार उसे ऐसा लगा कि कोई ट्रक में है जो सिसक रहा है तो जाने क्या सोच वो पसीना-पसीना हो गया. पर फिर भी हिम्मत कर उसने ट्रक सड़क से एक साइड में लगाया और अन्दर अच्छे से चेक करने लगा.
वो गलत नहीं था असल में उसकी ड्राइविंग सीट के पीछे एक १४-१५ साल का लड़का एकदम कोने में दुबका सिसक रहा था.
पहले तो काफी देर तक पूछताछ करने पर कुछ नहीं बोला पर जब-
''बताता है अपना नाम और पता या लेके चलूँ तुझे पुलिस थाने में?'' उसने सख्ती से पूछा
फटेहाल सा वो लड़का अचानक बहुत जोरों से रोने लगा, ''मुझे थाने मत ले जाइए मैं सब बता दूंगा.. लेकिन आप किसी से कहना नहीं. वर्ना वो मुझे फिर पकड़ ले जायेंगे और पीटेंगे.''
मुजीब को उसकी हालात पर कुछ तरस आया,
''ठीक है नहीं ले चलूँगा लेकिन कौन पकड़ कर ले जायेंगे? कोई चोर-वोर तो नहीं? तू किस मकसद से मेरे ट्रक में चढ़ा? या कहीं से भाग कर आया है?' उसने ताबड़तोड़ सवाल कर दिए '
''हाँ साब, मेरा मालिक मेरे गाँव से बापू से ये कह कर अपने साथ ले आया था कि मुझे नौकरी पर रखेगा, अच्छी तनख्वाह देगा और पढ़ायेगा भी.. लेकिन...'' कहकर लड़का फिर सिसकने लगा
''लेकिन क्या...''
''बापू ने कहा था कि वो बड़ा आदमी है मेरी जिन्दगी सुधार देगा लेकिन वो यहाँ लाकर मुझसे दिन-रात सिर्फ काम कराता है, खाना भी ढंग से नहीं देता और कुछ कहने पर लात-घूंसों से पीटता है.. मैंने भाग कर शहर में लोगों से उसकी शिकायत करने की कोशिश की पर वो एक इंजीनियर है और उसको सब जानते हैं तो किसी ने मेरी बात नहीं सुनी और मुझे फिर से उसी के पास पहुंचा दिया''
लड़का अब कुछ निर्भीक सा होकर बोलता जा रहा था, ''घर पहुँच कर उस रात मेरी डंडे से बुरी तरह से पिटाई की गई, पीठ पर निशान पड़ गए और अभी भी नील पड़े हैं..''
कहते हुए वो मुजीब की तरफ पीठ कर अपनी कमीज़ ऊपर उठा निशाँ दिखाने लगा.
मुजीब से सहानुभूति और पुलिस को ना सौंपने का आश्वासन पा लड़का कुछ और सहज हो चला था. अगले ढाबे पर चाय पिलाते हुए उसने लड़के से पूछा-
''नाम क्या है तुम्हारा?''
''नाम राजेन्द्र है.. पर सब राजू-राजू कहते हैं'' जवाब मिला
''राजू-राजू या राजू'' उसने मसखरी की
चाय के गिलास में जल्दी-जल्दी डबलरोटी डुबो कर खा रहे सुबह से भूखे राजू के होठों पर मुस्कान तैर गई और उसने हँसते हुए कहा, '' राजू.. इसी रास्ते पर सौ किलो मीटर आगे मेरा गाँव है 'पनरिया' ''
मुजीब ने उसे समझाया, ''हम्म... देखो बेटा मैं कोई बड़ा आदमी तो हूँ नहीं जो तुम्हें नौकरी पर रख सकूं या पढ़ा सकूं लेकिन हाँ मैं तुम्हें तुम्हारे गाँव छोड़ दूंगा, तुम्हारे बापू के पास... ठीक है?''
राजू चुपचाप सिर नीचे किये चाय के गिलास को तके जा रहा था और बड़े आदमी का मतलब समझने की कोशिश कर रहा था.
दीपक 'मशाल'
चित्र साभार गूगल से  

42 टिप्‍पणियां:

  1. बालश्रम पर ...अच्छा लेखन

    जवाब देंहटाएं
  2. बच्चों की और खासकर गरीब लोगों के बच्चों की दर्दनाक दासतान / इस स्थिति को सिर्फ और सिर्फ अब भगवान ही बदल सकतें हैं ,क्योकि इंसानियत और ईमानदारी कहीं भी नहीं बची है /

    जवाब देंहटाएं
  3. bahut sunder laghukatha.....insaan itna kathor kaise aur kyo hota jaraha hai?
    aaj ke sandarbh me bade aadmee kee paribhasha sabkee apanee apanee soch ke anusar hee hai .theek vaise hee jaise mera manna hai jo apanapan de vo hee apna hai.........
    mastishk ko jhakjhorne walee laghukatha ......

    जवाब देंहटाएं
  4. आपके लघुकथाओं में समाज की विसंगतियों को बहुत सुन्दर तरीके से उभारा जाता है ... कहानी सुन्दर और मार्मिक है ...
    तथाकथित पढेलिखे लोगों में ही जानवर छुपे होते हैं ..

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छी रचना। कौन होता है बड़ा आदमी। बड़ा आदमी वह भी होता है जो धर्मशाला की ब्लागर मीट में जाने पर अपने आपको छोटा नहीं समझता।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया..एक प्रश्न उठाती...कौन है बड़ा आदमी..मुजीब या वो इन्जिनियर, जिसे सब जानते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  7. हमेशा कि तरह संवेदनशील लघु कथा

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर कहानी, सच बडा आदमी वो जो...(जाट धर्मशाला मै आने से अपनी बेज्जती समझे, गवांर ओर अनपढ लोगो को जानवर समझे.)या वो जो किसी के आंसू पोछें जेसे मुजीब
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर, हमेशा कि तरह संवेदनशील !

    जवाब देंहटाएं
  10. एक संक्षिप्त और भावपूर्ण कहानी..दीपक जी ऐसे बहुत से राजू है, बड़े और छोटे आदमी के बीच के गैप को समझने की कोशिश कर रहे है....संवेदनशील और सामयिक रचना के लिए हार्दिक बधाई ...

    जवाब देंहटाएं
  11. बड़े आदमियों का छोटापन और छोटे आदमियों का बड़प्पन अक्सर देखने को मिलती है.
    बहुत सुन्दर लघुकथा.. झकझोरती सी

    जवाब देंहटाएं
  12. दीपक, इतनी सुन्दर लघुकथा लिखने पर बधाई।

    खूब बड़े बनो :)

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत मार्मिक कथा...बड़े आदमी का छोटापन दिखाती.....आज कल बच्चों को ला कर कमाई का धंधा बना लिया है लोगों ने....आज के ही समाचार पत्र में पढ़ा था ....

    जवाब देंहटाएं
  14. ...बेहतरीन ... अदभुत अभिव्यक्ति !!!

    जवाब देंहटाएं
  15. लाघुकताहों की सिरीज़ में यह लघुकतहा..... बहुत संवेदनशील लगी.....

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत ही संवेदनशील कथा लिख डाली और बड़े आदमी की परिभाषा भी अच्छी तरह समझा दी...हमेशा की तरह सुन्दर कहानी

    जवाब देंहटाएं
  17. अच्छी कहानी है। ऐसी कहानी लिखनेवाला भी बड़ा आदमी है मेरी नज़र में। बहुत दिनों बाद कोई कहानी पढ़ने का मौक़ा लगा। बहुत अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  18. हमेशा की तरह सोचने पर मजबूर करती एक और शानदार कथा !!
    बेहद उम्दा ..............लगे रहो भाई !!

    जवाब देंहटाएं
  19. bahut achhci laghu katha...so called bade logo ke chote charitar ko darshati atyant marmik kahani...

    जवाब देंहटाएं
  20. मन को छूती लघुकथा!

    सदियों से धनी और कृत्रिम मान सम्मान वाले व्यक्तियों को बड़ा आदमी समझे जाते रहे हैं और आगे भी समझे जाते रहेंगे किन्तु जिनमें वास्तव में बड़प्पन हो वही बड़े आदमी होते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  21. कहानी सुन्दर और मार्मिक है ...

    जवाब देंहटाएं
  22. nahi deepak bhai ..pichli kahaniyon jitna maza nahi aaya...han achhi zaroor hai ..samvedna tak pahunchti hai ... :)

    जवाब देंहटाएं
  23. ....ओह ....चलिए अंत भला तो सब भला !

    जवाब देंहटाएं
  24. समयाभाव के कारण आपकी इस कहानी पर आकर फिर लौट जा रहा था , अब फुर्सत से पढी, बढ़िया है और सिस्टम पर चोट करती है !

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत ही अच्छी लघुकथा है दीपक । सामाजिक स्थितियों और कुरीतियों पर चोट करती कथाएं कविताएं अक्सर ज्यादा प्रभावित करती हैं मुझे । जारी रखो

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत अच्छा लिखा है, इस कहानी को आगे पढ़ने की इच्छा हो गयी है :)

    जवाब देंहटाएं
  27. तारीफ के लिये शब्द नही है बस निशब्द हूं। जून 2 को वापिस भारत जा रही हूँ । कुछ दिन दिल्ली मे रह कर नण्गल जाऊँगी। वहाँ जा कर फोन करूँगी। आशीर्वाद्

    जवाब देंहटाएं
  28. प्रिय स्वप्निल भाई, बहुत अच्छा लगा कि आपने सच कहा.. वैसे पोस्ट लगाते वक़्त मुझे भी ये कमी महसूस हो रही थी.. पर जल्दबाजी में लगाने के मोह को ना त्याग पाया. आगे से पूरी कोशिश करूंगा कि उम्मीद पर खरा उतरूँ... बस ऐसे ही सच्ची टिप्पणी कर मार्गदर्शन करते रहें...

    जवाब देंहटाएं
  29. आज के बडे आदमी पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाती यह कथा बेहतरीन लगी, धन्यवाद

    प्रणाम स्वीकार करें

    जवाब देंहटाएं
  30. waah Dipak sirji...ek mahatvpurna vishay par roshni daalti laghukatha...sahi kaha bada aadmi kya hota hai ham chote dil waale kya jaane...

    जवाब देंहटाएं
  31. कलम दिन पे दिन सुन्दर होती जा रही है

    जवाब देंहटाएं
  32. सार्थक प्रश्न उताती आपके लघु कथा ... हमारे समाज में आज भी ऐसी बुराइयाँ मौजूद हैं .....

    जवाब देंहटाएं

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...