आज देश भर में अन्ना की, दूसरी आज़ादी पाने की लहर चल रही है. हम सब जोश में हैं और होना भी चाहिए, मगर फिर भी कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें दिमाग में आने से खुद को नहीं रोक पा रहा. इस लड़ाई के साथ-साथ हमें खुद से भी कुछ सवाल पूछने की आवश्यकता जान पड़ती है, कुछ विचारणीय बिंदु हैं जैसे कि-
हम में से कितने हैं जिन्होंने कभी अपनी सुविधाओं के लिए इस शासन को भ्रष्ट बनाने में सहयोग नहीं दिया? क्या हमने कभी बेटिकट यात्रा नहीं की या टी.सी. को कुछ पैसे थमाकर अपने लिए सीट की व्यवस्था नहीं की? क्या समय बचाने हेतु किसी प्रसिद्द मंदिर में लगी लम्बी लाइन को धता बताने के लिए सिक्कों की खनक का उपयोग नहीं किया? या फिर कभी कोई कर बचाने की कोशिश नहीं की?
मैंने खुद अँगुलियों पर गिनी जा सकने वाली अपनी रेलयात्राओं में से कुछेक बार नींद पूरी करने के लिए सहर्ष सुविधा शुल्क दिया है.
जब तक हम अपने पिछले किये गए इन कार्यों को स्वीकार कर उनके लिए प्रायश्चित करके आगे कभी इस तरह के आचरण को दोहराने की शपथ नहीं लेते, तब तक न तो हम भ्रष्टाचारहीन समाज, देश मांगने के हक़दार हैं और न ऐसे देश में जीने के.
देखने वाली बात ये है की इस आन्दोलन में सबसे ज्यादा शोर करने वालों में वो भी शामिल हैं जो कई सालों से लोगों का शोषण करते आ रहे हैं और भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा हैं. कुछ लोगों ने कहा की 'संभवतः उन्हें अब अपनी करनी पर अफ़सोस हो', मगर यह अफ़सोस कम और अपने आपको आने वाले नए तंत्र में सुरक्षित करने का उपाय कहीं अधिक दीखता है. ऐसे लोगों में चपरासी, बिचौलियों और क्लर्कों से लेकर छोटे-बड़े ठेकेदार, वकील, जज एवं पत्रकार तक शामिल हैं.
देखकर बड़ा अचम्भा सा होता है की चंद दिनों में ही देश के जमाखोर, मिलावटखोर, मुनाफाखोर और कालाबाजारी के महारथी भी भ्रष्टाचारविहीन समाज की वकालत कैसे करने लगे. जिसके हाथ में एक छोटा सा भी अधिकार है वह भ्रष्ट हो चुका है, राशन, वजीफा बांटने वाले से लेकर विकास बांटने वाले तक.
क्या इस लेख के लेखक या पाठक ही दूध के धुले हुए हैं?
मेरा मानना है इन हालात के लिए हम स्वयं भी दोषी हैं इसलिए संघर्ष सिर्फ नेताओं और अफसरों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए बल्कि हर महकमे के छोटे से बड़े अफसर तक यह नियम लागू हों. आज चाहे शिक्षा विभाग हो, पुलिस, रेलवे, बैंक या कोई और हर जगह आराम तलबी के चलते लगभग ना के बराबर कर्मचारी या अधिकारी अपनी जिम्मेवारियों को बखूबी निभाते हैं. अधिकाँश लोग संविधान, नियम-क़ानून की धज्जियां उड़ाते मिलते हैं और यह सब भ्रष्ट आचरण के अंतर्गत ही आता है. सिर्फ अधिकारी कर्मचारी ही क्यों दुकानदार, किसान, डॉक्टर, इंजीनियर हो या निठल्ले लोग सभी तो अपनी मनमानी में लगे हुए हैं. जब तक हम सभी स्वयं को इस देश के भ्रष्टाचारविहीन होने की दिशा में इकाई की तरह नहीं मानते और नियम-क़ानून का अनुपालन नहीं करते तब तक जो सपना हम देख रहे हैं वह अधूरा ही है.
एक डर ये भी है की पूर्व में अपहृत हो चुके आन्दोलनों की तरह इस आन्दोलन को भी कोई हाइजैक न कर ले, कहीं इस आन्दोलन से जुड़े बड़े नेताओं की मेहनत को नज़रंदाज़ कर कोई बड़ा नाम सिर्फ मलाई खाने के लिए आन्दोलन को बड़ा रूप देने का बहाना कर, जिम्मेदारी उठाने का दिखावा कर हमें वापस उसी जगह लाकर न खड़ा कर दे जहाँ से हम चलना शुरू कर रहे हैं. क्योंकि कई दूरदर्शी जो इस आन्दोलन में नए भारत का निर्माण देखने के साथ-२ अच्छा मौका तलाश रहे होंगे नया हिटलर बनने का...
यह आन्दोलन जो शुरू हुआ है तो अब पूर्ण सफाई के बाद ही समाप्त हो. लेकिन साथ ही अगर हम खुद अपने आप को इन बुराइयों से बाहर निकाल सकें तब ही अन्ना के साथ रहने का हक रखते हैं.
हाल कहीं वैसा ही ना हो जैसा कि श्री गणेश रायबोले जी की एक कविता कहती है.
सत्ता राक्षस
हिटलर को मारता हिटलर
लोग खुश हो जाते हैं
चलो मरा हिटलर
हिटलर हँसता है
अभी का नहीं
हजारों बरस का यह सिलसिला है.
एक और बात.. कहीं न कहीं लगता है की अभी भी ये एक बिखरा हुआ आन्दोलन ही है. हालांकि सब साथ दे रहे हैं मगर फिर भी अभी भी एक समुचित रणनीति की आवश्यकता है. बड़ी आज़ादी पाने के लिए बड़े संगठन की आवश्यकता है. हमें आगे बढ़ने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा. आप क्या कहते हैं? मैं तो बस इतना कहता हूँ कि-
चल पड़ी है बात
चल पड़ी है बात
तो बस शाम तक ही ना चले
अब हमारी जंग
अधूरे काम तक ही ना चले
विकास की पुरवाई गर
अब हमारी जंग
अधूरे काम तक ही ना चले
विकास की पुरवाई गर
इस बार जो आये यहाँ
ध्यान रखना वो महज़
कुछ ग्राम तक ही ना चले
हर एक मस्जिद में चले
चल पड़े इक-इक गुरुद्वारे में
ये बात
सिर्फ चारों धाम तक ही ना चले
मैं इतनी दूर बैठा हूँ
हूँ मगर फिर भी वहीं
पीने वालों बात सच्ची
बस जाम तक ही ना चले
ध्यान रखना वो महज़
कुछ ग्राम तक ही ना चले
हर एक मस्जिद में चले
चल पड़े इक-इक गुरुद्वारे में
ये बात
सिर्फ चारों धाम तक ही ना चले
मैं इतनी दूर बैठा हूँ
हूँ मगर फिर भी वहीं
पीने वालों बात सच्ची
बस जाम तक ही ना चले
हर आम का है हक अगर
हर आम को मिल जाए वो
रेवड़ी बनकर ये केवल
कुछ आम तक ही ना चले
हर उम्र लांघे अगर
दहलीज देश के लिए
तो नया क़ानून
कुछ के काम तक ही ना चले
निशान भी छोड़े जो ये
तब तो कोई बात हो
जो चल रहा है वो अकेले
नाम तक ही ना चले.
तब तो कोई बात हो
जो चल रहा है वो अकेले
नाम तक ही ना चले.
दीपक मशाल
कहीं ना कहीं आज हर आदमी भ्रष्ट सिस्टम के लिये जिम्मेदार है। जरुरत है खुद के अन्दर भी ईमानदारी पैदा करने की।
जवाब देंहटाएंगधे की खाल में बहुत से गीदड जरुर अन्ना के आसपास मंडराने लगे होंगें।
अन्ना कोई राजनेता नहीं हैं और राजनीतिज्ञ कैसे कानूनों के साथ खेल जाते हैं यह हर कोई जानता है।
पूर्ण सफाई के लिये सबको एक साथ आना ही होगा।
प्रणाम स्वीकार करें
is aandolan par bhi raajneeti havi hone lagegi,
जवाब देंहटाएंbas intjaar kijiye
सही सवालिया निशान लगाये हैं । मेरे विचार से १० % लोग भी ऐसे नहीं हैं जो अवसर मिलने पर रिश्वत न लेते हों ।
जवाब देंहटाएंलेकिन कहीं से तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी ।
पर हमें साथ रहना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंशुरुआत करनी ही पड़ेगी ।
जवाब देंहटाएंपुराने पेड़ को सीधा करना बहुत मुश्किल जरुर है लेकिन उसका भी हल मुमकिन है. बस जब एक महा क्रांति का बिगुल बज ही गया है तो अब तो यही आरजू है ये कारवां बढ़ता ही चला जाए और यह अभियान एक जनक्रांति बन भ्रस्टाचार को ख़त्म कर ही दम लें .
जवाब देंहटाएंएकदम वाजिब आशंकायें।
जवाब देंहटाएंसुना है आप शराब खूब पीते हैं, दीपक जी?
जवाब देंहटाएंहाँ सलीम भाई, आपने ठीक सुना है. महीने में १-२ बार पी ही लेता हूँ. :)
जवाब देंहटाएंAapke harek shabd se sahmat hun.....ham apnee suvidhake liye apne tatvon se samjhauta karhee lete hain! Phirbhee aasha kee ek kiran jhilmila rahee hai....dekhen aage kya hota hai?
जवाब देंहटाएं"यह आन्दोलन जो शुरू हुआ है तो अब पूर्ण सफाई के बाद ही समाप्त हो."---यहीं आशा की एक किरण दिखाई देती है..हम अपने से ही शुरूआत तो करें............
जवाब देंहटाएंबधाई हो बधाई....... |
जवाब देंहटाएंआज भारत माता की जीत हुई है | आख़िरकार माँ की लाज बचाने के लिए हर भारतीय एक साथ आवाज लगाये |
इस आवाज को अभी रोकना नही है |
जय हिंद.... |
यहाँ भी आयें|
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भ्रस्टाचार के खिलाफ महायुद्ध .... - आकाश सिंह
हम स्वयं सुई से घायल होते और करते रहते हैं इसलिये तलवारों से असंख्य जनसमुदाय का निरन्तर गला काटते रहने की छूट क्या इस राजतंत्र में बैठे बडे-बडे भ्रष्टाचारियों को निरन्तर लेते हमें देखते रहना चाहिये ?
जवाब देंहटाएंdepak bhai !
जवाब देंहटाएंsatya mev jayte !
jai ho !
दिल से जो बात निकलती है, असर रखती है।
जवाब देंहटाएं---------
प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्यादा खतरनाक है ?
चल पड़ी है बात
जवाब देंहटाएंतो बस शाम तक ही ना चले
अब हमारी जंग
अधूरे काम तक ही ना चले
विकास की पुरवाई गर
इस बार जो आये यहाँ
ध्यान रखना वो महज़
कुछ ग्राम तक ही ना चले
ye baate bahut pasand aai ,badhiya .
behatreen lekh....
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