आज मकर-संक्राति के अगले दिन मिट्टी के घोड़ों(खिलौने) की होने वाली पूजा(भंवरांत) के समय उन घोड़ों की पीठ पर लड्डू और मठरी-खुरमों से भर कर लादे गए कपड़े के झोलों(जिन्हें आंचलिक भाषा में गोंदें कहते हैं), को खोलने का दिन है. वो दिन जिसका बचपन में बेसब्री से इंतज़ार रहता था.. खासकर तब जबकि घर में संक्रांति पर बनी बाकी सब नमकीन और मिठाइयां ख़त्म हो चुकी होती थीं.
हाँ आज वसंत है.. सखी वसंत आया है.. हाँ वही वसंत जिसके लिए महाप्राण निराला ने लिखा था 'वन वन उपवन उपवन जागी छवि खुले प्राण'. यूँ तो ये सारा मौसम ही वसंत है लेकिन आज का दिन और भी खुशकिस्मत हो जाता है क्योंकि आज पंचमी है, वसंत पंचमी और मान्यताओं के अनुसार आज का ये दिन ही विद्या की देवी माँ शारदे के प्रादुर्भाव का साक्षी है. आज के दिन सूरज लाल नहीं वसंती उगता है और वसंती ही अस्त होता है, आज धरती-आसमान, हवा, वस्त्र, भोजन सब इसी वसंती रंग में रंगे नज़र आते हैं.
मुझे याद है कुछ साल पहले आज ही के दिन भोर से ही जब हम दोनों भाई बहनों का कोमल बाल-मन देवी सरस्वती के प्रति श्रद्धा से भर उठता था, ना चाय का होश रहता और ना नाश्ते का... बस याद रहता था तो सिर्फ विद्यालय भागने के समय का, धूप, हवन सामग्री, पीला चन्दन, मध्य में गेंहूं की हरे रंग की, अर्द्धपरिपक्वता को प्राप्त, बाली खोंसे हुए पीले गेंदे के फूल और पीले ही बेसन के लड्डू खरीदने का.. पिछली रात से ही सोचते कि 'क्या हमारे पास कोई पीला या वसंती सुन्दर सा ड्रेस है' जिसे कि पहिन कर विद्यालय में आज के दिन होने वाले हवन में शामिल हुआ जाए और इस पावन पर्व पर एक आहुति अपने हाथों से भी डाली जाए( भले ही ये सब स्वार्थवश होता था, क्योंकि मन में विश्वास था कि ऐसा करने से देवी श्वेतवस्त्रा हम पर विशेष कृपा करेंगीं और वर्ष भर इस सब के एवज में हमें सदबुद्धि देंगीं).
मुझे याद है कुछ साल पहले आज ही के दिन भोर से ही जब हम दोनों भाई बहनों का कोमल बाल-मन देवी सरस्वती के प्रति श्रद्धा से भर उठता था, ना चाय का होश रहता और ना नाश्ते का... बस याद रहता था तो सिर्फ विद्यालय भागने के समय का, धूप, हवन सामग्री, पीला चन्दन, मध्य में गेंहूं की हरे रंग की, अर्द्धपरिपक्वता को प्राप्त, बाली खोंसे हुए पीले गेंदे के फूल और पीले ही बेसन के लड्डू खरीदने का.. पिछली रात से ही सोचते कि 'क्या हमारे पास कोई पीला या वसंती सुन्दर सा ड्रेस है' जिसे कि पहिन कर विद्यालय में आज के दिन होने वाले हवन में शामिल हुआ जाए और इस पावन पर्व पर एक आहुति अपने हाथों से भी डाली जाए( भले ही ये सब स्वार्थवश होता था, क्योंकि मन में विश्वास था कि ऐसा करने से देवी श्वेतवस्त्रा हम पर विशेष कृपा करेंगीं और वर्ष भर इस सब के एवज में हमें सदबुद्धि देंगीं).
आज सोचा कि इतनी दूर से हवन ना सही, श्रद्धा सुमन ही अर्पित कर दूँ... तन ना सही मन ही वसंती कर लूं..
ऐसे में मेरी अनुजा, मेरी इकलौती सहोदर बहिन गार्गी(रानी) चौरसिया, जो कि बचपन से ही बेहतरीन कविताओं का सृजन भी करती आई हैं और जिनकी विद्रोही कविताओं को आप उनके जीवनसाथी यानी मेरे बहनोई, व्यंग्यलेखन में सिद्धहस्त व संजीदा ब्लोगर श्री संजय कुमार चौरसिया जी के ब्लॉग संजय कुमार पर पढ़ते भी रहते हैं, ने हमारी प्रिय परदादी जिन्हें हम छोटी बऊ कहते थे, को याद किया और वो सब लिख डाला जो आज मन में आया... छोटी बऊ के बारे में मेरी कविता और आलेख तो आपने शायद पढ़ा ही हो.. आज देखिएगा कवियत्री श्रीमती गार्गी के मन में स्नेह, करुणा और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति छोटी बऊ के प्रति प्रेम की एक बानगी..
गार्गी छोटी बऊ के बारे में कहती हैं कि-
''ऐ मेरी बसंती, मेरी गुइयाँ!! तुम्हारा शरीर भले ही हमारे पास ना हो पर तुम अब भी हमारे साथ हो. हमारा अतीत और यादें बनकर ही नहीं बल्कि अनुभूतियाँ बनकर, तुम हमारे वर्तमान में हमारे साथ हो और भविष्य में भी रहोगी !
तुम्हारे किस्से कहानी गीत पहेलियों ने ही हमें साहित्य और प्रकृति से जोड़ा है. इस देश की मिटटी से जोड़ा है और तुम्ही ने हमें बतलाया है ऋतुओं का महत्त्व भी. 'बसंती' मैंने तुम्हें यूँ ही नहीं कहा , तुम बसंत हो हमारे जीवन का , तुम्हारी यादें और अनुभूतियाँ हमें उल्लास और स्फूर्ति भर देती हैं. जिस तरह बसंत मैं तेज धूप और शीतल हवा मिलकर एक सुहाना मौसम बना देती है वैसे ही दुखों की धूप और खुशियों की शीतल हवा मिलकर जीवन जीने के लिए इंसान को लालायित करती है मन में स्फूर्ति भर देती है, जीवन में रसों को घोल देती है. वर्ना तो जीवन नीरस ही हो जाये और इंसान हतोत्साहित.
एक बात और है गर्मी, बरसात और सर्दी से थकने के बाद यही एक मौसम होता है जब व्यक्ति खुद को एक आजाद पंछी की तरह महसूस करता है. ना गर्मी की जलन, चिलचिलाहट ना वर्षा की उमस ना सर्दियों के कपड़ों का बोझ ! होती है तो बस कुछ नया करने की चाह क्योंकि वक़्त भी कुछ मिलने लगता है और तन-मन में स्फूर्ति भी रहती है.
मैं जब भी कुछ नया करने का सोचती हूँ तो तुम्हारी दुआयें याद आ जाती हैं. तुम अक्सर कहती थीं 'बेटा सौ बद्दुआओं पर एक दुआ भारी पड़ जाती है. इसलिए तो मैं तुम्हें दिन भर दुआयें देती हूँ की मैं जब ना रहूंगी तो मेरी दुआयें तुम्हारी रक्षा करेंगी और तुम हमेशा सुखी रहो!'
तुम्हारे किस्से कहानी गीत पहेलियों ने ही हमें साहित्य और प्रकृति से जोड़ा है. इस देश की मिटटी से जोड़ा है और तुम्ही ने हमें बतलाया है ऋतुओं का महत्त्व भी. 'बसंती' मैंने तुम्हें यूँ ही नहीं कहा , तुम बसंत हो हमारे जीवन का , तुम्हारी यादें और अनुभूतियाँ हमें उल्लास और स्फूर्ति भर देती हैं. जिस तरह बसंत मैं तेज धूप और शीतल हवा मिलकर एक सुहाना मौसम बना देती है वैसे ही दुखों की धूप और खुशियों की शीतल हवा मिलकर जीवन जीने के लिए इंसान को लालायित करती है मन में स्फूर्ति भर देती है, जीवन में रसों को घोल देती है. वर्ना तो जीवन नीरस ही हो जाये और इंसान हतोत्साहित.
एक बात और है गर्मी, बरसात और सर्दी से थकने के बाद यही एक मौसम होता है जब व्यक्ति खुद को एक आजाद पंछी की तरह महसूस करता है. ना गर्मी की जलन, चिलचिलाहट ना वर्षा की उमस ना सर्दियों के कपड़ों का बोझ ! होती है तो बस कुछ नया करने की चाह क्योंकि वक़्त भी कुछ मिलने लगता है और तन-मन में स्फूर्ति भी रहती है.
मैं जब भी कुछ नया करने का सोचती हूँ तो तुम्हारी दुआयें याद आ जाती हैं. तुम अक्सर कहती थीं 'बेटा सौ बद्दुआओं पर एक दुआ भारी पड़ जाती है. इसलिए तो मैं तुम्हें दिन भर दुआयें देती हूँ की मैं जब ना रहूंगी तो मेरी दुआयें तुम्हारी रक्षा करेंगी और तुम हमेशा सुखी रहो!'
जिस तरह बसन्त साल भर मौसमों से जूझने की स्फूर्ति भर जाता है वैसे ही तुमने हमारे लिए किया और खुशियों का अर्थ भी तुम्हीं ने बताया था. जब तुमने मुझसे कहा था 'गुइयाँ बनोगी मेरी सखी-सहेली?' मेरी बऊ तुम्ही तो हो और रहोगी मेरी गुइयाँ मेरी बसंती!''-------- गार्गी चौरसिया
तो चलिए आज आप भी अपने मन में वसंती रंग को समा लीजिये और देखिये/ सुनिए फिल्म अर्थ १९४७ से मेरा ये पसंदीदा गाना-
और अंत में वसंती बनाती उस्ताद सुलतान खान संग चित्रा की मधुर आवाज़ में ये गाना सुनते हुए मनाएं वसंतोत्सव...
दीपक 'मशाल'
प्रथम चित्र गूगल से साभार और वीडिओ यूट्यूब से..
गार्गी का लेखन बहुत अच्छा लगा. जानकर प्रसन्नता हुई...
जवाब देंहटाएंपुराने गीतों की बात निराली.
भारत कब निकल रहे हो?
बहिन का लेख पढा अच्छा लगा . और बसन्त का गाना भी
जवाब देंहटाएंसंजय, दीपक के बहनोई हैं यह पता ही नहीं था ! वाकई वे एक अच्छे इंसान हैं ! बहुत अच्छा किया जो गार्गी के बारे में परिचय दिया दीपक ! तुम्हारी लिखी हर लाइन से बहिन के प्रति प्यार झलकता है !
जवाब देंहटाएंजन्मे दोनों इस घर में हम
और साथ खेल कर बड़े हुए
घर में पहले अधिकार तेरा,
मैं, केवल रक्षक इस घर का
अब रक्षा बंधन के दिन पर, घर के दरवाजे बैठे हैं !
गार्गीजी को इतने उत्कृष्ट लेखन की बहुत बधाईयाँ। भविष्य के लिये शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंbasant - panchmi ki hardik badhai evam dheron shubh-kaamnaayen
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंपहुंच गए क्या?
सुंदर पोस्ट! त्योहारों पर हर कोई अपनी स्मृतियों में डूब जाता है।
जवाब देंहटाएंत्योंहार की सुंदर स्मृति .... बहुत अच्छा लगा गार्गी जी को पढ़कर..... शुभकामनायें उन्हें......
जवाब देंहटाएंबसंत की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहन गार्गी का लिखा हुआ बहुत अच्छा लगा, ये ब्लॉग देखने हैं अभी।
ऊपर पूछा गया एक सवाल हमारा भी, ’कब आ रहे हो?’
बसंत पंचमी के अवसर में मेरी शुभकामना है की आपकी कलम में माँ शारदे ऐसे ही ताकत दे...:)
जवाब देंहटाएंतुम अक्सर कहती थीं 'बेटा सौ बद्दुआओं पर एक दुआ भारी पड़ जाती है. इसलिए तो मैं तुम्हें दिन भर दुआयें देती हूँ की मैं जब ना रहूंगी तो मेरी दुआयें तुम्हारी रक्षा करेंगी और तुम हमेशा सुखी रहो!'
जवाब देंहटाएंगार्गी सच कहती है। बहुत अच्छा लिखती है। अब लगता है मुझे तुम्हारे घर जाना ही पडेगा इतने अच्छे परिवार से मिलने।गार्गी संजय और तुम्हें बहुत बहुत शुभकामनाये, आशीर्वाद।।
बसन्त पंचमी की शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंवाह वाह दोनो गाने शानदार और मनपसन्द साथ ही आलेख भी बहुत सुन्दर्।बसंत पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएं.
जवाब देंहटाएंअरे वाह गार्गी तो बहुत अच्छा लिखतीं हैं ..तुमसे भी अच्छा :) एक पोस्ट में पूरा बसंत भर दिया.
जवाब देंहटाएंna nikla, na pahuncha, na tay huaa din :(
जवाब देंहटाएंआपको बसंत उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं.......
जवाब देंहटाएंदीपक जी बहुत अच्छा लगा यह परिचय पाकर.
जवाब देंहटाएंवसंत ऋतु के आगमन पर ढेर सारी शुभ कामनाएं
उत्कृष्ट लेखन की बहुत बधाईयाँ।
जवाब देंहटाएंवसंत ऋतु के आगमन पर ढेर सारी शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंगार्गी से मिलना ---सुखद अनुभव............आभार संजय जी का .......
जवाब देंहटाएंगार्गी के लेखन ने प्रभावित किया ...
जवाब देंहटाएंआपके विद्यालय की यादों ने हमें भी कुछ याद दिलाया ...!
... बगरो बसंत है.
जवाब देंहटाएंसौ.गार्गी , प्रिय संजय और आपके जीवन में बसंत ही बसंत हो बस यही कामना है !
जवाब देंहटाएंसम्यक प्रविष्टि के लिए साधुवाद !
बहन गार्गी के लिए हार्दिक शुभकानाएं।
जवाब देंहटाएंअच्छा हो जल्दी ही उनका भी एक ब्लॉग बनवाएं।
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समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।
गार्गी को पढना बहुत ही अच्छा लगा...बहुत ही सुन्दर लिखा है
जवाब देंहटाएंतुम दोनों भाई बहनों ..{जीजाजी included :)} पर सरस्वती माँ ऐसे ही निश्छल स्नेह लुटाती रहें