सोमवार, 22 नवंबर 2010

एड्स परीक्षण(लघुकथा)--------------->>>दीपक 'मशाल'

सृजनगाथा से एक लघुकथा लाकर यहाँ लगाई है.
फॉर्म भर जाने के बाद जब उसने डॉक्टर को वापस किया तो डॉक्टर ने फॉर्म में पूछे गए सवालों के जवाबों पर निगाह डाली। उसके रक्त का नमूना लेने के बाद एक बार फिर उसे कुरेदने की कोशिश की- ''तुम्हें अच्छे से याद है ना कि पिछले कुछ महीनों के दौरान तुमने ना ही कहीं कोई रक्तदान किया, ना रक्त चढ़वाया, ना असुरक्षित सम्भोग किया, ना नाई के यहाँ शेव बनवाते हुए तुम्हें कोई कट वगैरह लगा?''

''हाँ, डॉक्टर सा'ब मुझे अच्छे से याद है। आप मुझपर ऐसे शक़ क्यों कर रहे हैं?'' मुस्तफ़ा ने डॉक्टर को जवाब दिया।
डॉक्टर- ''ह्म्म्म.. फिर तुम्हारा वज़न अचानक इतना क्यों गिरा हमें देखना पड़ेगा। भूख भी नहीं लगती तुम्हें, खैर रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कह पाऊंगा। फिर भी कहना ज़रूरी समझता हूँ कि हमारे बीच की हर बात गोपनीय रखी जायेगी और सब सच बता दोगे तो तुम्हारे ही इलाज़ में आसानी रहेगी।''
मुस्तफ़ा के मुँह से सिर्फ़ ''जी..'' निकला। वो एलाइजा टेस्ट के लिए रक्त के नमूना-पत्र पर दस्तख़त कर ज़ल्दी से बाहर निकल गया।
कुछ दिनों बाद डॉक्टर ने रिपोर्ट थमाकर उसे एचआईवी पोजिटिव बताया और हज़ार हिदायतें देते हुए समझाया कि अगर वो उनका बताया कोर्स बिना नागा किये लेगा तो वो भी और इंसानों की तरह भरपूर तरीक़े से अपना जीवन जी सकता है।
पर मुस्तफ़ा अब और कुछ सुनने वाला कहाँ था, वो तो बस चिल्लाये जा रहा था, ''तो उस नीच औरत की बात सही थी, मैंने ही एहतियात नहीं बरता। पर अब मैं उसे ज़िन्दा नहीं छोडूंगा। मैं अकेले नहीं मरूँगा। 10-12 को ये रोग दे के जाऊँगा..''
डॉक्टर असहाय बस उसे देखे जा रहा था।


हम आईने में उनके, औकात देखते हैं
फूलों में खुशबुओं की, सौगात देखते हैं

ले बूंद बूंद आँसू, जो भर के डाक लाई
उन आसूंओं से होती, बरसात देखते हैं

अब तन्हाई का हमको, शौक हो गया है
बस टूटते दिलों के, हालात देखते हैं

है रोशनी की दुनिया, छिपते फिरें अंधेरे,
दूल्हे के नाम पर वो, बारात देखते हैं.

घर हो भले ही छोटा, दिल में जगह है काफी 
ले हाथ में वो फीता, क्या नाप देखते हैं.

इनको मशाल तेरी, कीमत कहाँ पता है
चल उठ नया फिर कोई, बाजार देखते है
दीपक 'मशाल'

25 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, क्या बात है ...
    दोनों रचनाएँ बेहतरीन है ...

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  2. laghukatha samapt karne aur kavita padhna shuru karne ke beech 5 minat ka faasla raha....
    thodi der ke sochne par majboor karti laghukatha....
    aur kavita to lajawab hai hi.....

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  3. घर है माना छोटा दिल में जगह बहुत है
    वो फिर भी फीता लेकर आकार देखते हैं
    ..बहुत खूब।

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  4. जिस तरह की मानव संवेदना होती जा रही है वह बड़ी चिंता का विषय है ...हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे.. कहानी पढ़ कर यही भाव मन मे आते हैं आते हैं ग़ज़ल की तरफ

    इस दर्द के पार्सल में नया सा तो कुछ नहीं है
    बेहतर है डाकिये की फिर से राह देखते हैं

    ये बात अच्छी है .... काफिया मिस्सिंग है इस रचना मे से ...

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  5. aaise hi log duniya ko badnaam karte hai.
    us aurat ne to keha tha.

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  6. विचारणीय पोस्ट ...दूसरों को दोष देने की आदत है ..अपने गिरेबान में नहीं झाँका जाता ..

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  7. दोनों ही पोस्ट लाजवाब हैं पहली विचारणीय है और एक सत्य भी

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  8. मुझे कविता सबसे अच्छी लगी ..

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  9. यहाँ पर मशाल अपनी कीमत कोई नहीं है
    चलिए चलकर कोई नया बाज़ार देखते हैं.

    सही कहा आपने . बेहतरीन ग़ज़ल. लघुकथा बहुत ही मार्मिक आघात लगाती है...

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  10. दीपक देखा जाए तो वजनदार कविता ही लगी, लघुकथा में कहीं कुछ कमी सी दिखी. देखना फिरसे क्या कमी रही?
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  11. ्लघुकथा और कविता का काकटेल गज़ब किया है……………दोनो ही प्रस्तुति शानदार्।

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  12. मुझे कहानी ज्यादा बेहतर लगी !

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  13. रचना बहुत सुन्दर..........और लेख भी

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  14. दोनों रचनाएं बेहतर लगीं। एड्स को लेकर सोच बदलने से जरूरत है।

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  15. बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........

    http://saaransh-ek-ant.blogspot.com

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  16. लघु कथा और ग़ज़ल दोनों ही अच्छे हैं !
    ग़ज़ल का मतला लाजवाब है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  17. कथा पर ही बात करें ..? कथा सन्देश ज़रूर देती है लेकिन कुछ अनावश्यक विस्तार है जैसे एड्स के लक्षण का बखान । अंत सही है लेकिन यह जल्दी मे किया अंत है इसके पहले उसकी मनोदशा का बखान करते कुछ वाक्य होने चाहिये ।

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