उसे खुश रहने की दुआ मत दो
बेवफाई की ऐसी सज़ा मत दो
आँख सूजी है और सुर्ख भी है
झूठे ही मुस्कुरा के विदा मत दो
निशाँ जिस्म या ज़िहन के रहने दो
जगह-जगह से इन्हें मिटा मत दो
रोई है कदील रात भर जिसे सुन के
वो कहानी पत्थरों को सुना मत दो
काफी है इतनी शर्म से मर जाने को
बेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो
किसी दर्द के लिए बचा के रख लो इन्हें
ज़ालिम के जाने पे अश्क बहा मत दो
थोड़ा तरस तो खाओ अपनी हालत पे
'मशाल' ज़ख्मों को और हवा मत दो.
दीपक 'मशाल'
दीपक जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
थोड़ा तरस तो खाओ अपनी हालत पे
'मशाल' ज़ख्मों को और हवा मत दो.
.........बहुत खूब, लाजबाब !
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
एक बेहतरीन अश`आर के साथ पुन: आगमन पर आपका हार्दिक स्वागत है.
जवाब देंहटाएंकाफी है इतनी शर्म से मर जाने को
जवाब देंहटाएंबेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो
वाह वाह वाह ,कमाल है दीपक जी
बेहतरीन भावों को शे’रों मे पिरोए सुंदर ग़ज़ल। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंहिन्दी साहित्य की विधाएं - संस्मरण और यात्रा-वृत्तांत
रोई है कदील रात भर जिसे सुन के
जवाब देंहटाएंवो कहानी पत्थरों को सुना मत दो
वाह दीपक भाई, सभी शेर वजनदार हैं
आभार
बेहतरीन अभिव्यक्ति। पढ़कर आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंवाह वा वाह वा !
जवाब देंहटाएंक्या बात है दीपक ....वैसे कुछ गंभीर मामला तो नहीं ?
दर्द भरा चेहरा और दर्द भरी गजल? क्या बात है दीपक?
जवाब देंहटाएंकाफी है इतनी शर्म से मर जाने को
जवाब देंहटाएंबेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो
bahut khoob
निशाँ जिस्म या ज़िहन के रहने दो
जवाब देंहटाएंजगह-जगह से इन्हें मिटा मत दो
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना .... बधाई दीपक जी ...
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर रचना , बधाई ......
जवाब देंहटाएंकिसी दर्द के लिए बचा के रख लो इन्हें
जवाब देंहटाएंज़ालिम के जाने पे अश्क बहा मत दो
Deepak ji.....aaj pahli baar aap ke blog per comment kar raha hun. ek shaandaar gazal ke liye badhaai.... or likhiye....mashaal......ko jalaye rakhiye.
काफी है इतनी शर्म से मर जाने को
जवाब देंहटाएंबेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो
बहुत खूब ....ग़मगीन सी गज़ल ....
दुबले दुबले से आज जो नज़र आतें हो,
जवाब देंहटाएंसबब ग़ज़ल इसका कहीं बता मत दो ! ;)
लिखते रहिये ....
बेहतरीन अभिव्यक्ति .....भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंरोई है कदील रात भर जिसे सुन के
जवाब देंहटाएंवो कहानी पत्थरों को सुना मत दो
काफी है इतनी शर्म से मर जाने को
बेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो
क्या खूब शेर निकाले हैं। अच्छी लगी गज़ल। मुझे से वो खुशी सम्भाले नही सम्भल रही--- कब सुनाऊँ सब को? कल की पोस्ट मे लगा दूँ क्या? अब और नही रुका जाता। हा हा हा जब कहोगे तब लगाऊँगी। आशीर्वाद।
बहुत खूब!...एक एक शब्द आसमा को छूने का अहसास करा है!...वाह, वाह!
जवाब देंहटाएंथोड़ा तरस तो खाओ अपनी हालत पे
जवाब देंहटाएं'मशाल' ज़ख्मों को और हवा मत दो.
...gahare dard...bahut badhiya likha hai aapne...aabhaar.
बहुत बढ़िया उपदेशात्मक रचना प्रकाशित की है आपने!
जवाब देंहटाएंअरे ये क्या हाल बना रखा है ? कुछ लेते क्यों नहीं ?
जवाब देंहटाएंकिसी दर्द के लिए बचा के रख लो इन्हें
जवाब देंहटाएंज़ालिम के जाने पे अश्क बहा मत दो
ओहो हो ..बड़े दिनों बाद एंट्री मारी और क्या खूब मारी..एकदम फड़कती हुई ग़ज़ल..बहुत खूब.
किसी दर्द के लिए बचा के रख लो इन्हें
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ....बेहतरीन ।
क्या खूब लिखा है……………हर पंक्ति शानदार दिल को छू गयी।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
deepak bhai ,
जवाब देंहटाएंnamaksaar !
sunder shabdon ki abhivyakti ke liye sadhuwad ,
--
किसी दर्द के लिए बचा के रख लो इन्हें
जवाब देंहटाएंज़ालिम के जाने पे अश्क बहा मत दो ..
वाह बहुत खूब .. इतने दिनों बाद आपको पढ़ा ... लाजवाब शेर कहे हैं सब ..
उसे खुश रहने की दुआ मत दो
जवाब देंहटाएंबेवफाई की ऐसी सज़ा मत दो.............
दीपक जी..... वाकई धमाकेदार वापसी है , गहरे जज्बात के साथ सुंदर ग़ज़ल .........
mashal tarash to khao yaar..........:)
जवाब देंहटाएंbahut pyara andaaj!!
......?
जवाब देंहटाएंये जख्म किस नामाकूल ने दिए हैं ?
जवाब देंहटाएंकाफी है इतनी शर्म से मर जाने को
जवाब देंहटाएंबेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो
बहुत लाज़वाब हर एक शेर दिल पर दस्तक दे गया
lajwaab prastuti .......
जवाब देंहटाएंअरे बच्चे यह क्या मजणू जेसी हालत बना रखी हे, उस पर रचना भी लेला लैला पुकार रही हे, बाबा हुआ कया,बोलो तो हम आ जाये... अगर कोई पसंद आ गई हो तो ताऊ चाचा बन कर मांग लायेगे जी, ओर हाथ पीले कर देगे तुम्हारे
जवाब देंहटाएंहर शेर उम्दा और दर्द भरा ! बहुत ही बेहतरीन गज़ल है ! बधाई एवं आभार !
जवाब देंहटाएंसोचा कि पूछता चलूँ - ये क्या हाल बना रखा है? कुछ लेते क्यों नहीं?
जवाब देंहटाएंवैसे बहुत लोग पूछ चुके हैं।
@
काफी है इतनी शर्म से मर जाने को
बेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो
आह!
vaise to likhte hi kamaal ke hai ...........tarif ke liye shabd nahi milte ........is post ke liye to yahi kahate hai wah ustad wah
जवाब देंहटाएंमैं जो कहने वाला था पहले ही बहुत लोगों ने कह दिया.. :)
जवाब देंहटाएंथोड़ा तरस तो खाओ अपनी हालत पे
जवाब देंहटाएं'मशाल' ज़ख्मों को और हवा मत दो.
waah!sundar lekhan!
उसे खुश रहने की दुआ मत दो
जवाब देंहटाएंबेवफाई की ऐसी सज़ा मत दो
आँख सूजी है और सुर्ख भी है
झूठे ही मुस्कुरा के विदा मत दो
...........touching...may have many explanations of these lines as I can feel....
वाह वाह दीपक जी.....क्या कहने.....
जवाब देंहटाएंएक आह सी सुलगती है......
जवाब देंहटाएंजाए क्या है ये.....
waah! khubsoorat magar dard bhari gazal!!
जवाब देंहटाएंबहुत लाज़वाब हर एक शेर दिल पर दस्तक दे गया
जवाब देंहटाएंlajwaab prastuti (Dipakji).......
बहुत ही बेहतरीन रचना...मेरा ब्लागःः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं"इतनी हसरत से तकती है कलियाँ तुम्हें
जवाब देंहटाएंक्यों बहारों को फिर से बुलाते नहीं,
एक दुनिया उजड़ गई है तो क्या
दूसरा तुम जहाँ क्यों बसाते नहीं?,
दिल ने चाहा भी तो ले संसार के
चलना पड़ता है सबकी ख़ुशी के लिए ...."
Bahot sunder............
जवाब देंहटाएंनिशाँ जिस्म या ज़िहन के रहने दो
जवाब देंहटाएंजगह-जगह से इन्हें मिटा मत दो
लाज़वाब हर शेर.......
बहुत सुन्दर गजल!
जवाब देंहटाएंदीपक भाई, जिंदगी के सच को गजल में बखूबी पिरो दिया है आपने।
जवाब देंहटाएंबधाई।
---------
छुई-मुई सी नाज़ुक...
कुँवर बच्चों के बचपन को बचालो।
mashal ji ........bahut umda
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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