बुधवार, 8 दिसंबर 2010

जाने क्या है ये!!!!------------------------ दीपक 'मशाल'

उसे खुश रहने की दुआ मत दो
बेवफाई की ऐसी सज़ा मत दो
आँख सूजी है और सुर्ख भी है 
झूठे ही मुस्कुरा के विदा मत दो 

निशाँ जिस्म या ज़िहन के रहने दो  
जगह-जगह से इन्हें मिटा मत दो 

रोई है कदील रात भर जिसे सुन के 
वो कहानी पत्थरों को सुना मत दो 

काफी है इतनी शर्म से मर जाने को 
बेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो 

किसी दर्द के लिए बचा के रख लो इन्हें   
ज़ालिम के जाने पे अश्क बहा मत दो 

थोड़ा तरस तो खाओ अपनी हालत पे 
'मशाल' ज़ख्मों को और हवा मत दो. 
दीपक 'मशाल'

51 टिप्‍पणियां:

  1. दीपक जी
    नमस्कार !
    थोड़ा तरस तो खाओ अपनी हालत पे
    'मशाल' ज़ख्मों को और हवा मत दो.
    .........बहुत खूब, लाजबाब !
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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  2. एक बेहतरीन अश`आर के साथ पुन: आगमन पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  3. काफी है इतनी शर्म से मर जाने को
    बेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो

    वाह वाह वाह ,कमाल है दीपक जी

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन भावों को शे’रों मे पिरोए सुंदर ग़ज़ल। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    हिन्दी साहित्य की विधाएं - संस्मरण और यात्रा-वृत्तांत

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  5. रोई है कदील रात भर जिसे सुन के
    वो कहानी पत्थरों को सुना मत दो

    वाह दीपक भाई, सभी शेर वजनदार हैं

    आभार

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  6. बेहतरीन अभिव्यक्ति। पढ़कर आनन्द आ गया।

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  7. वाह वा वाह वा !
    क्या बात है दीपक ....वैसे कुछ गंभीर मामला तो नहीं ?

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  8. दर्द भरा चेहरा और दर्द भरी गजल? क्‍या बात है दीपक?

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  9. काफी है इतनी शर्म से मर जाने को
    बेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो

    bahut khoob

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  10. निशाँ जिस्म या ज़िहन के रहने दो
    जगह-जगह से इन्हें मिटा मत दो

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना .... बधाई दीपक जी ...

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  11. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर रचना , बधाई ......

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  12. किसी दर्द के लिए बचा के रख लो इन्हें
    ज़ालिम के जाने पे अश्क बहा मत दो

    Deepak ji.....aaj pahli baar aap ke blog per comment kar raha hun. ek shaandaar gazal ke liye badhaai.... or likhiye....mashaal......ko jalaye rakhiye.

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  13. काफी है इतनी शर्म से मर जाने को
    बेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो

    बहुत खूब ....ग़मगीन सी गज़ल ....

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  14. दुबले दुबले से आज जो नज़र आतें हो,
    सबब ग़ज़ल इसका कहीं बता मत दो ! ;)

    लिखते रहिये ....

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  15. बेहतरीन अभिव्यक्ति .....भावपूर्ण रचना ...

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  16. रोई है कदील रात भर जिसे सुन के
    वो कहानी पत्थरों को सुना मत दो

    काफी है इतनी शर्म से मर जाने को
    बेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो
    क्या खूब शेर निकाले हैं। अच्छी लगी गज़ल। मुझे से वो खुशी सम्भाले नही सम्भल रही--- कब सुनाऊँ सब को? कल की पोस्ट मे लगा दूँ क्या? अब और नही रुका जाता। हा हा हा जब कहोगे तब लगाऊँगी। आशीर्वाद।

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  17. बहुत खूब!...एक एक शब्द आसमा को छूने का अहसास करा है!...वाह, वाह!

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  18. थोड़ा तरस तो खाओ अपनी हालत पे
    'मशाल' ज़ख्मों को और हवा मत दो.
    ...gahare dard...bahut badhiya likha hai aapne...aabhaar.

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  19. बहुत बढ़िया उपदेशात्मक रचना प्रकाशित की है आपने!

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  20. अरे ये क्या हाल बना रखा है ? कुछ लेते क्यों नहीं ?

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  21. किसी दर्द के लिए बचा के रख लो इन्हें
    ज़ालिम के जाने पे अश्क बहा मत दो

    ओहो हो ..बड़े दिनों बाद एंट्री मारी और क्या खूब मारी..एकदम फड़कती हुई ग़ज़ल..बहुत खूब.

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  22. किसी दर्द के लिए बचा के रख लो इन्हें
    बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ....बेहतरीन ।

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  23. क्या खूब लिखा है……………हर पंक्ति शानदार दिल को छू गयी।

    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  24. किसी दर्द के लिए बचा के रख लो इन्हें
    ज़ालिम के जाने पे अश्क बहा मत दो ..

    वाह बहुत खूब .. इतने दिनों बाद आपको पढ़ा ... लाजवाब शेर कहे हैं सब ..

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  25. उसे खुश रहने की दुआ मत दो
    बेवफाई की ऐसी सज़ा मत दो.............
    दीपक जी..... वाकई धमाकेदार वापसी है , गहरे जज्बात के साथ सुंदर ग़ज़ल .........

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  26. ये जख्म किस नामाकूल ने दिए हैं ?

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  27. काफी है इतनी शर्म से मर जाने को
    बेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो
    बहुत लाज़वाब हर एक शेर दिल पर दस्तक दे गया

    जवाब देंहटाएं
  28. अरे बच्चे यह क्या मजणू जेसी हालत बना रखी हे, उस पर रचना भी लेला लैला पुकार रही हे, बाबा हुआ कया,बोलो तो हम आ जाये... अगर कोई पसंद आ गई हो तो ताऊ चाचा बन कर मांग लायेगे जी, ओर हाथ पीले कर देगे तुम्हारे

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  29. हर शेर उम्दा और दर्द भरा ! बहुत ही बेहतरीन गज़ल है ! बधाई एवं आभार !

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  30. सोचा कि पूछता चलूँ - ये क्या हाल बना रखा है? कुछ लेते क्यों नहीं?
    वैसे बहुत लोग पूछ चुके हैं।

    @
    काफी है इतनी शर्म से मर जाने को
    बेवफा को इससे ज्यादा वफ़ा मत दो

    आह!

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  31. vaise to likhte hi kamaal ke hai ...........tarif ke liye shabd nahi milte ........is post ke liye to yahi kahate hai wah ustad wah

    जवाब देंहटाएं
  32. मैं जो कहने वाला था पहले ही बहुत लोगों ने कह दिया.. :)

    जवाब देंहटाएं
  33. थोड़ा तरस तो खाओ अपनी हालत पे
    'मशाल' ज़ख्मों को और हवा मत दो.
    waah!sundar lekhan!

    जवाब देंहटाएं
  34. उसे खुश रहने की दुआ मत दो
    बेवफाई की ऐसी सज़ा मत दो
    आँख सूजी है और सुर्ख भी है
    झूठे ही मुस्कुरा के विदा मत दो
    ...........touching...may have many explanations of these lines as I can feel....

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  35. एक आह सी सुलगती है......

    जाए क्या है ये.....

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  36. बहुत लाज़वाब हर एक शेर दिल पर दस्तक दे गया
    lajwaab prastuti (Dipakji).......

    जवाब देंहटाएं
  37. बहुत ही बेहतरीन रचना...मेरा ब्लागःः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे....धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  38. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  39. "इतनी हसरत से तकती है कलियाँ तुम्हें
    क्यों बहारों को फिर से बुलाते नहीं,

    एक दुनिया उजड़ गई है तो क्या
    दूसरा तुम जहाँ क्यों बसाते नहीं?,

    दिल ने चाहा भी तो ले संसार के
    चलना पड़ता है सबकी ख़ुशी के लिए ...."

    जवाब देंहटाएं
  40. निशाँ जिस्म या ज़िहन के रहने दो
    जगह-जगह से इन्हें मिटा मत दो
    लाज़वाब हर शेर.......

    जवाब देंहटाएं
  41. बहुत सुन्दर गजल!

    जवाब देंहटाएं
  42. दीपक भाई, जिंदगी के सच को गजल में बखूबी पिरो दिया है आपने।

    बधाई।

    ---------
    छुई-मुई सी नाज़ुक...
    कुँवर बच्‍चों के बचपन को बचालो।

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  43. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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