१- वह जो जरूरी है (लघुकथा)
गुप्ता जी ने बाहर जाने के लिए दरवाज़ा खोला ही था कि सामने पड़ोसी वर्मा जी खड़े मिले।
- अरे भाई सा'ब आप! आइए.. अंदर आइए बाहर क्यों खड़े हैं।
- कैसे हो भाई गुप्ता? घंटी बजाने ही वाला था कि तुमने खुद ही दरवाज़ा खोल दिया
भीतर आते हुए वर्मा जी बोले।
दोनों के सोफे पर बैठते ही गुप्ता जी ने भीतर आवाज़ दी
- पिंकी!!! बाहर आओ ज़रा
पिंकी ने बाहर आते हुए अभिवादन किया
- जी नमस्ते अंकल
- अरे!! खाली नमस्ते? चाय-पानी पिलाओ भई..
गुप्ता जी ने मजाकिया लहजे में कहा।
इधर-उधर की बातों के दौरान घर के ऊपर वाले कमरे से दो बार पानी के लिए पुकार लगी तो अंदर से मिसेज गुप्ता ने
रसोई में चाय बनाती पिंकी को आदेश दिया
- पिंकी!! भईआ को पानी दे आ ज़रा, कब से माँग रहा है
- क्या हुआ बेटे की तबियत ठीक नहीं क्या?
वर्मा जी ने शंका जाहिर की तो गुप्ता जी ने झेंपते हुए कहा
- नहीं, पढ़ रहा होगा अपने कमरे में
थोड़ी देर बाद पिंकी ने सबको चाय के कप पकड़ाए ही थे कि पीछे से आ रहीं मिसेज गुप्ता ने कहा
- भैया की चाय ऊपर ही दे आ उसके कमरे मे
इससे पहले कि पिंकी आगे बढ़ती गुप्ता जी ने आवाज़ को ऊपर वाले कमरे तक पहुँचाते हुए कहा
- बबलू! नीचे आओ और अपनी चाय खुद लेकर जाओ।
२- शहर में/ दीपक मशाल (लघुकथा)
वह बहुत देर तक गौर से देखता रहा कि सड़क के दूसरे किनारे खड़ा सब्जीफर्रोश किस तरह अपने हाथ ठेले के एक किनारे बैठी अपनी पाँच-छह साल की बच्ची को फुर्सत मिलते ही पढ़ाने लगता। अक्सर ऐसे दृश्यों पर नज़र रहती उसकी, जानकारी जुटाकर सचित्र अपने ब्लॉग, सोशल अकाउंट पर डाल देता। कई बार अखबारों में भी उसकी ये पोस्ट आ जातीं।
वह धीरे-धीरे ठेले के नज़दीक आ गया और सब्जीवाले से बात करने लगा
- तुम्हारी बेटी है?
- जी सर
उसने जवाब दिया
- क्या पढ़ा रहे हो?
- जित्ता खुदे आता है उत्ता बता दे रए हैं सर, स्कूल भेजे की तो औक़ात नहीं अबी
- अरे अच्छा है, करते रहो। कल को स्कूल भी जाएगी ही। कहाँ से हो?
- रहे वारे तो यूं पी के हैं, लेकिन अब यहीं गुज़ारा है
- हम्म..... तुम्हारी फोटो निकालकर डालूँगा इंटरनेट पर, मशहूर हो जाओगे।
कहकर उसने बिना जवाब की प्रतीक्षा किए जेब से स्मार्ट फोन निकाला और बेटी समेत उस आदमी की फोटो लेने लगा।
- न ना सर ई सब नहीं।
उसने कैमरे के आगे हाथ लगाते हुए उसे रोका। दो पल को कैमरे वाला स्तब्ध रह गया और फिर खीझकर दूसरी ओर जाने लगा। पीछे से सब्जी वाले ने आवाज़ दी
- और कौनो दिक्कत नाहीं सर, बस फोटू कम्पूटर में जावेगी तो गाँव में उहाँ सब जान जावेंगे कि हम इहाँ शहर में सब्ज़ी...... ।
३- ख़बर के रास्ते में
'नया दौर' से काफी आगे का नया दौर आ चुका था। इतना कि लोगों में एक वर्गीकरण दृष्टव्य उम्र के अंतर का भी आ गया था। कुछ लोग चालीस की उम्र में भी पैंतीस नज़र आते थे तो कई अभी भी ऐसे थे जो चालीस में पैंतालीस या अधिक दिखते थे।
चुपके से सही मगर कम दिखने की होड़ इंसान को उसकी लक़ीर से खिसका दे रही थी।
समाचार में दिखाया जा रहा था कि इसी तरह की कुछ नई-पुरानी होड़ों में शामिल होने के उपक्रम में एक 'हवलदार जो हद से आगे चला गया था, पकड़ा गया'। कई घर, ज़मीन-जायदाद, रुपिया-पैसा जोड़ लिए थे उसने, तनख्वाह से बहुत अधिक। अनुभवों से जानता था कि सामने आई है तो यह बात कम से कम दो-चार दिन का मसाला हो जानी है।
पंसारी से कुछ सामान खरीदने निकला तो चौराहे पर भीड़ देखी, पता चला कि क़रीब की गली में रहने वाला कोई अफसर भी ऐसी ही दौड़ में शामिल मिला। जाँच दल काफी देर से घर में घुसा हुआ था। लोग, जो रामभरोसे जी रहे थे, दबी ज़ुबान से मन की बात कहते सुने
- 'खबर' न बने इसकी कोशिशें चल रही हैं।
तनिक दूरी पर खड़े दो संविधानभरोसे सिपाही भी आपस में बात कर रहे थे, एक ने कहा
- मोटी खाल है, जल्दी सब नहीं उगलेगा।
इस बात के मायने खोजता घर पहुँचा, देखा कि बाहर जाते हुए टी.वी. बंद करना भूल गया था। नए दौर में कहीं से पुराना विज्ञापन चल निकला
- जी आपकी त्वचा से तो आपकी उम्र का पता ही नहीं चलता।
पंसारी से कुछ सामान खरीदने निकला तो चौराहे पर भीड़ देखी, पता चला कि क़रीब की गली में रहने वाला कोई अफसर भी ऐसी ही दौड़ में शामिल मिला। जाँच दल काफी देर से घर में घुसा हुआ था। लोग, जो रामभरोसे जी रहे थे, दबी ज़ुबान से मन की बात कहते सुने
- 'खबर' न बने इसकी कोशिशें चल रही हैं।
तनिक दूरी पर खड़े दो संविधानभरोसे सिपाही भी आपस में बात कर रहे थे, एक ने कहा
- मोटी खाल है, जल्दी सब नहीं उगलेगा।
इस बात के मायने खोजता घर पहुँचा, देखा कि बाहर जाते हुए टी.वी. बंद करना भूल गया था। नए दौर में कहीं से पुराना विज्ञापन चल निकला
- जी आपकी त्वचा से तो आपकी उम्र का पता ही नहीं चलता।
तीनो लघुकथाएं अच्छी हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-05-2016) को "लगन और मेहनत = सफलता" (चर्चा अंक-2331) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
श्रमिक दिवस की
शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत अच्छी लघु कथाएं !
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