दोनों परिवारों में दोस्ती बहुत पुरानी या गहरी तो नहीं थी लेकिन वक़्त बीतने के साथ-साथ बढ़ती जा रही थी। महीने में कम से कम एक बार दोनों एक दूसरे को खाने के बहाने, मिलने के लिए अपने घर आमंत्रित कर ही लेते थे, इस बार दूसरे वाले ने किया था।
सुरक्षा के उद्देश्य से दोनों की ही बिल्डिंग में इस तरह का सिस्टम था कि जब तक मेजबान खुद बाहर निकल कर नीचे मुख्य द्वार तक लेने ना आये तब तक कोई मेहमान भीतर नहीं आ सकता था। पहले दोस्त ने परिवार सहित बिल्डिंग के नीचे पहुँच कर फोन किया
बात ख़त्म भी ना हुई थी कि पत्नी बोल पड़ी
- जी, वही मुझे लगा कि फिर उनका छोटा बच्चा भी तो बाहर सर्दी में खड़ा होगा, आप जल्दी जाइये और दोनों मुस्कुरा दिए.
अपनेपन की बेचैनी.... आहट है कि दूर से सुनाई दे जाती है ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंकाश । हम ऐसा सोच पाते .... कहानी आदर्शवादी परम्परा पर चली गई, आदर्श य़र्थाथ से हमेशा अलग होता हैं
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवास्तविकता
जवाब देंहटाएंbahut sundar
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