मुआवज़ा सत्तर से ऊपर बुजुर्गों से पता चला कि इससे पहले क़स्बे में ऐसी बाढ़ उन्होंने सिर्फ तब देखी थी जब वो खुद बच्चे या फिर किशोर थे। हफ्ते भर की मूसलाधार बारिश और नजदीकी बाँध को कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा काट दिए जाने ने समूचे जिले को प्रलय का नमूना दिखा दिया था। पानी उतरा तो सरकार ने प्रतिनिधियों और अधिकारियों को नुकसान का अनुमान लगाने के काम में लगा दिया। पीड़ितों के पुनर्वास में मदद के लिए घोषणाएँ होने लगीं। राज्य सरकार ने बाढ़ पीड़ितों की सूची माँगी।
रातोंरात सूची भी तैयार हो गई, अंतिम रूप देने के लिए लेखपालों को कुछ असली पीड़ितों के नाम दर्ज करने के लिए लगाया गया। 'अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बोल' के हिसाब से नाम दर्ज करके जब लेखपाल राहत शिविर से जाने लगा तो पीछे से नेकसिंह बंजारे ने गुहार लगाई
- सा'ब, हमऊँ को नाँओ लिख लेओ
- का नाम है
लेखपाल ने बेरुखी से पूछा
- नेकसिंह
- नुक्सान?
- सबई चलो गओ सा'ब, दो बकरियाँ चली गईं, एक कुत्ता मर गओ.…. पहनवे-ओढ़वे के सब उन्ना-लत्ता बह गए.… खटिया, चूल्हो-चौका बासन…… गुज़ारे खों कछू नईं बचो
दुःखी स्वर में नेक सिंह ने बताया
- भक ससुर, कुत्तन को मुआओजा मिळत कऊँ? घर कच्चो हतो के पक्को?
पड़ताल करते लेखपाल ने झिड़ककर सवाल किया
- घर न हतो मालिक, ऐसेई गाड़ी पे बरसाती तान कें काम चलात ते। तीन साल सें जई गाँव में बसे
बंजारे ने ब्यौरा दिया
- फिर तुम्हें न मिल पाहे, जो मदद स्थाई निवासियन के लाने है
पैंट झाड़ते हुए लेखपाल ने असमर्थता जाहिर की
नेक सिंह रिरियाने लगा
- दया करो सा'ब बिलकुलई बर्बाद हो गए, खाबे तक के लाले पड़े…. अब तो कामऊ नईंयाँ करबे खों
- अरे कर लीजिये लेखपाल सा'ब, ग़रीब आदमी है.…
साथ में चल रहे सिपाही ने सिफारिश लगाई
- आप कहते हैं तो कर लेता हूँ दीवान जी, वर्ना …… ठीक है जाओ, कर लओ नाओं दर्ज
एक-एक कर सिपाही और नेक सिंह से मुखातिब होते हुए लेखपाल बोला
नेक सिंह ने सिपाही और लेखपाल को कृतज्ञतापूर्वक दोनों हाथ जोड़े और आश्वस्त होकर चला गया
- जब चोरी-चकारी या राहजनी जैसे मामले नहीं सुलझ पाते तो प्रेशर कम करने के लिए गिरफ्तारी दिखाने में बड़े काम आते हैं ये बंजारे
सिपाही ने हँसते हुए सिफारिश का राज बताया और दोनों चाय की गुमटी की तरफ बढ़ गए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें