गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

कीमत

रमा के मामा रमेश के घर में कदम रखते ही रमा के पिताजी को लगा कि जैसे उनकी सारी समस्याओं का निराकरण हो गया.
रमेश फ्रेश होने के पश्चात, चाय की चुस्कियां लेने अपने जीजाजी के साथ कमरे के बाहर बरामदे में आ गया. ठंडी हवा चल रही थी.. जिससे शाम का मज़ा दोगुना हो गया. पश्चिम में सूर्य उनींदा सा बिस्तर में घुसने कि तैयारी में लगा था.. कि चुस्कियों के बीच में ही जीजाजी ने अपने आपातकालीन संकट का कालीन खोल दिया-

''यार रमेश, अब तो तुम ही एकमात्र सहारा हो, मैं तो हर तरफ से हताश हो चुका हूँ.''

मगर जीजाजी की बात ने जैसे रमेश की चाय में करेले का रस घोल दिया, उसे महसूस हुआ की उस पर अभी बिन मौसम बरसात होने वाली है.. लेकिन बखूबी अपने मनोभावों को छुपाते हुए उसने कहा-

''मगर जीजाजी, हुआ क्या है?''

''अरे होना क्या है, वही पुराना रगडा... तीन साल हो गए रमा के लिए घर तलाशते हुए. अभी वो ग्वालियर वाले शर्मा जी के यहाँ तो हमने रिश्ता पक्का ही समझा था मगर..... उन्होंने ये कह के टाल दिया की लड़की कम से कम पोस्ट ग्रेज़ुएत तो चाहिए ही चाहिए. उससे पहिले जो कानपूर वाले मिश्रा जी के यहाँ आस लगाई तो उन्होंने सांवले रंग की दुहाई देके बात आई गई कर दी.''

''वैसे ये लड़के करते क्या थे जीजा जी?''

''अरे वो शर्मा जी का लड़का तो इंजीनिअर था किसी प्राइवेट कंपनी में और उनका मिश्रा जी का बैंक में क्लर्क..'' लम्बी सांस लेते हुए रमा के पिताजी बोले.

''आप कितने घर देख चुके हैं अभी तक बिटिया के लिए?'' रमेश ने पड़ताल करते हुए पूछा.

''वही कोई १०-१२ घर तो देख ही चुके हैं बीते ३ सालों में'' जवाब मिला.

'' वैसे जीजा जी आप बुरा ना मानें तो एक बात पूछूं?'' रमेश ने एक कुशल विश्लेषक की तरह तह तक जाने की कोशिश प्रारंभ कर दी.

''हाँ-हाँ जरूर''

''आप लेन-देन का क्या हिसाब रखना चाहते हैं? कहीं हलके फुल्के में तो नहीं निपटाना चाहते?'' सकुचाते हुए रमेश बोला.

''नहीं यार १६-१७ लाख तक दे देंगे पर कोई मिले तो..'' जवाब में थोड़ा गर्व मिश्रित था.

रमेश अचानक चहका-
''अरे इतने में तो कोई भी भले घर का बेहतरीन लड़का फंस जायेगा, जबलपुर में वही मेरे पड़ोस वाले दुबे जी हैं ना, उनका लड़का भी तो पिछले महीने ऍम.डी. कर के लौटा है रूस से... उन्हें भी ऐसे घर की तलाश है जो उनके लड़के की अच्छी कीमत दे सके.''

रमा के पिताजी को लगा जैसे ज़माने भर का बोझ उनके कन्धों से उतर गया..
मगर परदे के पीछे खड़ी रमा को इस बात ने सोचने पे मजबूर कर दिया कि यह उसकी खुशियों की कीमत है या उसके होने वाले पति की????

दीपक मशाल

11 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक कहानी
    कीमत ही अदा कर रहे हैं हम परम्पराओं के नाम पर.

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  2. दूल्हा बिकता है, बोलो खरीदोगे...

    एक सच बताऊं...भारत में सिविल सर्विसेज के इम्तिहान में पास लड़कों की लिस्ट जारी होने के साथ ही कई धन्ना सेठों की नज़र में आ जाती है...फिर ऊंची बोली लगाकर मंडी से लड़कों को अपनी लड़कियों से रिश्ता जोड़ने के लिए खरीदने की कोशिश की जाती है...

    नया साल आप और आपके परिवार के लिए असीम खुशियां ले कर आए...

    जय हिंद...

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  3. सटीक कथा.

    यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

    हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

    मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

    नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    आपका साधुवाद!!

    नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

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  4. यह कीमत है रिश्तों की , नेह बंधन की , पारिवारिक सद्भाव की ....!!

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  5. एक बहुत ही अच्छी लघुकथा। बहुत-बहुत धन्यवाद
    आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  6. जीवन की सच्चाईयों से रुबरू कराती सार्थक लघु कथा

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  7. सचमुच एक बड़ा सवाल उठाया है आपने इस पोस्ट के माध्यम से कि "मेरी खुशी की कीमत क्या है?"

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  8. यही तो जीजिविषा है।
    नुतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  9. बढ़िया पोस्ट। बहुत सटीक लिखा है।

    .आप को तथा आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  10. ek bahut hi sarthak aur satik sawaal.........magar uttar shayad kisi ke pass nhi hai.

    nav varsh mangalmay ho

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  11. बहुत सुन्दर सार्थक कहानी समाज की विशमताओं और लालची लोगों के चेहरों को बहुत दक्षता के साथ नंगा किया है खुशदीप जी सही कह रहे हैं। पढे लिखे लडके की कीमर और बढ जाती है। मगर मुझे लगता है कि तुम्हारे जैसे युवा जरूर इस समस्या के बारे मे सोचेंगे और शायद एक दिन इस समस्या को हल भी कर लेंगे। लघु कथा बडी कहानी से मुशकिल होती है क्यों कि इसमे बात चन्द शब्दों मे कहनी होती है। इस ज्कहनी को बहुत अच्छी तरह निभाया है बधाई और आशीर्वाद।

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