1- सार्वभौमिक खालीपन/ दीपक मशाल 
कोई असल में वो नहीं होता
जो वो अक्सर दिख जाया करता है राह चलते
मुस्कुराते, खिलखिलाते
हाथ मिलाते गले लगाते
नहीं होता कोई वो
जो आसानी से
सामान्य अवस्था में रहता है
बल्कि कोई वो होता है
जिसकी झलक
वो दिखला जाता है कभी-कभार भावावेश में
अतिअनुकूल
और अतिप्रतिकूल परिस्थितिओं के दरमियान
धनात्मक और ऋणात्मक भावों के अधीन
खुद का प्रस्तुतीकरण ही
तय करता है
किसी की उच्चतम और निम्नतम सीमायेँ
जिनके बीच भटकते रहते हैं
करते रहते हैं दोलन
या पानी भरे टीन के डब्बे में
गंधक के टुकड़े सी गति से करते रहते हैं मिलान
हाँ वैसे ही कोई असल में वो नहीं होता
जो वो अक्सर दिख जाया करता है राह चलते
मुस्कुराते, खिलखिलाते
हाथ मिलाते गले लगाते
नहीं होता कोई वो
जो आसानी से
सामान्य अवस्था में रहता है
बल्कि कोई वो होता है
जिसकी झलक
वो दिखला जाता है कभी-कभार भावावेश में
अतिअनुकूल
और अतिप्रतिकूल परिस्थितिओं के दरमियान
धनात्मक और ऋणात्मक भावों के अधीन
खुद का प्रस्तुतीकरण ही
तय करता है
किसी की उच्चतम और निम्नतम सीमायेँ
जिनके बीच भटकते रहते हैं
करते रहते हैं दोलन
या पानी भरे टीन के डब्बे में
गंधक के टुकड़े सी गति से करते रहते हैं मिलान
जैसे जाना जाता है किसी भी बर्तन का आकार
उसका नाम
उसकी सीमाओं से
वर्ना अंदर का खालीपन तो बाहर सा है
सबका एक सा है
2- 
नामौजूद प्रेम / दीपक मशाल
एक सुबह
 
क्या हो जो
दुनिया की हर रात होने लगे ठीक ऐसी ही काली
नामौजूद प्रेम / दीपक मशाल
एक सुबह
सूरज लाल नहीं था 
एक सुबह नीला नहीं था आकाश 
नहीं था गुलाबी गुलाब 
घास सादा थी 
लाल बत्ती पर मुश्किल था फ़र्क़ करना 
बीच लाल और हरे के.…
बीच लाल और हरे के.…
एक सुबह सारे पोस्टर
हो रखे थे श्वेत श्याम 
कुल मिलाकर उस सुबह में रंग नहीं थे
एक सुबह 
नहीं बजा अलार्म
नहीं बजा अलार्म
नहीं रँभाई  गायें ना मिमियाईं बकरियाँ 
नहीं टनटनाईं साइकिलों की घंटियाँ 
कूड़े दूध और अखबार वाले गूँगे  रहे 
नहीं सुनाई दिए मोटरों के हॉर्न 
पायलों-रुनकों की छनक 
बर्तनों की खनक 
एक सुबह खामोश रही बच्चों की खिलखिलाहट 
कुल मिलाकर उस सुबह में आवाज़ नहीं थी 
एक सुबह 
फीकी थी चाय  
कॉफी थी पानी सी 
आमों में मिठास गायब थी 
पराठों-आम्लेटों नमकीनों में नहीं था नमक 
सैंडविच ब्रेड या पाव भी रोज से न थे 
और न मसाले 
मिर्च तीखी नहीं थी 
एक सुबह करेले तक कड़वे न थे 
कुल मिलाकर उस सुबह में स्वाद नहीं था 
एक सुबह 
बेला-चमेली में खुश्बू नहीं थी 
न धूप-अगरबत्ती में 
न केसर ना केवड़े में 
न साबुन शैम्पू में 
ना ही इत्र या परफ्यूम में सुगंध थी  
जलेबियों से मीठी गंध नहीं उठी 
बासमती में नहीं मिला सोंधापन 
एक सुबह दिखा हवा में कुँवारापन 
कुल मिलाकर उस सुबह में महक नहीं थी  
एक सुबह  
स्पर्श-स्पर्श नहीं था
स्पर्श-स्पर्श नहीं था
चाय गर्म नहीं पानी में ठंडापन नहीं 
ना लगी कमीजों में ढँक लेने जैसी बात 
घर और बाहर तापमान एक था 
नहीं थी मुस्कान में ताज़गी 
न आलिंगन में ऊष्मा  
न चुम्बन में सिहरन
न चुम्बन में सिहरन
न भय में कँपकँपी 
कुल मिलाकर उस सुबह में एहसास नहीं था 
सच कहें तो वो सुबह सुबह नहीं थी 
उसमे सुबह जैसा कुछ नहीं था
क्योंकि उस सुबह प्रेम नामौजूद था
उसमे सुबह जैसा कुछ नहीं था
क्योंकि उस सुबह प्रेम नामौजूद था
बीती रात नफरतों ने घेरकर क़त्ल कर दिया था उसका 
डर जाता हूँ सोचते हुए क्या हो जो
दुनिया की हर रात होने लगे ठीक ऐसी ही काली
3- अनुभवों की सड़क पर / दीपक मशाल 
जो मैं कहूँ
कि मेरे जैसे हो तुम
तो तनिक तो डर जाओ
जान लो कि उस दौर से गुज़रा हूँ
जिस में जी रहे हो अभी तुम
मान लो कि तुम्हारी हर मुस्कान समझता हूँ
सब नहीं मगर
कई गम जानता हूँ
मैं ढला किसी में जो मैं कहूँ
कि मेरे जैसे हो तुम
तो तनिक तो डर जाओ
जान लो कि उस दौर से गुज़रा हूँ
जिस में जी रहे हो अभी तुम
मान लो कि तुम्हारी हर मुस्कान समझता हूँ
सब नहीं मगर
कई गम जानता हूँ
तुम भी मुझमे ढलोगे
किसी भी दिन
दो बार लाल होता है सूरज
वक़्त एक फैशन है 
जो लौट-लौट आता है 
ज़रा सा फेरबदल लेकर 
एक सी हैं कहानियाँ सभी की 
एक से रिश्ते लिए
बस किरदार बदले हैं
या कभी नाम बदले हैं कहीं
एक से रिश्ते लिए
बस किरदार बदले हैं
या कभी नाम बदले हैं कहीं
और सबकी जिंदगी के 
एक से हैं पर्दें
एक से हैं पर्दें
भले रंग अलग हों 
अलग सी हों छाप लिए
अलग सी हों छाप लिए
जानता हूँ नहीं समझोगे तुम फिर भी 
मैं ही कौन सा समझा था 
सुनकर ये सब किसी और से  
 

सलाम दीपक भाई बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आया हूं। व्यस्तताओं और उलझनों में फंसा मन आपकी कविता में इस कदर उलझ गया कि खुद को भूल गया। बहुत ही अच्छी कविताये एक से बढ़कर एक ....... बहुत खूबसूरत एवं गहन रचना !
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