सोमवार, 28 मई 2012

जिजीविषा (लघुकथा)- दीपक मशाल


एक-दो रोज की बात होती तो इतना क्लेश न होता लेकिन जब ये रोज की ही बात हो गई तो एक दिन बहूरानी भड़क गई.
''देखिये जी आप अपनी अम्मा से बात करिए जरा, उनकी सहेली बूढ़ी अम्मा जो रोज-रोज हमारे घर में रहने-खाने चली आती हैं वो मुझे बिलकुल पसंद नहीं''
''लेकिन कविता, उनके आ जाने से बिस्तर में अशक्त पड़ीं अपनी अम्मा का जी लगा रहता है..'' गृहस्वामी ने समझाने की कोशिश की.
''अरे!! जी लगा रहता है यह क्या बात हुई.. आना-जाना हो तो ठीक भी है मगर उन्होंने तो डेरा ही जमा लिया है हमारे घर में..'' स्वामिनी और भी भड़क उठी
दूसरी ओर से फिर शांत उत्तर आया, ''अब तुम्हे पता तो है कि बेचारी के बेटों ने घर से निकाल दिया.. ऐसी सर्दी में वो जाएँ भी कहाँ?''
''गज़ब ही करते हैं आप.. घर से निकाल दिया तो हमने ठेका ले रखा है क्या उनका? जहाँ जी चाहे जाएँ.. हम क्यों उनपर अपनी रोटियाँ बर्बाद करें?'' मामला बढ़ता जा रहा था
हार कर गृहस्वामी ने कहा-
''ठीक है तुम्हे जो उचित लगे करो.. उनसे जाकर प्यार से कोई बहाना बना दो''

''हाँ मैं ही जाती हूँ.. तुम्हारी सज्जनता की इमेज पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए, घर लुटे तो लुटे..'' भुनभुनाती हुई कविता घर के बाहर वाले कमरे में अपनी सास के पास बैठी बूढ़ी अम्मा को जाने को कहने के लिए वहां पहुँची. पहुंचकर देखा कि बूढ़ी अम्मा अपनी झुकी कमर का बोझ एक डंडे पर डाले, मैली-कुचैली पोटली कांख में दबाये खुद ही धीरे-धीरे करके घर के बाहर की ओर जा रही थीं. अन्दर चल रही बहस की आवाज़ उनतक न पहुँचती इतना बड़ा घर न था. आँखों में आंसू भरे उसकी बेबस सास अपनी सहेली को रोक भी न सकी.

मगर शाम को रोटियाँ फिर भी बर्बाद हुई, अम्मा खाने की तरफ देखे बगैर भूखी ही सो गई थी.
दीपक मशाल

9 टिप्‍पणियां:

  1. AATM-SAMAAN SE BADA KUCHH BHI NAHIN, FIR GAREEB AUR BEBAS KE PAAS USKE SIVA HAI HI KYA ?

    SACH HAI YE DIPAK JI

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  2. दिल दुखता है तो रोटी भी बर्बाद होती है और मन भी।

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  3. dipak ji aapki laghu-katha dil ko chhoo gayi. Pata nahi logon ka dil aur nazariya kyon itna tang aur sankuchit hota ja raha hai. Kanha jakar ham rukenge....!!

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  4. शायद उस रोटी में भावनाएं मिलाना भूल गये ........

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  5. बेहद मार्मिक ..
    सच्चाई के करीब

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  6. shukriya aap sabka.. laghukatha ka pasand kiya jana iskee aadhi safalta hai, poori jab hogi jab is tarah kee laghuhaqeeqaten hamare aas-paas hona band ho jaayen..

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  7. मार्मिक कथा। अरे बेटा इतनी जल्दी भूल गये? कहीं ये तो नही समझ लिया कि आँटी मर खप गयी होगी? कैसे हो? बहुत बहुत आशीर्वाद। मै भी पिछले साल कम ही सक्रिय रही।

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