शनिवार, 26 सितंबर 2009

समर्पण


मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित,
प्रिय तुम्हारा ऋण बहुत है मैं अकिंचन,
किन्तु इतना कर रही तुमसे निवेदन
व्यथा अंतस की सुनाऊँ जब व्यथित हूँ,
कर दया स्वीकार लेना यह समर्पण.
मान अर्पित, प्राण अर्पित
रक्त का कण-कण समर्पित,
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित
आयु का क्षण-क्षण समर्पित.
अपने जीवन को जलाकर के तुमने,
चाहा खुशियों का मुझे अम्बार देना,
तोड़ दूँगी मोह का बंधन, कहो तुम,
छोड़ दूँगी चाहत तुम्हारी, गर कहो तुम.
पर आज सुन लो प्रिय मेरे अंतस की पीड़ा,
तो यथावत मान लूंगी,
आज पूरा हो गया मेरा समर्पण...

'बीती ख़ुशी'

चित्रांकन- दीपक 'मशाल'

4 टिप्‍पणियां:

  1. आज पूरा हो गया मेरा समर्पण...


    samarpan ka bahut achcha bhaav pesh kiya hai .....Dipak............


    aur haan ! ek reqest aur hai........ ki........ comment box mein se word verification hata do...... isse kya hoga na ki zyada se zyada log ayenge...... nahi to maximum logon ko yeh bahut hi ubaau kaam lagta hai.....

    isse traffic badh jayega......

    Rest yo poem is veri gud....u ve crafted it very beautifully..........

    जवाब देंहटाएं
  2. Aap request nahin aadesh den bade bhai, aapke according correction kar diya hai. Mahfooj bhai mujhe bharosa hai age bhi aise hi margdarshan karte rahenge.

    Plzz also read last kavita 'Sabit karne ke liye'

    sadar

    जवाब देंहटाएं
  3. deepak......... I hv answered my history question............ plz go thru ov it......... and submit ur view...........

    mahfooz

    जवाब देंहटाएं

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