मंगलवार, 22 अगस्त 2017

मोल-भाव/ दीपक मशाल

लघुकथा

उन्होंने कहा-
'न न... निश्चिन्त रहिए हमें कुछ नहीं चाहिए। बस लड़की सुन्दर हो, जरा तीखे नैन-नक्श और रंग गोरा हो। हाँ, खाना अच्छा पकाती हो। बाकी कढ़ाई-बुनाई का तो अब ज़माना रहा नहीं सो ना भी आता हो तो चलेगा। ज्यादा पढ़ी-लिखी भी न हो तो भी ठीक, बस घर चला सकने लायक हिसाब आता हो। '
'तब तो हमारी छोटी बेटी आपको ज़रूर पसंद आएगी... तर ऊपर की हैं, साल भरे का ही फ़र्क़ है दोनों में।' कहते हुए बाप की आँखों में चमक थी।
जिस दिन छोटी की सगाई थी बड़ी उस दिन प्रयोगशाला की बजाय बाज़ार में मिली। उजली रंगत का दावा करती क्रीम और सबसे काला काजल पैक कराते हुए। इस दुआ के साथ कि कुछ और भी 'भले लोग' हों दुनिया में।


11 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ..कम शब्दों में खूब | ब्लॉग लिखते रहिये |

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  2. Bahut sundar kavita hai. aap isko Pocket FM par audio mein record bh krskte hain. Aur logo ko suna skte hain.

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  3. सच कोई न कोई तो भला इंसान मिल ही जाता है एक दिन

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  4. I am really really impressed with your writing skills as well as with the layout on your blog.

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